• March 5, 2015

शिक्षा ज्ञानपरक के साथ संवेदनापरक हो -शिक्षा राज्य मंत्री

शिक्षा ज्ञानपरक  के साथ संवेदनापरक हो  -शिक्षा राज्य मंत्री

जयपुर – शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा कि शिक्षा ज्ञानपरक होने के साथ ही संवेदनापरक भी हो। उन्होंने शिक्षार्जन में व्यक्ति को मशीनी बनाने की बजाय संस्कारवान बनाने पर जोर देते हुए उसमें समग्रता और समन्वय की भावना पैदा करने के जीवन मूल्यों का समावेश किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह समय की जरूरत है कि शिक्षा में आईक्यू, ईक्यू और एसक्यू यानी बुद्घिमता, संवेदनशीलता और अध्यात्म से जोड़ते हुए उसे परिष्कृत व्यक्ति तैयार करने वाली बनाया जाए।

श्री देवनानी बुधवार को यहां शिक्षा संकुल स्थित सभागार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संबंध में राजस्थान से सुझाव तैयार कर भेजे जाने के सिलसिले में आयोजित बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए विभिन्न राज्यों से सुझाव आमंत्रित किए गए हैं। राजस्थान से जो सुझाव तैयार कर भेजे जाएं, वह देश में शैक्षिक उन्नयन को प्रभावी रूप में दिशा देने वाले हों।

उन्होंने शिक्षा नीति के अंतर्गत विद्यार्थियों को सूचना संपन्न कराए जाने के साथ ही संवेदनशील और मानवीय मूल्यों के संस्कार देने वाली शिक्षा से जोड़े जाने पर जोर दिया। उन्होंने शिक्षा नीति के अंतर्गत प्री-प्राइमरी प्रारंभ करने, शिक्षा में प्रतिभा की पहचान करने को बढ़ावा देने तथा पदौन्न्ति से पहले प्रशिक्षण प्रदान करने की मानसिकता संबंधित सुझावों को भी सम्मिलित किए जाने पर जोर दिया।

शिक्षा राज्य मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा नियामक आयोग बनाए जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा में राजनीति नहीं बल्कि राजनीति में शिक्षा की जरूरत है। उन्होंने शिक्षा नीति के तहत योग शिक्षा और स्थानीयपरक जानकारियों का अधिकाधिक समावेश करने की आवश्यकता जताई।

श्री देवनानी ने बैठक में प्रारंभिक, माध्यमिक शिक्षा विभाग, साक्षरता एवं सतत शिक्षा, भाषा विभाग, पाठ्यपुस्तक मंडल, स्टेट ओपन स्कूल, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और अन्य शिक्षाविदों से शिक्षा नीति के अंतर्गत भेजे जाने वाले सुझावों पर प्रारंभिक तौर पर चर्चा की और कहा कि आगामी 20 मार्च तक शिक्षा नीति से संबंधित सुझाव विभिन्न स्तरों पर तैयार कर आवश्यक रूप से प्रस्तुत किए जाएं।

उन्होंने शिक्षा में संस्कारों का समावेश करने, खेलकूद एवं योग की शिक्षा के साथ ही पुस्तकों में विद्यार्थियों की रूचि पैदा करने संबंधित सामग्री का समावेश किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जरूरी यह है कि लोक संस्कृति, हमारे इतिहास, भूगोल और स्थानीयता का भी शिक्षा में अधिकाधिक समावेश हो।

इस अवसर पर प्रारंभिक शिक्षा विभाग के प्रमुख शासन सचिव श्री पी.के. गोयल और माध्यमिक शिक्षा विभाग के शासन सचिव श्री नरेशपाल गंगवाल ने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न राज्यों के विशेषज्ञों के परामर्श कर सुझाव भेजे जाने के लिए कहा है। इसके बाद विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों से इस संबंध में चर्चा की गई।

चर्चा में स्टेट ओपन स्कूल के सचिव श्री दयाराम महरिया, जामडोली विद्यापीठ के प्राचार्य श्री अशोक तथा अन्य ने शिक्षा को मानवीय मूल्यों से जोड़े जाने सबंतिधत सुझाव दिए। बैठक में निदेशक माध्यमिक शिक्षा श्री सुआलाल, निदेशक प्रारंभिक शिक्षा श्री बी.एल.मीणा, निदेशक साक्षरता एवं सतत शिक्षा श्रीमती चित्रा गुप्ता सहित बड़ी संख्या में अधिकारियों ने भाग लिया।

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