मानवता एक ही पोत पर सवार —- चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग

मानवता एक ही पोत पर सवार  —- चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग

21 अप्रैल को वार्षिक बोआओ फोरम फॉर एशिया में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने एक नयी वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) प्रस्तुत की। यह संगठन पुरानी वैश्विक विकास पहल (जीडीआई) का राजनीतिक समकक्ष है। उन्होंने जीडीआई की घोषणा 21 सितंबर, 2021 को संयुक्त राष्ट्र में की थी। जीएसआई ने यूक्रेन युद्ध पर नजर रखी जबकि जीडीआई को कोविड-19 के सामने वैश्विक आर्थिक संकट की प्रतिक्रिया के रूप में पेश किया गया था। दोनों ही पहलों का संबंध शी चिनफिंग के चर्चित नारे से रहा है जिसमें उन्होंने मनुष्यता के साझा भविष्य का समुदाय विकसित करने की बात कही। दोनों ही भाषणों में शी चिनफिंग ने मनुष्यता के साझा भविष्य के विचार की बात पर जोर दिया और कहा कि मानवता एक ही पोत पर सवार है। उन्होंने कहा कि सारी मानवता एक विशाल पोत पर है और हमारी साझा तकदीर भी उसके साथ ही है। भला इस बात से कौन असहमत होगा? लेकिन इन बड़ी-बड़ी बातों के पीछे बहुत सीमित ब्योरे थे। इसकी भाषा व्यापक और निरपवाद है। विभिन्न देशों के लिए इसका विरोध करना मुश्किल है।

जीडीआई को 100 से अधिक देशों का समर्थन हासिल है और संयुक्त राष्ट्र की कई विकास एजेंसियां भी इसके पक्ष में हैं। यह चीन की बेल्ट और रोड पहल (बीआरआई) जैसा ही है जिसे पहले विभिन्न अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों में शामिल किया गया।

चीन इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता और इन विचारों के प्रति वैधता के रूप में प्रदर्शित करता है। चीन इसे ही शक्ति की बहस की कवायद कहता है। ये अवधारणाएं विभिन्न प्रकार की व्याख्याओं को अपने आप में समेटे हैं जो चीन के राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों के साथ सुसंगत हैं। तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है कि जिन लोगों ने मासूमियत में इन अस्पष्ट इरादों वाले घोषणापत्रों पर हस्ताक्षर कर दिए हैं उन्हें इस अपेक्षाकृत ओछे चीनी हितों का भी ध्यान रखना पड़ता है। ऐसे में अधिनायकवादी चीन के प्रवक्ताओं द्वारा कही गई बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि चीन की वास्तविक चिंताओं और नीतिगत कदमों के संकेतों को समझा जा सके।

चीन कोविड-19 महामारी के जनक के नकारात्मक प्रचार से काफी चिंतित था। इस छवि का प्रतिकार करने का एक तरीका यह था कि वैश्विक आर्थिक सुधार में चीन के योगदान तथा विकासशील देशों को सहायता और बुनियादी ढांचागत निवेश के जरिये मदद पर ध्यान केंद्रित किया जाए। चीन का विकास सहयोग विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 2030 से जुड़ा हुआ है और इस संदर्भ में चीन को हमेशा विकासशील देशों के लिए आदर्श माना जाता रहा। बीआरआई का वाणिज्यिक इरादा और उसके भूराजनीतिक कारक इस विकास सहयोग के नारे के नीचे छिपे हुए थे।

