• September 25, 2016

मन की बात कड़ी -7 *डरपोक शासक देश के लिए घातक* –शैलेश कुमार

मन की बात कड़ी -7  *डरपोक शासक देश के लिए घातक* –शैलेश कुमार

आज मैं बहुुत ही दीनहीन हॅू। गुप्त और मौर्यवंश के कांटा आज सीने कोे इस तरह फाड़ दिया है कि कभी दर्द और दाग मिट नहीं सकता है। भारत के मुुुकुट और स्वर्ग आज दुुश्मनों के चरणों पर कंपीत और मर्दित है। आज उसके दया के पात्र बन कर उसकेे चरणोें मेें लौट रही है। वहीं भारत पांडव बन कर खड़ा किसी कृष्ण केे खोज में दर-दर भटक रहा है।

कारगिल की युु़द्ध जीतने मेें जो नौटंकी प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने किया वह किसी अज्ञान को भी शर्म से सर झूका देेता है। परंतु उड़ी और कारगिल में एक अंतर यह है कि प्रधानमंत्री मोदी में राष्ट्रवादियों का संस्कार है वहीं अटलबिहारी वाजपेयी राजनीतिक संस्कार से पुटित थेे। राजनीति हमेशा राष्ट्र के लिए घातक होता है। राजनीतिक संस्कार का अर्थ है की वह व्यक्ति येन केन प्रकारेण राजसी भोेग में लिप्त रहे। यह प्रधान मंत्री मोदी का ही श्रेय है कि आज अंतरराष्ट्रीय झुकाव इस तरह हो गया है कि दुश्मन देश छक्का का ऐेक्का बन कर रह गया है।

आज वहीं दुुुश्मन का अंतरंग दोेस्त आतंकवाद प्रायोजित घोेषित करनेे पर आमादा ही नही हैै संसद में बिल पेश भी कर दिया है। यह हमारी कुुटनीतिक विजय है लेकिन भूमि पर ही हमारे सुुरक्षा कर्मी का मारा जाना नैतिक पराजय है। दुश्मन का आतंकी मरता है। लेकिन हमारा सैनिक मरता है। हम यहाॅ मुुॅह के बल गिर रहे हैं । अगर दुुुश्मन का भी सैनिक मरता तो हमारी भौतिक विजय होेता।

प्रजातंत्र की सबसे बड़ी समस्या है कि वह संप्रभता को भी खतरेे में डालने से बाज नही आती है। प्रजातंत्र उस वेश्या की तरह है जोे उपर से लुुभावने मुुस्कान बिखेरती है और अंदर से दर्द भरी कहानियों का एक पूूॅज होती है।

राष्ट्र निर्माण केे लिए हम कुुछ आधुुनिक शासकों और विचारकों का कथन स्पष्ट करना चाहते है की शासन वो नही जो वे समझते है, शासन वह है जो ये कहते हैं:-

लोकतंत्र सिर्फ विशेष लोगों के नहीं बल्कि हर एक मनुष्य की आध्यात्मिक संभावनाओं में एक यकीन है——-सर्वपल्ली राधा कृष्णन ।

लोगों को सच्चा लोकतंत्र या स्वराज कभी भी असत्य और हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता है. — लाल बहादुर शास्त्री।

जिस प्रकार मैं एक गुलाम नहीं बनना चाहता, उसी प्रकार मैं किसी गुलाम का मालिक भी नहीं बनना चाहता. यह सोच लोकतंत्र के सिद्धांत को दर्शाती है.– अब्राहम लिंकन ।

जनता की, जनता द्वारा, जनता के लिए, सरकार पृथ्वी से नष्ट नहीं होगी -अब्राहम लिंकन ।

लोकतंत्र एक युक्ति है जो सुनिश्चित करती है कि हम जिस लायक हैं उससे सही ढंग से ना शाशित किये जाएं .-जार्ज बर्नाड शॉ ।

लोकतंत्र तब होगा जब गरीब ना कि धनाड्य शाशक हों. – अरस्तु ।

मछलियों कि तरह मेहमान भी तीन दिन बाद महकने लगते हैं.-बेंजामिन फ्रैंकलिन।

मैंने देखा है कि जब कभी भी किसी काम को करने के लिए एक आदमी पर्याप्त है तो दो व्यक्तियों द्वारा वो बदतर तरीके से होता है , और अगर तीन या अधिक लोग लगा दिए जाएं तो शायद ही पूरा हो पाता है—जार्ज वॉशिंगटन ।

