- March 16, 2016
पहाड़ियों में स्वच्छता संदेश : घर-घर शौचालय :- – डॉ. दीपक आचार्य उप निदेशक
उदयपुर– (सूचना एवं जनसंपर्क)——– स्वच्छ भारत मिशन के अन्तर्गत स्वच्छता से जुड़े तमाम आयामों को अपनाने में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हर तरफ उत्साह का माहौल अब इन गतिविधियों को आकार देने लगा है।
गांवों, ढाणियों और कस्बों से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों तक में लोग अपने घरों में स्वेच्छा से शौचालय बनवा रहे हैं और इस काम को घर-परिवार और आने वाली पीढ़ियों के लिए नितान्त उपयोगी मानकर इसे खुद भी अपना रहे हैं और आस-पास के क्षेत्रों में भी प्रेरणा का संचार कर रहे हैं। ग्राम्यांचलों में स्वच्छता का अभियान अब मुँह बोलने लगा है।
खासकर उदयपुर जिले में स्वच्छता अभियान कई उपलब्धियों के साथ सफलता की डगर पर है जहाँ पहाड़ी इलाकों में लोगों ने अपने घरोें पर शौचालय बनवाकर स्वच्छता में भागीदारी दर्शायी है वहीं ये शौचालय बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं, निःशक्तजनों और बीमारों के लिए जीवन की सबसे बड़ी समस्या से राहत दिलाने वाले सिद्ध हो रहे हैं।
लोगों को अब इस बात का पछतावा होने लगा है कि यह काम बरसों पहले ही हो जाता तो कितना अच्छा होता। उदयपुर जिले के पहाड़ों में दूर से ही नज़र आने वाले शौचालय इस बात के साक्षी हैं कि पर्वतीय अंचलों में रहने वाले ग्रामीणजन इस मामले में कितने अधिक जागरुक हैं जिन्होंने पहाड़ी हिस्सों में भी अपने घर में शौचालय बनवा दिए हैं और इनका उपयोग कर रहे हैं।
पहाड़ियों में स्वच्छता की गूंज
इन पहाड़ी इलाकों में ग्रामीणों ने अपने शौचालयों के लिए पानी की व्यवस्था भी की है और इसके लिए शौचालय के पास ही पानी की टंकी भी बनवाई है। ग्रामीणों के अनुसार सरकार का यह अभियान आम इंसान के लिए राहत देने वाला है और इससे ग्रामीणों को सर्दी, गर्मी और बरसात में बाहर जाने से होने वाली परेशानियों, बच्चों-बूढ़ों और बीमारों तथा अशक्त लोगों को होने वाली तकलीफों से मुक्ति मिली है वहीं महिलाओं में इस अभियान के प्रति विशेष लगाव है जिन्हें घर में बने शौचालयों ने अपने जीवन की कई कही-अनकही बड़ी मुश्किलों से राहत दिला दी है।
बुढ़ापे का सहारा मिला
उदयपुर जिले की बड़गांव पंचायत समिति में कठार ग्राम पंचायत क्षेत्र अन्तर्गत मारूवास गांव की काली घाटी स्थित भील बस्ती निवासी आदिवासी वृद्धा श्रीमती वालकी बाई के लिए घर के बाहर बना शौचालय उसके लिए बुढ़ापे का बहुत बड़ा सहारा साबित हुआ है।
मारूवास की 85 वर्षीय वालकी बाई अकेली रहती है। उसके पांच लड़के डालू, मांगू, भगाराम, शंकर और पन्ना हैं तथा सभी उससे अलग रहते हैं। वालकी की तीन बेटियां हैं गणेशी, नानी एवं अम्ब। इन तीनों की शादियां हो चुकी हैं।
वालकी के लिए शौच के लिए पास ही धामनिया जंगल में जाना कष्ट साध्य था। एक तो दूरी, उबड़-खाबड़ रास्ते, ऊपर से अशक्ति। इस वजह से उसे हमेशा परेशानी होती थी। रात-बिरात और बीमारी की स्थिति में उसे बहुत परेशानी रहती।
सरकार की योजना में घर के बाहर ही शौचालय बन जाने से उसे राहत मिली है तथा अब खुश है। कहती है कि जिन लोगों ने उसका बुढ़ापा सुधार दिया है, भगवान उनकी जिन्दगी सँवारते हुए अपार यश देता रहे।
आदिवासी परिवारों में सब खुश
इसके पास ही पन्ना और शंकर ने अपने घर के पास शौचालय बनवाया है। इससे पन्ना के साथ ही उसकी पत्नी कमली व बच्ची हीरकी खुश है। शंकर, उसकी पत्नी दौलकी, बच्चे भैरू व छगन तथा बच्ची डाली भी शौचालय की सुविधा को सरकार का सम्बल मानते हैं।
इन सभी का मानना है कि इससे स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों ही दृष्टि से अच्छा काम हुआ है। इसी तरह कठार और मारूवास सहित क्षेत्र के पहाड़ों में रहने वाले आदिवासियों के घरों में बने शौचालयों से ग्रामीण परिवेश में स्वच्छता और जीवन जीने का सुकून महसूस होने लगा है।