• March 18, 2016

छाया चाहें तो प्रकृति का सम्मान करें – डॉ. दीपक आचार्य

छाया चाहें तो  प्रकृति का सम्मान करें  – डॉ. दीपक आचार्य

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छाया का महत्व हर इन्सान से लेकर प्राणी मात्र के लिए विशिष्ट है, छत्रछाया में जो पल्लवित होता है वह सुरक्षित विकास की सारी संभावनाओं को आकार देता है।  छाया हर मामले में सुरक्षित व संरक्षित जीवन देती है, यह छाया माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी से लेकर बुजुर्गों, गुरुओं और उन सभी की हो सकती है जो हमें स्नेह आशीर्वाद प्रदान करने का सामथ्र्य रखते हैं। छाया जीवंत सुकून देती है व जीवन को आधार भी।

  घर परिवार की बातों को छोड़ भी दें तो आज हमारे सामने छाया जिस तरह यक्ष  प्रश्न बनकर सामने वह है नैसर्गिक छाया। जिसे प्राप्त करने के लिए हमें किसी  की अनुमति या समय की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। यह ईश्वर प्रदत्त और प्राकृतिक उपहार है, जो सृष्टि के सभी जीवों के लिए है।

सीमेंट, कंक्रीट व लोहे के ढांचों व बस्तियों की छाया में खड़े रहना पडे़ तो अनुमति लेनी पड़ती है। प्रकृति की छाया पाने के लिए स्वतंत्र हैं, हम चाहे वहां खड़े रहकर छाया सुख प्राप्त कर सकते हैं।

आज हालात कुछ दूसरे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में मीलों तक छाया नज़र नहीं आती, इसका मूल कारण पेड़ों का अभाव है। ये पेड़ ही हैं जो बिना किसी प्रतिफल के हमें छाया ही नहीं बल्कि सब कुछ देते हैं। पेड़ों की इस छाया को कोेई छीन नहीं सकता। सदियों तक तो हमें यह प्राप्त होता रहा अब छाया की हमें तलाश करनी पड़ती है।

छाया के बिना जीवन निरर्थक है, कहीं धूप-कहीं छाया, कहीं दिन-कहीं रात, कहीं उजाला कहीं अंधेरा।  जिन्दगी के तमाम पहलुओं के बीच आम आदमी का पूरा का पूरा संसार किसी न किसी रूप में छायाहीन अर्थात संरक्षण हीन होता जा रहा है।

सिर्फ छाया को छाया-छाया कहते रहने और  पुकारने से छाया नही मिलती। छाया के लिए आवश्यक है मेहनत करना और पेड़ लगाना। इन्सान को आज दरकार है छाया की, हम न केवल मरुस्थल की बात कर रहे हैं बल्कि हम उन इलाकों की बात कर रहे हैं, जो पहाड़ी और मैदानी भी हैं जहां सब कुछ है मगर छाया का अभाव है।

सभी जगह हमने पेड़ों को इतना बरबाद करके रख दिया कि छाया का मिल पाना मुश्किल सा हो गया है। केवल छाया की बात करते हैं किन्तु छाया के नाम पर कुछ नहीं करते हैं। इस छाया का कोई मुकाबला नहीं कर सकते। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गर्मी लगातार बढ़ती जा रही है।

भीषण गर्मी का प्रकोप शुरू हो गया है। ऎसे में हर कोई चाहता है कि छायादार स्थान प्राप्त हों लेकिन शहरों से लेकर गांवों और रास्तों तक में छायादार स्थल नसीब नहीं हो पा रहे हैं।  हम अपनी गाड़ियां तो छाया में पार्क करना चाहते हैं लेकिन एक पेड़ लगाने या पेड़ बचाने में हमें मौत आ जाती है। प्रकृति से सब कुछ पाना चाहते है। मगर प्रकृति के लिए कुछ करना नहीं चाहते।

हम सभी चाहते हैं कि हमारे आस-पास हरे-भरे वृक्षों की छाया हो, सुकून  हो, लेकिन छाया कहाँ है।  न हमें छाया मिल रही है ना हमारी गाड़ियों को पार्क करने की छाया। हम सभी लोग चाहते हैं कि छाया ही छाया हो, छाया का सुकून प्राप्त हो, पर कितने लोग हैं जो छाया की कद्र करते हैं। अगर हमने प्रकृति की कद्र की होती, जंगलों और पहाड़ों को बरबाद न किया होता, अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का इतना अधिक दोहन-शोषण नहीं किया होता तो हमें अपने सुकून से वंचित नहीं होना पड़ता।

आज के संदर्भ में सबसे बड़ी आवश्यकता छाया की है। गर्मी से बचना और बचाना भी है। हम ही नहीं हमारी संतति को, हमारे पशुओं और हमारे जनजीवन को बचाना है धूप और धूप से होने वाले नुकसान से। सन बर्न की हम बातें करते हैं, रसायनों का लेप करते हैं, यह सब सिर्फ इसीलिए कि हमने पेड़ों और हरियाली का मान नहीं रखा। छाया की परवाह की होती, पेड़ लगाये होते तो आज यह स्थिति नहीं आयी होती।

जीवन के तमाम मूल्योें, आदर्शो, इच्छाओं और सिद्धान्तों की बलि चढ़ाने के बाद हम वृक्षारोपण की बात करते हैं। हर इन्सान का कर्तव्य है की छायादार पेड़ लगाये। यह हमने आज नहीं किया तो आने वाला कल झुलसाने वाला होगा।

जिन्दगी के तमाम आयामों में हमें छाया चाहिए। घर की छाया, माता-पिता की छाया से भले ही आपका वास्ता ना हो लेकिन प्रकृति की छाया में हमें  रहना ही पड़ेगा। इनके बिना न हमारी गति-मुक्ति हो सकती है और ना मोक्ष। अगर छाया ही नहीं होगी तो हमारा दाह संस्कार कौन करेगा,हमारे लिए लकड़ियां कौन जुटाएगा, आपके शरीर भस्मी भूत कौन करेगा और सड़ी-गली देह ऎसे ही पड़ी रहेगी और चील-कौए खाते रहेंगे।

इसलिए छाया के महत्व को समझें और इस बात को महत्व दें कि छाया है तो भगवान का साया और प्रकृति का उपहार साथ है। यूं व्यर्थ ना जाने दें अपने आपको थोड़ा ईमानदार व  सजग बनाएं। जितने लोग हैं कम से कम एक-एक पेड़ लगायें।  पेड़ आज नहीं लगाये तो आने वाला कल हमारा नहीं रहने वाला। इस बात को आज समझ जाएं तो ठीक है अन्यथा सदियां अपने आप समझा देंगी, और भावी पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी।

हम लोगो ने छत्र-छाया की बात सुनी जरूर है लेकिन हम इस मामले में थोड़ा उदार हो गए हैं । हमने छत्र अलग बांट लिए और छाया के मामले में बेपरवाह रहे। इन छत्रों के सहारे कब तक जीवित रहेंगे यह सोचने की बात है। पेड़ लगाएं, बढ़ाएं और हरियाली लाएं तभी छाया का सुकून प्राप्त कर पाएंगे।

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