जब भी आप खुद को बहुमत की तरफ पाएं तो समझ जाइये कि अब रुक कर सोचने का समय है.–मार्क ट्विन ।

चीजों को जितना ज्यादा वर्जित किया जाता है वो उतना ही लोकप्रिय हो जाती हैं.- मार्क ट्विन।

इतिहास जीतेने वालों द्वारा लिखा जाता है — विस्टन चर्चिल ।

मानव व्यवहार तीन मुख्य स्रोतों से निर्मित होता है- इच्छा,भावना और ज्ञान-प्लूटो ।

स्वतंत्रता की अधिकता, चाहे वो राज्यों या व्यक्तियों में निहित हो, केवल गुलामी की अधिकता में बदल जाती है-प्लूटो ।

एक अच्छा निर्णय ज्ञान पर आधारित होता है नंबरों पर नहीं.-प्लूटो ।

वाल स्ट्रीट ही एक ऐसी जगह है जहाँ रोल्स रोयस से चलने वाले लोग सब-वे से जाने वाले लोगों से सलाह लेने आते हैं. – वारेन बुफेट ।

ज्वार चले जाने के बाद ही पता चलता है कि कौन लोग नंगे तैर रहे थे. – वारेन बुफेट।

उपरोक्त कथन प्रयोग द्वारा सिद्ध है और हमेें गंभीरता से अनुसरण करनेे की आवश्यकता है।

राष्ट्र निर्माण के लिए यह बाधक है क्योंकि निर्माण के तहत हमें पड़ोसी राष्ट्रों कोे भी दबाने की जरूरत पड़ती है।

भारत एक राष्ट्र के रूप में उभड़नेे सेे विफल रहा क्योेंकि अंग्रजों ने अपनी वरदहस्त बनाये रखने के लिए एक अदूरदर्शी और निहायत चाटूकार केे हाथों सत्ता का हस्तांतरण किया ।

यह चाटूकार भारत जैसे विशाल देश की सत्ता पाकर पागल हो गया क्योेेंकि इसमेें शासन करने की क्षमता ही नहीं थी। जो अक्षम व्यक्ति उसे क्षम्य समझते हैं आज अंदर – अंदर रो रहे हैैं क्योंकि इन्हीं लोगों ने उसके समर्थित पार्टी को चुनाव के माध्यम से बार-बार सत्ता सौंप कर देश को दुर्गति के पथ पर खड़ा कर दिया है।

वर्तमान में यह इतना विषाक्त हो चुुका है कि किसी भी व्यक्ति को संभालने केे लिए ऐंड़ी चोटी करने पर भी हल नहीं हो सकता है क्योंकि विश्व के भूमंडलीयकरण से हर एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आवलंबित हो चुुका है, किसी न किसी रूप से सभी एक दूसरेे के सहयोगी हैै। इसलिए अगर इस भूमंडलीयकरण के विरूध जबतक कोई नकारात्मक कदम नहीं उठाते है तब तक समाधान नहीं होगा।

हम दो ही कदम उठा सकते हैं:-

(क) अगर हमें संप्रभूता और राष्ट्र को निर्भीक बनाये रखना है तो हम भूमंडलीय परिसर सेे बाहर होे जाय। युद्ध जैसे सशक्त कदम उठाये। इस अवस्था में हम एक-एक जनता का सहयोग अनंत काल तक पा सकते हैं।

(ख) अतंरराष्ट्रीय स्तर पर हम इतना प्रभावी हों की दुश्मन राष्ट्र खुद अपने आप ही हमसे दूर हो जाय। जिस प्रकार दुर्वासा के मोेहनी मंत्र से सूर्य कुंती के लिए घर में स्वतः आ गयेे। मोेहनी मंत्र से आधुनिक बाबा हजारों औरतों केे पति स्वरूपा जेल में बंद है।

हम अतित मेेें झाॅकतेेे है कि हमारा अतित कैसा था।

जब चंद्रगुप्त सिंकदर से पराजित हुए और एक बंदी केेे रूप मेेें सिकंदर के सामने हाजिर किये गये तो सिकंदर नेे पूछा – कहो तुम क्या चाहते हो?

