- January 12, 2016
भू-स्खलन आपदा से बचाव पर परिसंवाद
हिमाचल प्रदेश ——————— भू-स्खलन के खतरों से निपटने के लिए हित धारक विभागों के लिए राज्य राजस्व विभाग और मौसम परिर्वतन पर विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण राज्य परिषद् के राज्य केन्द्र द्वारा भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के तकनीकी सहयोग से आज यहां परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस दौरान राज्य के भू-स्खलन संभावित क्षेत्रों में भू-स्खलन एवं लहासे गिरने की स्थिति तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं की संभावनाओं एवं बचाव पर विस्तृत चर्चा की गई।
राजस्व एवं आपदा प्रबन्धन के विशेष सचिव श्री डी.डी. शर्मा ने इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में भू-स्खलन एवं ग्लेशियरों से नुकसान से बचने के लिए आवश्यक मानदंड तैयार करने, डाटा-बेस बनाने, विस्तृत सूची तैयार करने, आपदा क्षेत्रों की निगरानी एवं समुचित प्रबन्धन पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आपदा के आकलन, बचाव, निगरानी, चेतावनी एवं तैयारियों को लेकर भारत में काफी खामियां हैं और आवश्यकता है कि आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाए। उन्होंने आपदा प्रबन्धन में पारम्परिक सोच से आगे बढ़कर नवीन तकनीकों के इस्तेमाज अपनाने के अतिरिक्त आपदा संभावित क्षेत्रों, परियोजनाओं के विकास के लिए वैज्ञानिक तौर पर निर्मित नक्शों के समुचित उपयोग करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
उन्होंने कहा कि राज्य में भू-स्खलन प्रमुख आपदा है जिससे जीवन, आजीविका एवं परिसंपत्तियों का भारी मात्रा में नुकसान होता है। सड़क निर्माण, जल विद्युत परियोजनाएं एवं अन्य ढांचागत विकास जैसी तेजी के साथ बढ़ रही विकासात्मक गतिविधियां मुख्य रूप से पर्यावरण के अवमूल्यन के लिए जिम्मेवार है, क्योंकि इन गतिविधियों के दौरान खुदाई, विस्फोटन, सुरंग एवं आरसीसी निर्माण किया जाता है। भू-स्खलन जोखिम प्रबन्धन पर विचार किए बिना ढलानों पर व्यावसायिक एवं बेतरतीब अवैज्ञानिक विकास में वृद्धि के चलते नुकसान बढ़ रहे हैं।
श्री डी.डी. शर्मा ने इन क्षेत्रों में सूचना आदान-प्रदान की दूरी को कम करने, डाटा बेस, नक्शे, मापदंडों, तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी की आवश्यकता पर बल दिया। विकासात्मक नीतियों एवं कार्यक्रमों में आपदा के खतरे को कम करने एवं मौसम बदलाव के अनुकूल कार्य करने पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने राज्यों को विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का कहा है जिसमें 80 और 20 के अनुपात में हिस्सेदारी के आधार पर भू-स्खलन के प्रभावों को कम करने पर 15 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जा सकती है।
विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण राज्य परिषद् के संयुक्त सदस्य सचिव डा. एच.के. गुप्ता ने कहा कि भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण नोडल एजेंसी के संयुक्त तत्वावधान में राज्य में भू-स्खलन खतरों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने एवं इससे निपटने की कार्यनीति तैयार करने के उददेश्य से भारत सरकार के दिशा-निर्देशानुसार इस परिसंवाद का आयोजन किया गया। भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण द्वारा भारतीय हिमालयी क्षेत्रों, विशेषकर हिमाचल प्रदेश में भू-स्खलन पर किए गए अध्ययन एवं कार्यों पर परिसंवाद के दौरान विशेष महत्व दिया गया।
भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के निदेशक श्री बी.एम. गरोला ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के कार्यकलापों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विभाग प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए हितधारकों के मध्य व्यापक जागरूकता उत्पन्न करने का कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य के अनेक क्षेत्र भू-स्खलन एवं अन्य प्राकृतिक आपदा संभावित हैं तथा जन-जीवन एवं संपत्तियों के नुकसान के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
मौसम परिर्वतन पर हि.प्र. राज्य केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डा. एस.एस. रणधावा ने हिमाचल प्रदेश में आपदा की आशंकाओं पर विस्तृत प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि राज्य के कुछ जिले सिसमिक जोन-5 के अन्तर्गत आने के कारण भूकंप संभावित हैं। उन्होंने कहा कि विभाग भूकंप के खतरों, ल्हासों, बाढ़ एवं ग्लेशियरों इत्यादि से संभावित खतरों के बारे में सम्बन्धित कर्मियों एवं आम जनता को जागरूक करने के उददेश्य से प्रशिक्षण शिविरों का नियमित तौर पर आयोजन कर रहा है।
भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के श्री मृगंका घाटक और श्री राहुल वदाकेदत्त ने हिमाचल प्रदेश में भू-स्खलन की स्थिति पर प्रस्तुतियां दी।