न्यायिक अधिकारी का प्रतिबद्घता होना जरूरी – न्यायाधिपति श्री रंजन गोगोई

न्यायिक अधिकारी का प्रतिबद्घता  होना जरूरी – न्यायाधिपति श्री रंजन गोगोई

जयपुर – सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधिपति श्री रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायिक अधिकारी का केवल कार्य ही नहीं बल्कि अनवरत प्रतिबद्घता का होना जरूरी है। उनमें हर योग्यता के साथ ही सामाजिक, नैतिक तथा विश्वसनीयता होना भी आवश्यक है।

न्यायाधिपति गोगोई रविवार को जोधपुर में राष्ट्रीय एवं राज्य न्यायिक अकादमी तथा राजस्थान उच्च न्यायालय की ओर से आयोजित तीन दिवसीय वेस्ट जोन रीजनल ज्यूडिशियल कांफ्रेंस स्ट्रेन्थिंग जस्टिस डिलेवरी सिस्टम : टूल्स एवं टेक्निक्स के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि न्यायिक अधिकारी या न्यायाधीश की भूमिका अपने कार्य के प्रति चौबीस घण्टे की प्रतिबद्घता से जुड़ी होती है। प्रत्येक न्यायिक अधिकारी को स्वतंत्र निर्णय लेने के पूरे अधिकार होने के साथ उनको अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्घ होना आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि भारतीय ज्यूडिशरी को एक प्रवक्ता की आवश्यकता होती है जो समाज को न्यायिक प्रणाली के सम्बन्ध में जानकारी दे सकें ताकि वे न्याय प्रणाली व न्यायिक अधिकारियों की कार्यशैली को निकटता से समझ सकें। उन्होंने न्यायिक प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता बतायी और कहा कि न्यायिक अधिकारियों को भी हर केस की सुनवाई या निर्णय से पहले घर पर होमवर्क करना चाहिए। इससे उनका आत्मविश्वास व मनोबल सुदृढ़ रहेगा। उन्होंने अमेरीकन प्रेसिडेंसियल केस का उदाहरण देते हुए कहा कि इस प्रकरण का निर्णय कुछ ही घण्टों में कर दिया गया। हमारी न्यायिक प्रणाली में भी न्यायिक अनुशासन को बनाए रखने की जरूरत है।

राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री सुनील अम्बवानी ने समस्त न्यायिक अधिकारियों को निर्भयतापूर्वक वातावरण में कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्पष्ट सोच एवं निष्पक्षता से कार्य करके हम न्याय प्रणाली के प्रति विश्वसनीयता रख सकेंगे। तीन दिवसीय इस कार्यशाला के द्वारा न्यायिक अधिकारियों को अपने कार्य क्षेत्र में अधिक सुचारू रूप से कार्य करने में सफलता प्राप्त होगी। न्यायिक अधिकारियों में ईमानदारी, कार्यक्षमता, विश्वसनीयता की विशेषताएं होनी चाहिए।

राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री अजय रस्तोगी ने स्ट्रैन्थिंग द जस्टिस, टूल्स एण्ड टेक्निक्स पर चर्चा करते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारियों को आत्मविश्लेषण करना चाहिए। हमने इसमें जो सीखा है उसे हम अपने कार्यक्षेत्र में प्रयोग कर न्यायिक प्रणाली में उचित परिवर्तन लाने का कार्य करें। उन्होंने कहा कि अब वो समय आ गया है जब हमें प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सोच, कार्य प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता को समझने की जरूरत है।

इस अवसर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री, वरिष्ठ पत्रकार श्री अरुण शौरी ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों को सभी कैसेज के साथ उन कैसेज को अधिक अहमियत देनी चाहिए जिसमें राजनीतिज्ञ, लोकसेवक आदि जुड़े हों, क्योंकि इन कैसेज से पूरा समाज जुड़ा होता है तथा इनके निर्णयों से पूरा समाज प्रभावित होता है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के उदाहरण देते हुए बताया कि न्यायिक अधिकारियों द्वारा दिए गए निर्णय लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित करते हैं।

राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश व राजस्थान न्यायिक अकादमी के चेयरमैन जस्टिस गोविन्द माथुर ने कहा कि तीन दिवसीय कांफ्रेंस में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की उपस्थिति में न्याय प्रणाली में गुणात्मक सुधार के सम्बंध में व्यापक विचार मंथन हुआ जिसके बेहतर परिणाम मिलेंगे। इस कांफ्रेंस में न्यायिक अधिकारियों को न्याय प्रणाली के संबंध में और अधिक ज्ञानवर्धन का अवसर प्राप्त हुआ है। इस प्रकार के विचार मंथन से और सजगता से कार्य करने का मार्ग प्रशस्त होता है। इस अवसर पर राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की निदेशक गीता ओबेरॉय भी मंचासीन थी।

समापन समारोह में राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अजीतसिंह, गोपालकृष्ण व्यास, विनित कोठारी, संगीत लोढा, के एस आहलुवालिया, निर्मलजीत कौर, संदीप मेहता, पी के लोहरा, विजय विश्नोई, अरुण भंसाली, बनवारीलाल शर्मा, जयश्री ठाकुर, पूर्व न्यायाधीश डी के थानवी, अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्पेन्द्रसिंह भाटी व एस एस लदरेचा, सम्भागीय आयुक्त रतन लाहोटी, पुलिस विश्वविद्यालय के कुलपति एम एल कुमावत, रजिस्ट्रार जनरल विजय शंकर व्यास, रजिस्ट्रार प्रशासन बलदेवराम चौधरी, राजस्थान न्यायिक अकादमी की अतिरिक्त निदेशक श्रीमती नंदिनी व्यास सहित अन्य न्यायिक अधिकारी, राजस्थान हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसियेशन के अध्यक्ष रणजीत जोशी व लायर्स एसोसियेशन के अध्यक्ष दिलीपसिंह राजवी सहित अधिवक्तागण भी उपस्थित थे।

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