- November 14, 2014
हुदहुद मलेरिया का कहर : मरने के बाद उपचार शुरु
सीधी (विजय सिंह) – सीधी जिला वर्षा के कारण सूखे की चपेट में था। हुदहुद के कारण हुई बारिस ने जहां किसानों को जीवन दान दिया वहीं उसके कारण जमा हुये पानी ने मलेरिया मच्छरों को भी जीवन दान दिया। अमूमन माना जाता है कि ग्रामीण इलाके में सितम्बर माह तक मच्छरों का आतंक कम हो जाता है, नगरीय क्षेत्र में नालिया तो उन्हें 10 महीने तक संरक्षण देती हैं। तथाकथित सजगता के नाम पर 10 अधिकारी कर्मचारियों पर इसकी गाज गिरी है। पर प्रशासन का सचेत प्रहरी राजस्व विभाग का अमला साफ बरी है।
सीधी जिले में कुसमी क्षेत्र मलेरिया से फैलने वाली महामारी के लिये चिन्हित है। यहां तमाम वैज्ञानिक प्रयासों के बावजूद बुखार पीडि़तों को टोटके का उपचार पहले दिया जाता है। पीडि़त तब अस्पताल पहुंचता है जब रोगी मरणासन्न की स्थिति में पहुंच जाता है। अंध विष्वास को तो नहीं रोका जा सका है लेकिन कुसमी में अब महामारी की तरह मलेरिया से होने वाली मौतों का सिलसिला रुका नही है।
विगत् पांच वर्ष पूर्व सीधी विकास खंड के ग्राम चैफालपवाई एवं सतनरा गांवों में इसकी वजह से सैकड़ों की संख्या में मौत के बाद तो राज्य सरकार ने कलेक्टर से लेकर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी तक को नहीं बख्शा था। स्थानांतरण और निलंबन तक कार्यवाही हुई। प्रशासन को समझ आया कि मैदानी अमला यदि सजग रहता तो इन आकस्मिक मौतों पर काबू पाया जा सकता था।
यह एक विडम्बना ही है कि मलेरिया विभाग कुसमी विकास खंड के अलावा जिले के अन्य क्षेत्रों में तभी काम करता है जब इस तरह के हादसे हो जाते है, वरना उसके आला अधिकारियों का एक ही रटा-रटाया उत्तर रहता है कि बजट सिर्फ कुसमी के लिये है।
सीधी जिले के जनपद पंचायत सिहावल के ग्राम पोखरा में एक सप्ताह के भीतर हुई पांच मौतों की खबर समाचारपत्रों में प्रकाशित होने के बाद ही प्रशासन सचेत हुआ। अधिकारी कर्मचारी मिलाकर कुल 10 लोगों का निलंबन और सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की गई है।
चैफालपवाई व सतनरा में हुई मौतों के बाद से ही प्रषासन ने रणनीति बनाई गई थी कि मैदानी इलाके में तैनात सभी विभागों के कर्मचारी सतर्कता पूर्वक विभागीय दायित्वों के साथ अपने क्षेत्र में समूह में हाने वाली बीमारियो पर नजर रखेंगे तथा स्वास्थ्य विभाग सहित अपने विभाग प्रमुख को सूचना देगें। लेकिन समय के अनुसार यह व्यवस्था समाप्त हो गई।
ग्रामीण क्षेत्र में राजस्व का पटवारी, षिक्षा विभाग का षिक्षक, स्वास्थ्य विभाग की आषा कार्यकर्ता, ए.एन.एम., एम.पी.डब्ल्यू, पंचायतकासचिव व रोजगार सहायक तथा महिला बाल विकास विभाग की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका ग्रामीणों के जीवंत सम्पर्क में रहते हैं। शासन का यह अमलावा कई हर मायने में प्रषासन की आंख-कान हो सकता है। सिर्फ बीमारियों के मामले में ही नहीं वरन् सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन व अपराधों की रोकथाम में भी इसकी अहम् भूमिका को नहीं नकारा जा सकता है। जरूरत है इन पर भरोसा बनाये रखने के लिये प्रोत्साहन की।