जीएसआई की बात करें तो बोआओ के अपने भाषण में शी ने रूस-यूक्रेन जंग के असर पर प्रतिक्रिया दी। जीएसआई का विचार है अविभाज्य सुरक्षा या ऐसे कदमों से दूर रहना जिनमें एक देश दूसरे को असुरक्षित करके खुद की सुरक्षा मजबूत करता है। जीएसआई के विचार को उस विचार के प्रतिरोध के रूप में पेश किया गया जिसे चीन अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के वैचारिक और सैन्य ध्रुवीकरण के रूप में देखता था। उसे भय था कि उसको रूस के साथ जोड़ दिया जाएगा तथा यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस का सहयोगी घोषित कर दिया जाएगा। वैचारिक पहलू भी अहम है। शी के भाषण में दुनिया को लोकतांत्रिक तथा अधिनायकवादी देशों के खाके में बांटने के खिलाफ चेतावनी भी है। विरोधियों को आर्थिक तथा वित्तीय प्रतिबंधों के माध्यम से झुकाने के खिलाफ भी असहजता नजर आई। चीन को लगता है कि वह ऐसी नीतियों के चलते जोखिम में आ सकता है। जीएसआई में यह प्रतिबद्धता होगी कि ऐसे प्रतिबंध न लगाए जाएं। चूंकि दुनिया में ऐसे कई देश हैं जो एकतरफा आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर चिंतित हैं इसलिए चीन की जीएसआई को लोकप्रियता हासिल हो सकती है।

शी के भाषण से यह भी पता चलता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद चीन भूराजनीतिक दृष्टि से रक्षात्मक हो गया है। यह उसके पुराने रुख से एकदम अलग है जहां शक्ति संतुलन तेजी से उसके पक्ष में झुका था क्योंकि अमेरिका का पराभव हो रहा था, यूरोप बंटा हुआ था और एशिया में काफी हिचकिचाहट थी।

चार फरवरी को चीन और रूस के संयुक्त घोषणापत्र में दोनों देश इस बात पर सहमत दिखे कि अब वक्त आ गया है कि वे साथ मिलकर अपने दबदबे वाली उभरती व्यवस्था के नियम लिखें। दोनों ने यह सुनिश्चित करना चाहा कि आसपास के इलाके उनके प्रभाव में रहें। अमेरिका और पश्चिम के खिलाफ बयानबाजी तीक्ष्ण होने के बावजूद जीत का उपरोक्त भाव अब नदारद है।

एशिया में चीन को जिन खतरों का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें लेकर नयी आशंकाएं जतायी गई हैं। शी ने अपने भाषण में एशिया को काफी समय दिया और कहा कि वह वैश्विक शांति का वाहक, वैश्विक वृद्धि का पावरहाउस और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में शांति स्थापना का नया माध्यम है। उन्होंने कहा कि इन सकारात्मक कारकों को कुछ हालिया घटनाओं से नुकसान पहुंचा है। उन घटनाओं का उल्लेेख चीन के उपविदेशमंत्री ली युचेंग ने 6 मई को एक अंतरराष्ट्रीय थिंकटैंक को संबोधित करते हुए किया था। ली ने अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा था कि उसने हिंद प्रशांत रणनीति का इस्तेमाल ‘दूसरा खतरा’ उत्पन्न करने के लिए किया और एशियाई नाटो बनाने का यह प्रयास पहले ही मुश्किलों से घिरे इस क्षेत्र के लिए बहुत भयानक परिणाम लाने वाला साबित हो सकता है।

ली ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और ताइवान पर हमला करने की स्थिति में चीन की तकदीर की तुलना करने पर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि ताइवान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय औपचारिक रूप से चीन का हिस्सा मानता है और वह चीन का आंतरिक मसला है। उन्होंने कहा कि दोनों का एकीकरण होकर रहेगा। हालांकि उन्होंने इसके लिए सैन्य कार्रवाई की बात नहीं दोहराई।

कुल मिलाकर इन भाषणों से यही संकेत मिलता है कि चीन को लग रहा है कि सकारात्मक कारक कम हो रहे हैं तथा उसके समक्ष खतरे लगातार बढ़ रहे हैं। चीन की अर्थव्यवस्था में धीमापन आया है और शून्य कोविड नीति के कारण वहां आर्थिक हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। आर्थिक तथा वित्तीय प्रतिबंधों से चीन की हालत जिस तरह बिगड़ी है उसे देखते हुए चीन के लिए खतरा बढ़ गया है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पश्चिमी दबदबे वाले व्यापार और वित्तीय तंत्र से गहराई से जुड़ी हुई है। भले ही चीन ने समय से पहले जीत की घोषणा कर दी हो लेकिन संकेत यही हैं कि आगे बढ़ते हुए उसे अधिक सावधानी बरतनी होगी।

(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो हैं)

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