- October 29, 2014
युवाओं तक वित्तीय पहुंच बढ़ाने पर क्रॉस क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 2014-
क्षणे नष्टे कुतो विद्या, कणे नष्टे कुतो धनम ।।
यह प्रसन्नता की बात है कि क्रॉस क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भारत में हो रहा है। एक राष्ट्र के रूप में हमारी बड़ी आबादी युवा है। निकट भविष्य में युवा हमारे नागरिकों के बढ़े अनुपात की अगुवाई करेंगे। भारत की जनसंख्या के प्रोफाईल को देखते हुए “युवाओं तक वित्तीय पहुंच बढाने” पर जोर के साथ सम्मेलन में विचार-विमर्श हमारे लिए मूल्यवान होगा।
मैं संतुष्टि के साथ कहता हूं कि सम्मेलन में इस क्षेत्र के जाने-माने विशेषज्ञ और क्षेत्र में बचत कार्यक्रम चलाने में व्यापक अनुभव रखने वाले लोग बड़ी संख्या में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। आपके विचार और साझा किये गए अनुभव बचत आन्दोलन को और तेजी देने में सहायक होंगे।
भारत समाज के रूप में भविष्य की पीढ़ियों तथा ज्ञान की प्राप्ती के लिए बचत के मूल्यों से प्रेरित है। हमारे एक शास्त्रीय ग्रंथ और सबसे पुरानी भाषा संस्कृत में एक श्लोक हैं:
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत ।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या, कणे नष्टे कुतो धनम ।।
इस श्लोक का अर्थ है कि ज्ञान और धन समय निवेश और निरंतर बचत से धीरे-धीरे अर्जित किया जा सकता है। यदि कोई समय का निवेश नहीं करता है तो वह ज्ञान अर्जित नहीं कर सकता और बिना बचत के धन सृजन नहीं हो सकता। यह आश्चर्य की बात नहीं कि भारत में आने वाली पीढ़ियो तथा उनकी शिक्षा के लिए बचत की दृष्टि से आय की एक निश्चित रकम अगल रख ली जाती है।
ऐसी समृद्ध परंपरा के साथ भारत बचत को बढावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास में हमेशा साझेदार रहा है। 1924 में अंतर्राष्ट्रीय बचत कांग्रेस में हस्ताक्षर के बाद से हम किफायत और बचत की आदत विकसित करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं और बचत की मदद से अकसर कठिन आर्थिक स्थिति से उबरने में मदद मिली है।
बचत को प्रोत्साहित करते हुए यह महसूस करना होगा कि सरकार कुछ अत्यंत वंचित वर्गों से एकत्रित बचत के रक्षक के रूप में कार्य करती है। यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है कि घरेलू बचत पूरी तरह सुरक्षित रहे निवेशकों को अच्छा लाभ मिले और आवश्यकता के समय निवेशक को धन उपलब्ध हो। इस एकत्रित धन का देश में टिकाऊ परिसंपत्तियां बनाने की उद्देश्य से उपयोग किया जाता हैं।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए लगभग 130 वर्ष पहले पहला नियामक ढांचा सरकारी बचत बैंक अधिनियम बना। औपनिवेशिक काल के बाद संविधान ने आर्थिक समानता लाने तथा अपने सभी नागरिकों की आर्थिक संवृद्धि के लिए अवसर देने की नैतिक जिम्मेदारी राज्यों को दी। बचत आर्थिक संमृद्धि का एक वाहक है।
संविधान द्वारा निर्धारित जिम्मेदारी के निभाते हुए सरकार ने बढ़ी आवश्यकताओं के अनुरूप छोटे बचत साधनों के लिए विधि ढांचे का विस्तार किया है। बचत प्रमाण पत्रों के लिए बचत को सही दिशा देने के लिए सरकार ने 1959 में बचत प्रमाण पत्र बनाया और गैर-संगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए लोक भविष्य निधि अधिनियम 1968 में बनाया गया।
