• December 27, 2015

भाजपा : अनिश्चित भविष्य की ओर :- प्रदीप के. माथुर

भाजपा : अनिश्चित भविष्य की ओर :- प्रदीप के. माथुर

सामयिक विश्लेषण –

 क्या बिहार चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार का वर्चस्व समाप्त हो गया हैक्या अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके बड़े नेता बचाव की मुद्रा में हैंक्या बढ़ती कीमतें और घटता निर्यात भाजपा सरकार के चुनावी वादों को बेमानी सिद्ध कर रहा हैऔर यदि यह सच हो तो भारत की जनता के सामने राजनीतिक विकल्प क्या है?

(पीपुल्स सिंडीकेट)—————-यह तमाम टेढ़े प्रश्न आज हर उस व्यक्ति के सामने है जिसने बड़े उत्साह और आशा के साथ लगभग 20 माह पूर्व नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार को पूर्ण बहुमत देकर केन्द्र में सत्ता के सिंहासन पर बिछाया था। भाजपा के बड़े नेता इन प्रश्नों को झुठलाने के लिए कुछ भी कहें सच तो यह है कि इन प्रश्नों से भाजपा का आम कार्यकर्ता भी उतना ही असहज है जितना कि भाजपा के राजनीतिक विरोधी। उसे आप अपनी पार्टी का भविष्य अनिश्चित लगता है। images

यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा सरकार अपनी समस्याओं के लिए हाशिये पर पड़ी 45 लोकसभा सदस्यों वाली कांग्रेस, करीब-करीब लुप्त प्राप्त कम्युनिस्ट दल और प्रेस को जिम्मेदार मानती है। यह एक ऐसी शुतुरमुर्गी प्रवृत्ति है जिसके कारण भाजपा न तो स्थित का सही आकलन कर पा रही है न ही आत्ममंथन जो वर्तमान स्थित से उभरने के लिए बहुत आवश्यक है।

भाजपा के अधिकांश नेता और पार्टी के प्रवक्तागण भाषण कला के बहुत प्रवीण हैं। तर्कों को तोड़-मोड़ कर प्रस्तुत करना तथा असहज प्रश्नों से बचने की कला में वह दक्ष है। पर शायद यह कला ही आज उनकी सबसे बड़ी समस्या है। वह स्वयं अपने ही बुने हुए शब्दजाल के बंदी हैं और उसके बाहर निकल कर वह वास्तविकता का सामना करने से डरते हैं। उनके लिए सबसे आसान काम सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को गाली देना और प्रेस को भाड़े का टट्टू बताना है। उनके हिसाब से देश में स्थित बिल्कुल सामान्य है और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश तेजी से आगे बढ़ रहा है।

प्रश्न यह है कि क्या भाजपा उनकी बात सुन रही है ? क्या आम मतदाता इस बात से सहमत हैं कि कांग्रेस में सब लोग भ्रष्ट हैं और भाजपा किसी भी तरह के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से पूरी तरह से पाक और साफ है। क्या वसुन्धरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, येदुरप्पा, सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी तथा अरुण जेटली आदि सब देवदूत हैं जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया और सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल और उनके साथी तथा लालू यादव और उनका परिवार वह दैत्य हैं जो सब कुछ गलत करते हैं । क्या 60 वर्ष से अधिक समय तक 100 करोड़ बार वोट डालकर और 1 लाख से अधिक प्रत्याशियों के चुनावी भाषण सुन कर भी भारत का मतदाता इतना अबोध है कि भाजपा के नेता उसको जो भी बतायेंगे और समझायेंगे उसे वह प्राइमरी स्कूल के बालक की भांति स्वीकार कर लेगा।

आज भाजपा का सबसे बड़ा दुश्मन यह छलावा और आत्मभ्रांति है न कि उसकी विपक्षी पार्टियों के नेता। इसी कारण भाजपा नेतृत्व पार्टी के अंदर उठ रहे विरोध के स्वर, असंतोष और अन्तर्द्वंद्व को भी नहीं देख पा रहा है। यह स्पष्ट है कि भाजपा के अंदर सरकार और सरकार के बाहर एक बहुत बड़ा वर्ग है जो नरेन्द्र मोदी की प्रशासन शैली का विरोधी है। इसमें न सिर्फ मार्गदर्शक मंडल के लालकृष्ण आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी जैसे पुराने आर.एस.एस. कार्यकर्ता हैं बल्कि मोदी मंत्रिमंडल के राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, कलराज मिश्र तथा डॉ. हर्षवर्धन जैसे मंत्रीगण भी हैं। विपक्ष से कहीं ज्यादा संघ परिवार समर्थक यह कहते पाये जाते हैं कि आज देश और पार्टी को मोदी-शाह-जेटली की तिकड़ी चला रही है न कि कोई और।