निर्भीक चंद्रगुप्त ने उत्तर दिया – जो अब तक कैदी और पराजित शासकों के साथ किया गया है वही सलूक मेरेे साथ भी क्या जाय।

बहादुरी का मिशाल पेश देख सिकंदर हतप्रभ रह गया। मंथन के बाद चंद्रगुप्त को स्वतंत्र कर दिया गया।

उत्तर से जब संकद गुुप्त भारत पर हमला किया तोेे हमलेे की सूचना पाते ही उस समय आर्यावर्त के शासक भीम नौ-दो- ग्यारह हो गयेे।

इस समय भारत में ही नहीं विश्व में हिंदूू की तूती बोलती थी। गाथा, गौरव गाथा। गुणगान शौर्य का गुणगान। महिमामंडित राजोें की वीरता की महिमा मंडित । लोहा मनबाना ! कुटनीतिक लोेेहा। जब की इस समय शस्त्र नही अस्त्र का युग था।

हम इतिहास नहीं पढ़ा रहे है हम सिर्फ पूवर्जोेें केे शौर्य को याद कर रहेेें है आखिर हमारी संप्रभुता क्योें भयभीत हैै।

उनके पास क्या था जोे संप्रभुता निर्भय होकर पांव फैलाई लेकिन आज वहीं संप्रभुता अपने वस़्त्र में वस्त्रहीन हो रही हैै।

इसके लिए जिम्मेदार कौन ?

मर्यादा पुरूषोेत्तम राम केे सहनशीलता भी उस समय धैर्य खोे बैठा जब सीते की अपहरण हुआ तदुपरांत गांडीव हाथ में लिए जंगल में चल पडेेे़। सुग्रीव को राज्यच्युुत करने केे कारण बाली कोे मार दिये। अन्यायी कौरवों का सारथी बन संहार किया। अत्याचारी राजा नुहुस को सप्त ऋषियों ने मार दिया। भावार्थ यह कि अन्यायी को खत्म करना भारतीय संस्कृति की परंपरा रही है।

राजा जनता के लिए नही उसेे सताने और भयभीत करने के लिए है, अपने हितसाधकों के कारण निर्दोष जनता को शक्ति सेे कुचल देें । जब यह अवस्था आती है तो सत्ता कोे नियंत्रित करने के लिए धर्म एक माध्यम केे रूप में अवतरित होेता है। हमारे धर्म में सिर्फ एक शब्द है – धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युुगे (श्लोक -8,गीता अध्याय-4) । धर्मसंस्थापनार्थाय का अर्थ यह नही है कि अगल धर्म की स्थापना और प्रचार।

इसका अर्थ है कि नीतिगत और जन कल्याणकारी व्यवस्था करना । जैसेे – कौरव को नाश कर पांडव कोे सत्ता सौंपना। रावण को खत्म कर विभीषण को राजागद्दी सौंपना,बालि को मार कर सुग्रीव कोे राजा बनाना।

अगर राजा शांति का दूत हैे और इसका फायदा उठाकर पड़ोसी राष्ट्र हमला करता है या राष्ट्र के आंतरिक रूप से अंशाति फैला रहा है इस अवस्था में- हे केशव ! युुद्ध करोें। यह हमारी धर्म का कहना है।

अगर हम इसका पालन नही करते है तोे राष्ट्र षडयंत्रोेें का केन्द्र बन जायेगा और राष्ट्र का अस्तित्व लुप्त हो जायेगा। जैसे आज ’’ गोल’’ राष्ट्र लुप्त हो चुका हैेे जिसका प्रभुत्व विश्व पर था यहाॅ तक की ब्रिटेन भी ’’गोल’’ राष्ट्र का गुलाम रह चुका हैै। ’’गोल’’ राष्ट्र आधुनिक फ्रांस। ऐसे ही शक्तिशाली राष्ट्र कभी आस्टिया हुआ करता था। अगर वर्तमान से तुलना करें तो इसकी स्थिति भारत की तरह थी।

हर धर्मावलंबीयों नेे आस्टिया को साथ न देकर अपने – अपने संबंधीत राष्ट्र को उस समय साथ दिया जब उस पर सभी ने मिल कर हमला किया। जैसे अभी भारत में अधिकांश मुस्लिम पाकिस्तान कोे साथ देे रहा हैै। आज विश्व का बादशाह और भारत का लुटेेरा मानचित्र से लुप्त हो रहा है। वहां भी भारत के भोंदू प्रधानमंत्री जैसे मैटरनीक प्रधानमंत्री हुआ करता था ।

एडोल्फ हिटलर तानाशाह बना । इसमें हिटलर का कोई दोष नही है। अपनेे ही देश में जब विरोधी पैदा हो जाय जो राष्ट्रहित के लिए घातक है तो उसे समाप्त कर देना चाहिए। जैसे अभी भारत मेें है। अगर राष्ट्र का हित देखना है तो निश्चित रूप से एक- एक देश द्रोही और आतंकवादी समर्थको को खत्म कर दिया जाना चाहिए। चाहे वह भाई और बाप ही क्योें न हो!

