- March 4, 2015
वागड़ की होली – डॉ. दीपक आचार्य
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समय के साथ पुरानी परंपराओं का ह्रास होता है, आधुनिकताओं का प्रवेश होता है और उत्सवों में नित नूतन प्रवृत्तियां विकसित होती चली जाती हैं। कई बार उत्सवों का मौलिक स्वरूप बदलने लगता है और उत्सवधर्मिता समाप्त होकर औपचारिक परंपराओं का निर्वाह मात्र शेष रह जाता है। आधुनिक परिवेश और बाहरी हलचलों के बावजूद स्थान विशेष पर खूब सारी परंपराएं थोड़े-बहुत मिश्रण के साथ अपने पूरे उत्कर्ष के साथ दिखाई देती हैं।
इन्हीं में माही की स्नेहधार से सिक्त, पहाड़ों, कंदराओं और जंगलों की वजह से नैसर्गिक रमणीयता और वानस्पतिक संपदा से भरपूर वागड़ अंचल वह प्रमुख स्थल है जहाँ आज भी पुरातन परंपराएं अपने मौलिक स्वरूप में विद्यमान हैं और इनका दिग्दर्शन तक हर किसी को मंत्र मुग्ध कर देने वाला है।
यह वागड़ ही है जहाँ लोक संस्कृति के तमाम आयाम जनजीवन में गहरे तक समाये हुए हैं और वह भी साल भर बने रहने वाले पर्र्व-मेलों और त्योहारों से लेकर सामाजिक और सामुदायिक आयोजनों तक में। फिर होली जैसा पर्व तो वागड़ का ही अपना अनूठा त्योहार कहा जा सकता है जिसमें इंसान से लेकर पूरा का पूरा परिवेश तक मादकता के ज्वार में नहाता हुआ महसूस होता है।
वागड़ अंचल में होली प्रकृति से जुड़ा पर्व रहा है जिसमें माघ पूर्णिमा को सेमल के डाण्डे के रोपण से फागुन का बीजारोपण होता है और करीब डेढ़ माह तक होली की धूम रहती है जो घोटिया आम्बा मेले में जाकर पूर्ण होती है।
आमली ग्यारस के मेले, महूए की मदिर गंध, ढूंढ़, हुंवारी-फाफ्टा और पापड़ी हो या फिर कोई से व्यंजन, होली की गोठ, कोकापुर या शिवपुरा में अंगारों के साथ होली, भीलूड़ा की पत्थरमार होली, तलवाड़ा का कामणगान, जलती लकड़ियों, टमाटरों, कण्डों और पत्थरों से होली, ओबरी की फूतरा पंचमी, भुवनेश्वर, त्रिपुरा सुन्दरी और दूसरी जगहों की गैर हो या दूसरे जनजातीय नृत्य, वजवाना का आडिया खेल, सुरवानिया की गैर, गांवों में गढ़ भागना, सरेड़ी का ईलोजी, गलियाकोट-सागवाड़ा की होली, होली आणा, धुलेडी की धूम हो या होली को लेकर कोई सा आयोजन। हर आयोजन ऎसा कि हर कोई दंग रह जाता है।
शौर्य-पराक्रम, वीर, ओज रसों से लेकर श्रृंगार रसों की पराकाष्ठा तक के इन आयोजनों का मजा ही ऎसा है कि जो एक बार वागड़ की होली का आनंद पा लेता है वह जिन्दगी भर नहीं भूलता। सच में वागड़ की होली का कोई मुकाबला नहीं। तीन लोक से न्यारी है वागड़ की होली।