हाल ही के एक वाकये का जिक्र करना चाहूंगा। मेरे परिवार की ही 25-26 वर्षीया वंदना सिंह रक्षा बंधन में अपने मायकेपटौहां (कमर्जी) गई थी। उसे सिरदर्द और बुखार की षिकायत हुई। पढ़े लिखे परिवार की इस महिला को उसके पिता ने पटपरा के चांदसी दवाखाना में उपचार कराया। 12 अगस्त 2014 को उसे अत्यंत गंभीर हालत में जिला चिकित्सालय सीधी लाया गया। उसे आक्सीजन मास्क से सांसदी जा रही थी।
मैं भी उसे देखने गया, मौजूद चिकित्सक से बीमारी बावत् पूंछा तो उन्होने बताया कि बुखार मस्तिष्क तक पहुंच गया है, ब्लड सेम्पल लैबोरेटरी भिजवायें। मैंने नर्स से इस बावत् कहा तब वह सेम्पल हेतु बल्ड निकालने लगी और नहीं निकाल सकी। बोली कि खून निकल ही नहीं रहा है। मैने फिर डाक्टर से कहा तो उन्होंने कहा पैथालाॅजी लैब से टेक्नीषियन को बुलाई ये तो वह ब्लड निकाल लेगा। मैने उनसे पूंछा कि ऐसा क्यों हो रहा है ? उन्होने कहा यह लक्षण डेंगू या फैल्सी फेरममलेरिया के हैं, रक्त जम जाता है। परिजन पैथालाॅजी लैब से टेक्नीषियन नहीं ला पाये और वंदना की मौत हो गई।
इस सच्ची घटना से मेरे ज़हन में सहज़ सवाल उठे। मृतका के पिता साधन सम्पन्न और षिक्षित होने के बाद भी उसका उपचार बंगाली डाक्टर से क्यों कराया ? जबकि पटौंहा से सीधी की दूरी महज़ 12 कि.मी. है, उनके पास बलेरो जीप भी थी। पता चला कि सीधी लाने से पहले दो-तीन दिन झाड़ फूंकभकराई गई थी। तात्पर्य यह कि यहां षिक्षा का मन हीं आई, यदि वंदना के उपचार में लापरवाही न बरती गई होती तो वह जीवित होती।
सीधी जिला चिकित्सालय की व्यवस्था पर भी गौर करें। ब्लड सेम्पल तब क्यों नहीं लिया गया जब ड्रिप लगाने हेतु उसकी नस में जेल्को डाला गया था ? भर्ती करने के एक घंटे बाद जब ब्लड नहीं निकल पा रहा था तो लैबटेक्नीषियन को बुलाने की जिम्मेदारी किसकी थी ? 12 अगस्त 2014 का हुई यह मौत जिला चिकित्सालय के रिकार्ड में बतौर फैल्सी फेरममलेरिया या डेंगू के रूप में दर्ज नहीं की गई होगी। यह हालत जब तथाकथित सभ्य और साधन सम्पन्न की है तो सुदूर ग्रामीण अंचल से आने वाले मरीजों की क्या होती होगी ? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
जिले में स्वास्थ्य विभाग के अमले की कमी है। इसकी पूर्ति के लिये निःसंदेह जनप्रतिनिधियों के प्रयास की आवष्यकता है। पोखरा घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग के अमले पर हुई कार्यवाही जिले के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने नहीं की है। कलेक्टर के दबाव से यह हुआ। ऊपर जिस वाकये का जिक्र है, उसमें जिला चिकित्सालय की भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। जरूरत है मौजूदा यवस्था की मानसिकता को बदलने की, उसे मानवीय बनाने की।जो भी काय्रवाही हुई है ? उससे सभी पाक साफ साबित हो जायेगें।
विजय सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
राज्य स्तरीय अधिमान्य
19, अर्जुननगर, सीधी