अगर शासक यह कदम नहीं उठा रहा है तो निश्चित तौर पर शासक डरपोक और निहायत कायर हैै। ऐसे शासक से ही राष्ट्र का विनाश ही संभव है।

यहाॅ मै आधुुनिक शासको में से कुुछ विख्यात राष्ट्रनायकों के कथनों को उद्धृत करना युुक्तिसंगत समझता हॅू-ः-

फ्रांस का राष्ट्र नायक नेपोलियन बोनापार्ट:-

– एक लीडर उम्मीदों का व्यापारी होता है ।
– कोई व्यक्ति अपने अधिकारों से ज्यादा अपने हितों के लिए लडेगा ।
– अवसर के बिना काबिलियत कुछ भी नहीं है ।
– मौत कुछ भी नहीं है,लेकिन हार कर और लज्जित होकर जीना रोज मरने के बराबर है।
– हजार चाकुओं की तुलना में चार विरोधी अखबारों से अधिक डरना चाहिए ।
– जितनी मुझे फ्रांस की जरुरत नहीं है उससे ज्यादा फ्रांस को मेरी जरुरत है ।
– वो जो प्रशंशा करना जानता है, अपमानित करना भी जानता है ।
– मैंने अपने सभी सेनापति कीचड से बनाये हैं ।
– अगर आप चाहते हैं कि कोई चीज अच्छे से किया जाये तो उसे खुद कीजिये ।
– असंभव शब्द सिर्फ बेवकूफों के शब्दकोष में पाया जाता है ।
– राजनीति में कभी पीछे ना हटें,कभी अपने शब्द वापस ना लें और कभी अपनी गलती ना मानें ।
– कभी भी जब आपका शत्रु कोई गलती कर रहा हो तो उसके काम में बाधा मत डालिए।
– धर्म आम लोगों को शांत रखने का एक उत्कृष्ट साधन है ।
– मेरे शब्दकोष में असंभव शब्द नहीं है ।
– जीत उसे ही मिलती है जो सबसे दृढ़ रहता है ।

जर्मनी केे निर्माता अडोल्फ हिटलर के विचार

– कुशल और निरंतर प्रचार के जरिये, लोगों को स्वर्ग भी नर्क की तरह दिखाया जा सकता है या एक बिलकुल मनहूस जीवन को स्वर्ग की तरह दिखाया जा सकता है।
– यदि कोई इंसान बहुत सी कठिनाइयों के बावजूद जीतता है तो यह इतिहास है।
– शक्ति बचाव में नहीं आक्रमण में निहित है।
– मुझे ये नहीं समझ आता कि इंसान प्रकृति के जितना ही क्रूर क्यों नहीं हो सकता।
– नफरत नापसंदगी की तुलना में अधिक स्थायी होती है।
– कितना भाग्यपूर्ण है उन सरकारों के लिए कि जिन लोगों पर वो शासन करते हैं, वे सोचते नहीं।
– चुनाव के माध्यम से एक महान व्यक्ति खोजने से पहले एक ऊंट सुई की आंख से निकल जायेगा।
– मानवतावाद मूर्खता और कायरता की अभिव्यक्ति है।
-कोई भी गठबंधन जिसका उद्देश्य युद्ध शुरू करना नहीं है वो मूर्खतापूर्ण और बेकार है।
-आश्चर्य, भय, तोड़-फोड़, हत्या के जरिये दुश्मन को अन्दर से हतोत्साहित कर दो। यह भविष्य का युद्ध है।
-किसी देश को जितने के लिए सबसे पहले उसके नागरिकों को काबू में करो।
– मैं केवल उस चीज के लिए लड़ सकता हूँ जिसे मैं प्यार करता हूँ, उसे प्यार करता हूँ जिसे मैं आदर देता हूँ, और उसे आदर देता हूँ जो मैं जानता हूँ।
-एक बार निर्णय लेने के बाद कभी उसे मत पलटो चाहे इसके लिए आपको हजारों तकलीफे उठानी पड़े।