छोटी बचतों को सक्रिय बनाने को सभी सधानों और योजनाओं को सरकार द्वारा पूर्णतः सुरक्षित बनाया गया है और इसे सरकार की गारंटी है। बचत के यह साधन आसान पहुंच प्रदान करते हैं और इनमें बचत कर्ता को तरलता देने की विशेषताएं हैं। सरकार की ओर से निवेश करने वाले लोगों को काफी कर प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय विकास में घरेलू बचत का योगदान शानदार रहा है। भारत अधिक घरेलू बचत करने वालों देशों में एक है। अभी घरेलू बचत जीडीपी का 30 प्रतिशत है। पिछले कुछ वर्षों में घरेलू वित्तीय बचत दर में गिरावट के बाद इसके उभरने के संकेत मिले हैं और अधिक बचत के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रमों के प्रचार प्रसार से हमने उंची बचत दर प्राप्त करने की आशा की। सरकार नीति के रूप में लोगों में बचत को प्रोत्साहित करने वाले नेटवर्क को नई सक्रियता देने और मजबूत बनाने के प्रति प्रतिबद्ध है।
भारत ने हाल में बचत को प्रोत्साहन देने के अनेक कदम उठाएं है। “जन धन योजना” इस दिशा में प्रमुख कदम है। सरकार ने छोटी बचत योजनाओं को बढाया है। सरकार लैंगिक असंतुलन की समस्या को दूर करने के लिए जल्द ही बालिका शिशु के लिए एक विशेष योजना की घोषणा करेगी। वंचित वर्ग को बीमा दायरे में लाने की योजना पर काम हो रहा है। उत्पादक उद्देश्यों के लिए बचत प्रवाह में बढोतरी के लिए योजनाओं को नया रूप दिया जा रहा है और विस्तार किया जा रहा है। हाल में हमने 50 प्रतिशत की छोटी बचतों में निवेश पर कर प्रोत्साहन में वृद्धि की है।
बच्चे तथा युवा लोग भविष्य के आर्थिक कारक हैं उनके संभावित परिवार प्रमुख, नियोजन कर्ता तथा समुदाय को योगदान करने वाले के रूप में उसके निर्णय का अंतिम रूप से प्रभाव विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिरता पर पड़ेगा। उन्हें भूमिका और जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार करना होगा। उन्हें कम से कम उम्र में वित्तीय मामलों से निपटने के लिए तैयार करने की आवश्यकता है। इसके लिए उनके परिवार तथा उनके स्कूलों का समर्थन चाहिए। युवा लोगों को अवसर देने के लिए एक प्रणाली-बद्ध तथा ढांचागत मंच बनाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। इसमें सामाजिक तथा सांस्कृतिक माहौल तथा कानूनी नियामक ढांचा बनाना शामिल है ताकि बच्चों और युवाओं का वित्तीय सम्पर्क सुगम हो सके। भारत में 35 वर्ष के आयुवर्ग से कम युवा लोगों का अनुपात काफी उंचा है। आशा है कि आने वालों दशकों में हमारी लगभग 2/3 तिहाई आबादी युवा होगी। अन्य विकासिल देशों की भी यही स्थिति है। भारतीय अर्थव्यवस्था की यह आज सबसे बड़ी ताकत है। युवा तथा औपचारिक वित्तीय सेवा पदाताओं के बीच संबंधो को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। ऐसा विभिन्न स्तरों पर टेकनोलॉजी इस्तेमाल से किया जा सकता है क्योंकि आज की युवा टैक्नॉलोजी के सम्पर्क में अधिक है। यही बात उन्हें वित्तीय उत्पादों की ओर आकर्षित कर सकती है। मुझे विश्वास है कि ड्ब्ल्यूएसबीआई: क्षेत्रीय सम्मेलन चुनौतियों से निपटने और युवाओं को अपना खाता खोलने और संचालित करने की प्रोत्साहन नीति बनाएगा।
भारत छोटे सक्रिय बचत कर्ताओं के लाभ के लिए तथा सतत आर्थिक विकास के लिए छोटी बचतों को नए सिरे से सक्रीय करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। राष्ट्रीय बचत संस्थान, डाक विभाग तथा बैकों का विश्व बचत बैंक संस्थान के साथ सहयोग इस दिशा में स्वागत योग्य कदम है और मैं आशा करता हूं कि यह सम्मेलन ख्याति प्राप्त प्रतिनिधियों के अनुभव के आधार पर नई रणनीति बनाने में सहायक होगा और सम्मेलन में आए प्रतिनिधि संसाधन जुटाने तथा बचत को प्रोत्साहन देने के भारत के अनुभव से लाभान्वित होंगे।
वित्तीय समावेश गरीबी के विरूद्ध लड़ने का सशक्त हथियारों में एक है। मैं यह जोर देकर कहना चाहूंगा कि ऐसा सहयोग इस सम्मेलन के साथ समाप्त न हो और वित्तीय समावेश के लिए रणनीति बनाने का प्रयास जारी रहे। वित्तीय मामलों में युवाओं को शामिल करने की बड़ी चुनौती से उचित रूप से निपटा जाएगा। इन शब्दों के साथ इस सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूं।