- September 11, 2015
संघ के इशारे और वक्त की मांग : सुषमा स्वराज कमजोर। स्मृति ईरानी असहज । मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल !
प्रदीप के. माथुर (पीपुल्स सिंडीकेट) – संघ के इशारे और वक्त की मांग दोनों ने मिलकर मोदी को मंत्रिमंडल में फेरबदल को मजबूर किया है, देखना है कि यह चुनाव से पहले होता है या बाद में।
इस समय जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मोदी सरकार का सारा ध्यान बिहार विधानसभा के चुनाव पर हैं केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल के संकेत मिलना वास्तव में आश्चर्यजनक है। सत्ता के करीबी लोग कह रहे हैं कि फेरबदल तो होगा लेकिन चुनाव के बाद। अगर यह बात है तो फिर अभी फेरबदल की बात क्यों हो रही है? क्या ऐसा तो नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार चुनाव से पहले फेरबदल करके राज्य के मतदाताओं को कोई संदेश देना चाहते हैं।
वैसे मंत्रिमंडल में फेरबदल की आवश्यकता तो काफी समय से महसूस की जा रही है। ललित मोदी मामले में लगे आरोपों के बाद सुषमा स्वराज की स्थित भी काफी कमजोर हो गई है। उधर स्मृति ईरानी भी मानव संसाधन मंत्रालय में अपने को असहज महसूस कर रहीं हैं। उनकी फर्जी डिग्री के मामले ने भी मोदी मंत्रिमंडल की छवि को नुकसान पहुंचाया है। शिक्षामंत्री की खुद की शिक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगे तो यह एक उपहास की बात है।
लेकिन सुषमा स्वराज और स्मृति ईरानी से कहीं अधिक नुकसान गिरराज सिंह जनजातीय पृष्ठभूमि से आयी साध्वी प्राची जैसे मंत्रियों ने अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बयान देकर किया है। इससे बड़ी कोई मूर्खता नहीं हो सकती कि भारतीय मुसलमानों से कहा जाय कि वह पाकिस्तान चले जाय। फिर प्रधानमंत्री को स्वयं की मुस्लिम विरोधी छवि की पृष्ठभूमि में लगता है कि यह मंत्री शायद मोदी सरकार के अल्पसंख्यक विरोधी दृष्टिकोण के प्रवक्ता है। सच तो यह है कि ऐसा कुछ भी नहीं है और भाजपा सरकार ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया है। पर इन मंत्रियों ने अपने गैर-जिम्मेदाराना बयानों से मोदी सरकार का बहुत नुकसान किया है। इसकी कीमत भाजपा को बिहार के चुनाव में चुकानी पड़ सकती है। शायद इसीलिए कयास लगाये जा रहे हैं कि मोदीजी चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में फेरबदल करके अल्पसंख्यकों को यह आश्वासन देना चाहते हैं। कि उनकी सरकार मुस्लिम विरोधी नहीं है।
वित्तमंत्री अरूण जेटली के करीबी माने जाने वाले आई.ए.एस अधिकारी रमेश महर्षि के यकायक गृह सचिव बनने से भी मंत्रिमंडल में फेरबदल की कार्यवाही को बल मिला है। मजे की बात यह है कि महर्षि को गृहसचिव उस दिन बनाया गया जिस दिन वह सेवानिवृत्त हो रहे थे। जब यह कहा जा रहा था कि अरूण जेटली गृह विभाग सम्भालेंगे और वित्त मंत्रालय किसी डॉ. मनमोहन सिंह जैसे विशेषज्ञ अर्थशास्त्री को दिया जायेगा। अगर यह हुआ तो फिर कहा जायेगा कि भाजपा सरकार यू.पी.ए. की कांग्रेस सरकार की नकल कर रही है।
यदि वित्तमंत्री अरूण जेटली गृह मंत्री बने तो गृहमन्त्री राजनाथ सिंह कहाँ जायेगें। कहा जाता है कि राजनाथ सिंह भाजपा अध्यक्ष बनना चाहते हैं क्योंकि मंत्रिमंडल में वह अपने को असहज पा रहे हैं। शायद यह ठीक भी है। भाजपा की राजनीति में उनका कद बहुत ऊचाँ है। वह देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। यदि गृह सचिव के स्थानान्तरण में उनसे पूछा तक न जाय तो उन्हें बुरा लगना स्वाभाविक है।
कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने विश्वासपात्र अमित शाह को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। हार्दिक पटेल के आरक्षण आन्दोलन ने मुख्यमंत्री आनन्दीबेन पटेल की सरकार की छवि पूरी तरह धूमिल कर दी। इसके साथ-साथ नरेन्द्र मोदी के गुजरात माँडल और गुजरात के विकास के दावों पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया। यह बात भी सामने आयी कि गुजरात में भाजपा या यों कहें कि प्रधानमंत्री मोदी के जनाधार को सफलतापूर्वक चुनौती दी जा सकती है।
गुजरात में इसके अतिरिक्त नरेन्द्र मोदी के समक्ष दो और समस्याऐं हैं। आनन्दीबेन पटेल 75 वर्ष की हो रही हैं और नरेन्द्र मोदी के अपने पैमाने के हिसाब से अब उन्हें पद के योग्य नही समझा जा सकता। अभी कुछ दिन पहले की वरिष्ठ भाजपा नेता यशवन्त सिन्हा ने मोदी के इस 75 वर्ष वाले फार्मूले पर चुटकी ली थी जिसे मीडिया ने जोर-शोर से छापा। अब यदि मोदी अपनी विश्वासपात्र आनन्दीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाते तो उन पर सीधा पक्षपात का आरोप लगेगा जो उनकी छवि को धूमिल करेगा।
लेकिन गुजरात के सन्दर्भ में मोदी की इससे भी बड़ी समस्या है और वह है उनके उद्योगपति मित्र अदानी का अमित शाह को मुख्यमंत्री पद देने का तीव्र विरोध। कहा जाता है कि पिछली जुलाई में जब अमित शाह को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने की बात लगभग तय हो गयी थी तो अदानी ने दिल्ली आकर अपना विरोध दर्ज किया।
गिरिराज सिंह जैसे हिन्दुत्ववादी नेताओं को मंत्रिमंडल से हटाना या उनका दर्जा कम करना भी नरेन्द्र मोदी के लिए समस्यामूलक हो सकता है। उनको सत्ता में लाने में हिन्दुत्ववादी संघ परिवार ने बहुत बड़ा योगदान दिया है। अगर भाजपा बिहार चुनाव जीतती है तो इसका भी बहुत बड़ा श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जाएगा। जैसे पहले ही विदित था कि नरेन्द्र मोदी राम मंदिर, धारा 370 हटाना और कॉमन सिविल कोड लागू करना जैसे संवेदनात्मक मुद्दों से वोट तो ले सकते हैं पर उनकी सरकार इन वादों पर अमल नही कर सकती। यह ही हो रहा है और इसीलिए हिन्दुवादी वर्ग नरेन्द्र मोदी सरकार से सन्तुष्ट नही है। अब यदि गिरिराज सिंह जैसे लोगों को हटाया गया तो यह वर्ग और भी असन्तुष्ट हो जायेगा। अपने राजनैतिक भविष्य के लिए नरेन्द्र मोदी यह खतरा नही उठा सकते हैं।
भ्रष्टाचार विरोध के दम पर सरकार में आयी भाजपा के सामने आज अपनी छवि को बनाये रखने का घोर संकट है। व्यापम घोटाले की जांच में कुछ भी हो, ललित मोदी के मामले में कितनी भी सफाई दी जाय सच यह है कि आज शिवराज सिंह चैहान और वसुन्धरा राजे सिंधिया भाजपा के लिए बोझ बन गये हैं। यही स्थिति डॉ. रमन सिंह की भी होने वाली है। यह लोग भाजपा के अच्छे जनाधार वाले वरिष्ठ नेता हैं और इनको अपनी जगह से हटाना भी आसान नही है। लेकिन इनका बचाव करने की जिम्मेदारी नरेन्द्र मोदी की ही होगी। ऐसे में देखना यह है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल करके प्रधानमंत्री क्या संदेश देना चाहते है और इससे अपनी छवि बनाये रखने के लिए तथा पार्टी में अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए कैसी रणनीति बनाते है।
(लेखक वरिष्ठ शिक्षाविद और जानेमाने पत्रकार हैं।)