देश को रसातल में पहुंचाने वाले पं जवाहर लाल नेहरू:-

-हमने नियति को मिलने का एक वचन दिया था, और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को निभाएं, पूरी तरह ना सही, लेकिन बहुत हद्द तक।

-ये हमारे लिए एक सौभाग्य का क्षण है, एक नए तारे का उदय हुआ है, पूरब में स्वतंत्रता का सितारा।

-एक नयी आशा का जन्म हुआ है, एक दूरदृष्टिता अस्तित्व में आई है।

-काश ये तारा कभी अस्त न हो और ये आशा कभी धूमिल न हो। हमे कठिन परिश्रम करना होगा।

-हम में से कोई भी तब तक चैन से नहीं बैठ सकता है जब तक हम अपने वचन को पूरी तरह निभा नहीं देते, जब तक हम भारत के सभी लोगों को उस गंतव्य तक नहीं पहुंचा देते जहाँ भाग्य उन्हें पहुँचाना चाहता है।

-हम और संकीर्ण सोच को बढ़ावा नहीं दे सकते,क्योंकि कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।

राष्ट्रनायक सुभाष चंद्र बोस:
– तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा!
– राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम् , शिवम, सुन्दरम् से प्रेरित है।
– याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है ।
– इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श से कोई वास्तविक परिवर्तन हासिल नहीं हुआ है।
-एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की जरुरत होती है।
– आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके

अमेेरिका केे प्रथम राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन:-

लगभग सभी लोग गरीबी से जूझ सकते हैं, लेकिन अगर आप किसी के चरित्र का परिक्षण करना चाहते हैं तो उसे शक्ति दीजिये।

अगर कोई भी काम कोई व्यक्ति अच्छे से कर सकता है, तो मैं कहूँगा उसे करने दीजिये। उसे एक मौका दीजिये।

क्या मैं अपने दुश्मनों से दोस्ती करके अपने दुश्मनों को खत्म नहीं कर रहा हूँ ?

मैं अपने बारे में ये कहलाना पसंद करूँगा की जहाँ भी मुझे लगा की यहाँ फूल विकसित हो सकते हैं मैंने हमेशा झाड़ियों और कांटेदार पौधों को उखाड़कर फूलों को बोया है।

मुझे अगर किसी पेड़ को काटने के लिए 6 घंटे का समय तो मैं 4 घंटे अपनी कुल्हाड़ी को धारदार बनाने में बिताऊंगा।

अगर आप किसी भी व्यक्ति के अन्दर बुराई खोजने की इच्छा से देखते हैं तो आपको जरुर मिल जाएगी।

– लोगों का प्रथम कर्तव्य स्वयं के बारे में सोचना है —जोश मार्टी

– लोकतंत्र ! दो भेड़िये और एक भेड़ बीच क्या खाना है, निर्णय करने से कुछ हद तक बेहतर है —जेम्स बोवार्ड

मैं अब कुछ कवियों के माध्यम सेे इस आलेख को विराम देता हॅू:-

-अंध कक्षा में बैैठ रचोेेेगे उॅचे मीठे गान , या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान। – रामधारी सिंह दिनकर।

-पथ न मलिन करते आना, पद चिन्ह न दे जाते आना। सुधि मेरे आगम की जग में, सुख की सिहरन हो अंत खिली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली ! – महादेेवी वर्मा।

महादेवी वर्मा के इस छंद से इसलिए समाप्त कर रहा हॅू की राजनीतिक पार्टीयों नेे लोकतंत्र को दुख भरी कदली बना दिया है।

उपरोक्त शासकों के परिणाम से यही निष्कर्ष निकलता है कि देश की रक्षा सिर्फ मूर्ख और साक्षर ही कर सकते हैं क्योंकि पढे लिखे निर्णय लेने में सिर्फ समय ही नहीं देश को भी हतोत्साहित करते है और बहुसंख्य जनता के हितों के विरुद्ध निर्णय लेते हैं, भारत में अब तक के प्रधानमंत्री योग्य हुए इसीलिये समस्या नहीं सुलझ सका है इसके लिये व्यक्ति नहीं योग्यता दोषी है, काश ! नेपोलियन बोनापार्ट और हिटलर की तरह हमारे भी प्रधानमंत्री होते तो आज भारत की भी तूती अमेरिका की तरह बोलती ——-काश !!

    (समाप्त)

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