आखिर इस स्थित का कारण क्या है? मान भी लिया जाये कि विपक्ष अपने अड़ियल रवैये से संसद नहीं चलने दे रहा। पर क्या वह दिन-प्रतिदिन के सरकारी कामकाज में रोड़े अटका रहा है। किसी भी वरिष्ठ अधिकारी से पूछिये तो वह आपको बता देगा कि इस समय सरकारी फाइलों के चलने की रफ्तार डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के समय से भी ढीली पड़ी है। देश के तमाम बड़े-बड़े पद खाली हैं क्योंकि उन पर नियुक्ति का निर्णय ही नहीं लिया जा रहा। जिन पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो गई वहाँ भी नियुक्त व्यक्ति कार्यभार नहीं ले पाये हैं क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय से उनकी फाइल वापिस नहीं आई है। आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय मे ऐसी फाइलों का बड़ा अंबार लगा हुआ है। अब शायद स्थित और भी खराब हो क्योंकि यू.पी.ए. शासन के कोल स्कैम (कोयला घोटाले) की आंच मोदी के प्रधान सचिव निपेन्द्र मिश्रा पर भी आ गई है और अब प्रधानमंत्री का सारा प्रयास और ध्यान अरुण जेटली के साथ-साथ नृपेन्द्र मिश्र के बचाव में लगेगा।

 भाजपा सरकार और संघ परिवार चाहे जितना प्रयास करें आने वाले दिनों में अरुण जेटली और मोदी सरकार के लिए उतना बड़ा सिरदर्द होने वाले हैं जितना कि ए. राजा डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के लिए सिद्ध हुए थे। बल्कि अरुण जेटली उससे भी बड़ी समस्या होंगे क्योंकि ए. राजा न कांग्रेस के नेता थे और न ही डॉ. मनमोहन सिंह के तीन-चार महत्वपूर्ण मंत्रियों में उनकी गिनती होती थी। अरुण जेटली तो देश और सरकार को चलाने वाली तिकड़ी के सदस्य हैं।

 अरुण जेटली के बचाव में कुछ भी कहा जाये दो बाते निर्विवाद सत्य हैं—एक तो यह है कि डी.डी.सी.ए. के कार्य संचालन में बहुत अनियमितताएं हुई हैं और वह भ्रष्टाचार का गढ़ है। सबसे बुरी बात यह है कि पैसे लेकर किशोर और नवोदित खिलाड़ियों का चयन किया जाता रहा है। दूसरी बात यह है कि जो हो रहा था उसकी पूरी जानकारी अरुण जेटली को थी क्योंकि जैसा पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान बिशन सिंह बेदी ने कहा – डी.डी.सी.ए. में एक पत्ता भी अरुण जेटली की मर्जी के बिना नहीं हिलता था।

 लगता है कि अरुण जेटली का बचाव करने में भाजपा को लोहे के चने चबाने पड़ेगे क्योंकि उसका टकराव अरविन्द केजरीवाल से है न कि कांग्रेस से। अरविन्द केजरीवाल आयकर विभाग में उच्च अधिकारी रहे हैं और आय-व्यय के लेखे-जोखे की सब बारीकियां जानते हैं। फिर वह जन आंदोलन से आये संघर्षरत नेता हैं। उनसे दुश्मनी लेकर भाजपा ने आग में हाथ डाला है।

चाहे अरुण जेटली का मसला हो चाहे मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला या फिर अरुणाचल प्रदेश की राजनैतिक पैतरेबाजी जिसमें उच्च न्यायालय ने भाजपा नियुक्त राज्यपाल के आचरण पर गंभीर सवाल उठाये हैं। भाजपा ने शुचितापूर्ण राजनीति के अपने दावे को बिल्कुल खारिज कर दिया है। उसका चरित्र अब एक सत्तालोलुप राजनैतिक दल की तरह हो गया जो सत्ता प्राप्ति के लिये साम, दाम, दण्ड, भेद कुछ भी कर सकती है। जब सत्ता ही सबसे बड़ा ध्येय हो तो भाजपा तथा अन्य दलों में अंदर ही नहीं रह जाता। इस तरह भाजपा ने देश के उस बहुत बड़े मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को निराश किया है जो इससे राजनीति की बारीकियों को समझे बिना, एक स्वस्थ, ईमानदार और मूल आदर्शों पर चलने वाले प्रशासन की अपेक्षा कर रहा था।

 यदि व्यापार प्रबंधन की भाषा में कहा जाय तो भाजपा ने आज अपना यू.एस.पी. (विशिष्ट विक्रय बिन्दु) खो दिया है जो दीन दयाल उपाध्याय से लेकर अटल-आडवाणी युग तक बराबर इसके साथ था। इसलिये आज जबकि भाजपा कि सरकार पूर्ण बहुमत से सत्ता में है और कोई भी विपक्षी दल भाजपा को चुनौती देने की स्थित नहीं है, भाजपा के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ी संकट की घड़ी है। यह विडम्बना ही कही जायेगी आज देश का सबसे बड़ा और शक्तिशाली राजनीतिक दल अपने यौवन के बीच अपनी सबसे कमजोर स्थित में है।

 (लेखक संचार शिक्षाविद और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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