लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर हमला बंद करो –चंद्रशेखर को रिहा करो

लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर हमला बंद करो    –चंद्रशेखर को रिहा करो

लखनऊ————– भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद एक तरफ दलितों-पिछड़ों-आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं तो दूसरी तरह लोकतंत्र की बुनियादी संस्थाओं को ख़त्म करने की साजिशें हो रही हैं.

जस्टिस लोया हत्या मामले में तो इंसाफ नामुमकिन ही हो गया है. हो भी क्यों न जब देश के सर्वोच्च न्यायलय के चार-चार जजों को खुलेआम प्रेस कांफ्रेंस करना पड़ जाए और जब चीफ जस्टिस आफ इण्डिया खुद सवालों के घेरे में खड़े हो जाएं. पूर्व मुख्य न्यायधीश आरएम लोढा ने तो न्यायपालिका की स्थिति को ही ‘विनाशकारी’ बता दिया.

कार्यपालिका, विधायिका से लेकर न्यायपालिका तक में लोकतान्त्रिक मूल्यों का गला रेता जा रहा है. लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहे जाने वाले मीडिया का हाल तो इतना बदतर हो चला है की उसे ‘गोदी मीडिया’ से नवाजा जाने लगा है.

राष्ट्रीय अपराध ब्योरो के हवाले से बात की जाए तो दलित, पिछड़े, आदिवासी, महिलाओं के साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऊपर हमले लगातार बढ़ रहे हैं. यह गंभीर मामला है कि अन्याय का संस्थानीकरण हो रहा है. पूरी दुनिया में हो रही बदनामी को किनारे कर सरकारें इन हमलों को वैधानिकता दे रही हैं- कहीं विकास के नाम पर तो कहीं बढ़ते अपराध के बहाने से. संविधान की रक्षक न्यायपालिका खुद भारतीय संविधान की हत्या करने पर उतारू है.

पिछले साल 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती पर शब्बीरपुर में बाबा साहब की मूर्ति को लेकर विवाद हुआ। इसके बाद 5 मई को वहां दलित भाइयों-बहनों पर मनुवादी हमला हुआ और बाद में भीम आर्मी पर कहर बरसाते हुए चंद्रशेखर, शब्बिरपुर के प्रधान शिव कुमार और सोनू पर रासुका लगा। दमन का यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है।

इलाहाबाद के झूंसी, आज़मगढ़ के कप्तानगंज, सिद्धार्थनगर के गोहनिया, मेरठ, जालौन के काशीखेड़ा में अम्बेडकर प्रतिमाओं का न सिर्फ अपमान किया गया बल्कि अबकी बार अम्बेडकर जयंती पर योगी सरकार ने बाराबंकी के सरसोदी और सीतापुर में बाबा साहब की मूर्ति नहीं लगने दी।

एक तरफ योगी को दलित मित्र घोषित किया जा रहा है दूसरी तरफ एसएससी एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के खिलाफ 2 अप्रैल को भारत बंद करने वाले दलितों के खिलाफ योगी की पुलिस एक बार फिर हमलावर हुई। आज भी सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, हापुड़ से लेकर आज़मगढ़ के भदांव, सरायसागर, अजमतगढ़, झारखंडी, जीयनपुर, सगड़ी के इलाकों के दलितों पर फर्जी मुकदमे लादे गए और उन्हें जेलों में भेज दिया गया।

दहशत के इस माहौल से न केवल दलित छात्र-छात्रों की परीक्षाएं छूटीं बल्कि उन्हें सपरिवार अपना घर बार छोड़ कर भागना पड़ा। बलिया के रसड़ा में गाय चोरी के नाम पर दलितों के सर मुड़ा कर उनके गले में गाय चोर लिखी तख्ती बांध कर पीटते हुए घुमाया गया वहीं जजौली में दलित महिला को ज़िंदा जला दिया गया।

पुरकाज़ी, मुजफ्फरनगर के बिपिन कुमार को बौद्ध धर्म स्वीकारने के ‘जुर्म’ में जेल भेजा गया और रिहाई के बाद उनको पीटते हुए और जय माता दी का नारा लगाते हुए वीडियो भी वायरल कर दिया गया।

हालत यह है कि कासगंज से लेकर बलिया तक साम्प्रदायिक हिंसा, आगजनी और लूटपाट की घटनाओं को सत्ता समर्थित भीड़ अंजाम देती है। विधायक, सांसद, मंत्री तक दंगाइयों के साथ खड़े नज़र आते हैं। जबकि कानपुर और बाराबंकी के महादेवा में सांप्रदायिक घटनाओं के नाम पर मुस्लिमों पर रासुका लगा दिया जाता है।

