- October 3, 2016
मन की बात -8 -शराब नीति-पंजाब 35, 000 करोड़ रूप्ये, उ०प्र० 19,250 करोड़ रूप्ये, हरियाणा – 3,700 रूप्ये, दिल्ली:- 3,150 करोड़ की आय
बिहार:-बिहार शराबबंदी, राज्य सरकार के विधेयक के विरूद्ध फैसला देेनेे सेे पहले कोर्ट कोे समीक्षा के लिए वापस करना चाहिए। त्रुटिपूर्ण विधेयक को संशोधन करने के लिए भेजा जाना चाहिए- यह समाज कल्याण के विरूद्ध फैसला है।
हम सरकार से खासकर राजद से उम्मीद करते हैं जिसके चुनाव पर या जिसे वे अपना जन्मसिद्ध मतदाता मानते हैं क्या उनके परिवार को बर्वाद करने की साजिश नहीं है।
क्या वे चाहतेे है की ये लोग ऐसे ही बने रहें, दिल्ली, हरियाणा और मुम्बई में पीटते रहेेें।
चुनाव केेे दौरान मैंने मौलिक समस्या केे बारे में बार- बार यही लिखता रहा – चिकित्सा, शिक्षा,सुरक्षा रोेजगार पलायन और शराब से मुक्त करने के लिए अपने – अपने चुनाव विकल्प रखें तो जीत की उम्मीद है।
जीत के बाद सिर्फ बिहार ही ऐसा भारतीय इकाई है जहाॅं इस पर कड़ाई से पहल की गई । इससे आम जनता खास कर गृह स्वामिनीयों में अकल्पनीय खुशी का माहौल देखा गया।
इस कानून को लेेकर बिहार मेें अब भी नीतिश की लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। पुरूष वर्ग नाखुश है। लेकिन घर की व्यवस्था से खुश है। परंतु अबंड – लफंडरोेें की भी कमी नहीं है।
नीतिश कुमार ने जब शराब केे विरूद्ध कानपुर और राजस्थान में वक्तव्य दिया तो यहाॅं की महिलाओं ने जमकर तारीफ की । भारी समर्थन के कारण उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता को कहना पड़ा की – यूपी मेें ऐसी हालात नहीं है लेकिन बिहार में यह जनता की माॅंग है।
मुख्यमंत्री बिहार की एक गलती यह है की सिर्फ बीजेेपी शासित राज्योें में जनता का जागरूक करना, जो अतिशयोक्ति है। मिशन के तहत उतड़ना चाहिए चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार हो।
अर्थ यह है कि अगर कोई पार्टी उक्त मुद्दों के साथ चुनावी धरती पर उतड़ती है तो शायद लखनऊ की सिंहासन पर पदस्थापित हो सकती है।
अगर एक दिन अंतरराष्ट्रीय बस अडडा, दिल्ली में बिताया जाय तो यूपी विकास की पोल खुल जाती है। कोई ऐसा डिपों नही मिलता (मुजफफरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, गोंड,बस्ती आदि) जहाॅ ये लोग तंग हालात से घर जाते और रोजगार के लिए घर से बाहर आतें दिखतेे है।
सवाल है:
यूपी में विकास किसका ! शराब बेचने वाले या शराब पीनेवाले परिवारों का ?
अगर हम सोना का हार पहन लें तो क्या विकास हो जायेगा। कितने प्रतिशत सोना पहनने वालें हैं ?
पहले की अवस्था में यातायात की हालात सुधरी है। लेकिन यातायात की हालात सुधरने से मजदूर पलायन पर सरकार क्यों नहीं शून्य से आगेे बढ़ पा रही है।
उस समय की सरकार
उक्त नारेबाजी का खुब हंगामा हुआ। जनता खासकर महिलाओें को बीजेपी सरकार से उम्मीदें थी। लेकिन जब सरकार बनी। बनने के उपरांत पाबंदी के बदले – आय क्षति का ढा़ेंग रचा तथा सरकार गुलगुले खानेे लगी।
जहाॅं कानून बनाने की जरूरत है वहाॅ छापेमारी क्या करेगा ?
बिहार अकेला ही नहीं है साथ देने के लिए हिमाचल प्रदेश ने भी भांग आदि पर पहल की है उसी तरह तमिलनाडू ने भी प्रतिबंद्ध पर विशेेष पहल की है। हालाॅकि यहाॅ विधान सभा ने कोई कानून नहीं बनाई है। अगर कानून बना है तो सिर्फ बिहार में।
शराब नीति: 2014-15 में 319 करोड रूप्ये कि अपेक्षा 2015-16 में 3605 करोड़ रूप्ये की राजस्व की आमदनी हुई । इस शराब बंदी से 4000 करोड़ से अधिक की राजस्व की हानि हुई है।
हरियाणा में शराब से राजस्व आयः- 3,700 रूप्ये। दिल्ली:- 3,150 करोड़ की आय।
उत्तरप्रदेश में 19250 करोड़ की आमदनी। बिहार में शराब बंदी होने से यूपी की शराब ने लगाई छलांग। 2015-16 में 1 लाख लिटर शराब के बजाय 2016- 17 में 5000-6000 लिटर शराब की बिक्री हुई है।
उस समय बिहार के बलिया सीमा पर सात – आठ नये देशों के शराब दुकान के लिए अनुज्ञापत्र के लिये ललायित हैं। शराब और बियर की बिक्री में 64 % की बढ़ोतरी हुई है।
पंजाब में आटीआई के अनुसार 35, 000 करोड़ रूप्यें की बढ़ोतरी हुई है। 7500 करोड़ शराब से और 6500 करोड़ हीरोईन से आमदनी हुई है। विगत वर्ष 35, 558 करोड़ की रूप्यें की हुई।
विगत तीन वर्षो के वित्तीय वर्षों की अपेक्षा 2014-15 में राजस्थान के आवकारी विभाग की आमदनी 5,585.76 करोड़ रूप्यें।
राष्ट्रीय अपराध शाखा के अनुसार प्रतिदिन 15 व्यक्ति अर्थात प्रति 96 मिनट में एक की मौत हो रही है।
(11 सितम्बर 2013 Zee Research Group)
(यह आंकड़े इंडियन एक्सप्रेस, टाईम्स आफ इंडिया और अन्य पर आधारित है।)
सबसेे बड़ी बात है कि इस विधेेयक के विरूद्ध कौन गया कोर्ट मेें ? इस नालायक वकिल या शराब व्यापारियों को महिला संगठन को सौंप कर बढ़िया से इलाज करवा दें। भारत का कोर्ट और सीबीआई आम जनता के लिए खतरनाक है। जनता को अपनेे हित के लिए स्वंय सरकार के साथ सड़क पर उतडना होेगा। पीड़ितों को और पीड़ित करने के लिए कोेर्ट और जाॅंच महज एक दिखावा है।