शाकम्भरी योजना : जीवन की दशा और दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका

शाकम्भरी योजना : जीवन की दशा और दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका

कोण्डागांव :  (छ०गढ) / रंजीत——————— इसमें संदेह नहीं है कि कृषि विभाग की शाकम्भरी योजना ने कृषको के जीवन की दशा और दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस योजना के सफल क्रियान्वयन से जिले के किसानों की मनोवृत्ति में परिवर्तन आया है। इससे अब क्षेत्र के कृषक कृषि के एक सीमित दायरे से निकलकर अन्य अपरम्परागत विशिष्ट किस्म की फसल लेने में भी परमउत्साह दिखा रहे है।

इस क्रम में ग्राम दहिकोंगा निवासी 45 वर्षीय रतिराम, पिता गागरु ने भी एक प्रगतिशील कृषक के रुप में अपनी पहचान बनाई है। पहले रति राम अपनी 1.214 हेक्टेयर सीमित कृषि भूमि में धान की खेती करके गुजर-बसर कर पाता था। अल्प कृषि आय एवं अन्य आर्थिक बाध्यताओं ने उसे कृषि में ही अपना भविष्य ढूंढने के लिए प्रेरित किया।

अपने कृषि जीवन को नई दिशा देने को इच्छूक रतिराम ने क्षेत्रीय कृषि अधिकारी का मार्गदर्शन लिया और उसे शाकम्भरी योजना के तहत विद्युत पंप (3एचपी), विद्युत लाईन विस्तार और माइक्रोएरिगेशन सिस्टम की जानकारी हुई। बिना विलंब किए उसने समस्त विभागीय औपचारिकताएं पूरी कर अपने खेत में विद्युत पंप एवं माइक्रोएरिगेशन सिस्टम लगा लिया। इसके साथ ही उसने धान बुवाई में प्रचलित छिटका विधि छोड़कर रोपा विधि अपनाया। इधर सिंचाई की सुविधा का लाभ लेते हुए उसने अपने द्वि-फसली रकबे में मक्का एवं ऋतु अनुसार शाक-सब्जियाँ की खेती करना भी शुरु कर दिया।

अपनी इच्छा शक्ति एवं मेहनत से किए गए इस प्रयास का लाभ भी उसे उसी वर्ष मिल गया। जहां उसे मात्र 45 हजार रुपये वार्षिक आय होती थी। वहां अब उसे 1 लाख 35 हजार की आय होने लगी। जाहिर है आर्थिक स्थिति सुधरने के बाद तो रतिराम के लिए पूरी दुनिया ही बदल गयी। वह मानता है कि धान के अलावा बहुफसली कृषि करने में ही विकास हो सकता है।

कृषि विभाग से मिली जानकारी अनुसार शाकम्भरी योजना के तहत बहुफसली एवं टिकाउ खेती पर जोर दिया जाता है। चूंकि क्षेत्र के अधिकांश कृषक सिंचाई के अभाव में एक फसल पर ही निर्भर रहते है। अतः वे इस योजना के माध्यम से अपने खेत को सिंचित भूिम में परिवर्तित कर सकते है। आज रतिराम अपनी उपलब्धि से परिवर्तन की ओर अग्रसर होने वाले कृषको में अपना नाम दर्ज करा चुका है।

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