- December 13, 2018
2019 की लड़ाई का फार्मूला — शैलेश कुमार
भारतीय जनता पार्टी को भले ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार मिली लेकिन 2019 की लड़ाई अब भी बाकी है।
मुमकिन है कि सत्तासीन पार्टी अपनी रणनीतियों में कुछ बदलाव करे जैसा कि इसने 2015 के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद किया था।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में किसी में भी पार्टी को सफलता नहीं मिली।
ये नतीजे भाजपा के लिए एक चेतावनी हैं।
लोकसभा चुनाव होने में केवल चार महीने ही बचे हैं।
वर्ष 2015 में भाजपा को दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में हार मिली थी।
इस हार के बाद ही केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ‘गरीब कल्याण’ नीति पर जोर देना शुरू कर दिया था।
इसका नतीजा यह हुआ कि 2016 और 2017 के चुनावों में भाजपा को हराना नामुमकिन हो गया।
यह साल भाजपा के लिए काफी खराब रहा और इसे एक भी चुनाव में सफलता नहीं मिली। कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद यह सरकार नहीं बना सकी जबकि कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) ने चुनाव बाद गठबंधन कर सरकार बना ली।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने अब रसोई गैस, किफायती आवास, बिजली के साथ-साथ फसल बीमा और गरीबों के लिए स्वास्थ्य बीमा देने पर जोर दिया है जो पर्याप्त नहीं है।
कृषि क्षेत्र, नौकरियों की कमी और ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर काम करने की जरूरत होगी।
विधानसभा चुनावों में मिली ताजा जीत के बाद विपक्ष सरकार की राहत और मुश्किल बनाएगा।
विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों के पूर्वानुमान का अच्छा मानक नहीं माना जा सकता है।
भाजपा राजस्थान (38.3 फीसदी) और मध्यप्रदेश (41.1 फीसदी) में अपनी अच्छी वोट हिस्सेदारी बनाने में सफल रही है।
कांग्रेस की हिस्सेदारी क्रमश: 39.3 फीसदी और 41 फीसदी रही।
2014 के मुकाबले भाजपा को 2019 में एकजुट विपक्ष का सामना करना पड़ेगा —
—उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रमुख राज्यों में।
मोदी की सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए उपाय करेगी।
अंतरिम बजट में कृषि क्षेत्रों से जुड़े खर्च में बढ़ोतरी होनी चाहिए और सरकार की यह कोशिश होगी कि किसानों के बैंक खाते में सीधे सब्सिडी का हस्तांतरण किया जाए।
वर्तमान में मजदूर विरोधी सभी कानूनों को हटाने की जरुरत है –मसलन — नो वर्क नो पे छुट्टी, प्राइवेट कंपनी में सिर्फ 26 दोनों का वेतन आदि.