अपराधियों को ठोंक देने की बात कहने वाले योगी राज में फर्जी मुठभेड़ों के सिलसिले की पोल तब खुल जाती है जब एक अपराधी का आडियो वायरल होता है। इसमें वह सुनीत सिंह नाम के एसएचओ से खुद को बचाने की बात कहता है और एसएचओ उसे सलाह देता है कि वह भाजपा के जिलाध्यक्ष संजय दूबे और भाजपा विधायक राजीव सिंह को मैनेज कर ले।

योगी द्वारा शौर्य सम्मान से सम्मानित आज़मगढ़ एसएसपी अजय साहनी की देखरेख में फर्जी मुठभेड़ों का परदाफाश एक बार फिर तब होता है जब 15 अप्रैल को विनोद यादव और कइयों को पहले से उठाने का मामला सामने आ गया और पुलिस को विनोद यादव को मजबूरन छोड़ना पड़ा। गाजियाबाद–साहिबाबाद थाना क्षेत्र के कोयल इन्क्लेव में 15 सितंबर को मोनू भाटी उर्फ मोनू गुर्जर के हाथ बांधकर गोली मारते पुलिसकर्मी की फोटो फर्जी इनकाउंटरों की सच्चाई बयान करने के लिए काफी है।

योगी के गृह जनपद गोरखपुर में बच्चों के डाक्टर कफील खान पर लापरवाही का फर्जी आरोप लगा कर जेल में ठूंस दिया गया जबकि उन्होंने महामारी से पीड़ित बच्चों को बचाने की हर सम्भव प्रयास की थी। दूसरी तरफ गौ हत्या के नाम पर खतौली, मुज़फ्फरनगर से महिलाओं को गिरफ्तार करने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह बलरामपुर के सादुल्ला नगर के नेवादा गांव तक पहुंच गया है जहां दादरी के एखलाक की तरह 11 अप्रैल को जीशान अहमद के फ्रिज में गौ मांस के नाम पर न सिर्फ उनको बल्कि महिलाओं को भी पुलिस उठा ले गई। उन्नाव में बलात्कार के आरोपी विधायक को बचाने के लिए जिस तरह सत्ता समर्थित भीड़ उतरी उसकी सच्चाई दुनिया के सामने खुलकर आ गई है।

दोस्तों, इन हालात में एक तरफ जब योगी, असीमानंद, माया कोडनानी पर आए फैसलों और देश में बढ़ते संवैधानिक संकट को लेकर देश चिंतित है तो दूसरी तरफ गढ़े हुए मुकदमों, फर्जी इनकाउंटरों और साम्प्रदायिक हिंसा के माध्यम से वंचित समाज का दमन जारी है।

इस हालात में बहुत सारे लोग लोकतंत्र पर हो रहे हमलों के खिलाफ सडकों पर लड़ रहे हैं. यह एक किस्म का नया प्रतिरोध है जोकि सिर्फ सत्ता में अपनी भागीदारी के लिए नहीं लड़ रहा है बल्कि उसके पास एक नये भारत का सपना है, समता-समानता और बंधुत्व के साथ हर कीमत पर इन्साफ हासिल करने का है.

लोकतंत्र का चौथा खम्भा जब अपने सबसे अंधकारमय वक्त से गुजर रहा है तो मीडिया विजिल जैसे संस्थान दीपक की तरह उस अंधेरे के खिलाफ सीना तानकर खड़े हैं. मीडिया विजिल के दो साल पूरे होने और सहारनपुर दलित हिंसा के एक साल पर इस सम्मेलन में आपकी भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

***** 6 मई 2018, रविवार, शाम 3:30 बजे *****

कैफ़ी आज़मी एकेडमी (गुरुद्वारा रोड), निशातगंज, लखनऊ
वक्ता-

कमल वालिया (भीम आर्मी) हिमांशु कुमार (गांधीवादी कार्यकर्ता)

पंकज श्रीवास्तव (संस्थापक, संपादक मीडिया विजिल) एस आर दारापुरी (पूर्व आईजी)

एडवोकेट शमशाद पठान (अल्पसंख्यक अधिकार मंच, गुजरात) अभिषेक श्रीवास्तव (कार्यकारी संपादक, मीडिया विजिल)

रिहाई मंच

110/60, हरिनाथ बनर्जी स्ट्रीट.
नया गांव (पू०),लाटौच रोड, लखनऊ
व्हाट्साएप — 9452800752, 8542065846.

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