- July 21, 2017
भूमि पूलिंग व्यवस्था बेहतर विकल्प- अतिरिक्त मुख्य सचिव
जयपुर—————औद्योगिक, टाउनशीप, रिंगरोड़ सहित समग्र विकास के लिए भूमि अधिग्रहण के स्थान पर समन्वित प्रयासों से भूमि पूलिंग व्यवस्था अधिक कारगर सिद्ध हो सकती है।
आंध्रपदेश की नई राजधानी अमरावती सहित देश के कई हिस्सों में विकास के लिए भूमि प्राप्त करने का यह मॉडल अधिक सफल रहा है। इससे समावेशी सहभागिता तय हो पाती है। यह निष्कर्ष गुरूवार को यहां हिल्टन होटल में एशियन विकास बैंक की सहभागी संस्था इकोरस द्वारा आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में उभर कर आया।
अतिरिक्त मुख्य सचिव उद्योग श्री राजीव स्वरुप ने कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कहा कि औद्योगिक या टाउनशीप विकास के लिए भूमि अधिग्रहण ही अंतिम विकल्प नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि आपसी समझाइश और विकास में हिस्सेदारी तय करते हुए भूमि पूलिंग के माध्यम से अधिक कारगर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। इससे विवाद की संभावना कमतर होने के साथ ही विकास कार्यों में तेजी आएगी।
श्री राजीव स्वरुप ने कहा कि जनसांख्यकीय और भूमि की उपलब्धता के साथ ही इज ऑफ एक्विजेशन और इज ऑफ इंवेस्टर भी जरुरी है। प्रदेश में औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के साथ ही कलस्टर विकास के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य हुआ है। उन्होंने बताया कि राज्य में इण्डस्टि्रयल कोरिडोर विकसित किया जा रहा है।
उद्योग आयुक्त श्री कुंजी लाल मीणा ने कहा कि विकास के लिए भूमि लेते समय किसान परिवार को रोजगार, आय और एकमुश्त भुगतान किया जाता है तो यह काम अधिक आसानी से संभव है। उन्होंने कहा कि अधिग्रहित भूमि के परिवार को उद्योग में रोजगार मिले, उद्योगों के विकास में से एक सीमा तक लाभांश की तरह राशि दी जाती है और अधिग्रहित भूमि के एकमुश्त भुगतान से काश्तकार की भागीदारी तय होगी और उसके परिवार को दीर्घावधी के लिए आय और रोजगार के लिए संसाधन जुटाने के अवसर मिल सकेंगे।
श्री मीणा ने कहा कि एकबारीय भुगतान से किसान जल्दी ही आर्थिक विकास की मुख्य धारा से हट जाता है और प्राप्त राशि का सही उपयोग भी नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि उपलब्ध भूमि के अधिकतम उपयोग और वेलफेयर प्राथमिकता होनी चाहिए।
रीको एमडी मुग्धा सिन्हा ने कहा कि प्रदेश में औद्योगिक क्षेत्रों के विकास की रीको पायोनियर संस्था है। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि आजादी के बाद से खेती की भागीदारी 60 प्रतिशत से घटकर 18 से 20 प्रतिशत रहने के बावजूद कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई हैं वहीं 90 के दशक के लगभग 20 प्रतिशत औद्योगिक भागीदारी लगभग स्थिर चल रही है।
उन्होंने कहा कि एलाइड व सेवा क्षेत्र में 1950 की 28 प्रतिशत भागीदारी में तेजी से बढ़ोतरी होते हुए आश्चर्यजनक रुप से यह 63-65 प्रतिशत तक हो गई है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक विकास की गति में भी तेजी लानी होगी। कार्यशाला में जयपुर विकास प्राधिकरण आयुक्त श्री वैभव गालरिया ने भी भूमि अधिग्रहण को लेकर विचार व्यक्त किए।
आरंभ में इकोरिश के टीम लीडर डेविड ब्राउन ने स्लाइड प्रस्तुतिकरण के माध्यम से विकास के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि राजस्थान देश में 12 वें स्थान पर है।
केन्द्र सरकार के पूर्व नगरीय विकास सचिव डॉ. सुधीर कृृष्णा, निदेशक एल्केमी अरबन सिस्टम बीआर बालाचन्द्रन, निदेशक अरबन प्लानर शोभित तायल, एशियन विकास बैंक की प्रिंसिपल इकोनोमिस्ट जोहन्ना बायोस्टेल ने प्रजेटेशन के माध्यम से सूरत रिंग रोड, मगरपट्टी सहित गुजरात और महाराष्ट्र मॉडल की विस्तार से जानकारी दी।
आंध्रप्रदेश से अमरावती विकास की स्काइप के माध्यम से डॉ. शास्त्री ने जानकारी दी। कार्यशाला मेें अतिरिक्त निदेशक एलसी जैन, पीके जैन, प्रभारी संयुक्त निदेशक अविन्द्र लढ्ढा, सीएल वर्मा, उपनिदेशक सुभाष शर्मा, आरके नागर, डीएन माथुर नगरीय विकास के एसटीपी विजयवर्गी ने भी सुझाव दिए। कार्यशाला का संचालन इकोरस के निदेशक रोहन कृष्णा ने किया।
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