- February 21, 2024
बिहार : पास आउट की नीतियों में परिवर्तन : लगभग 50 %- 60% लिखने और पढ़ने में अयोग्य है : शैलेश कुमार
शिक्षा प्रणाली में पास आउट (कुर्सी टेबल पास) की नीतियों के दुष्परिणाम ।
बिहार की वर्तमान शिक्षा प्रणाली जिसमें पास आउट की नीति , युवाओं को अपराध की ओर मुखरित करता है।
इस पास आउट युवाओं को यह पता नहीं है की सरकारी या कंपनी में नौकरी के लिय गहन पढ़ाई की जरूरत है ।
वह बिहार बोर्ड या यूनिवर्सिटी से पास आउट डिग्री लेकर बाहर कमाने जाता है, जहां कंपनी दर कंपनी ठोकरें खाकर घर वापस आता है और घर पर अपराधी तत्वों से संपर्क कर अपराध करता है। अपराध अपने परिवार चलाने के लिए करता है धीरे धीरे वह अभ्यस्त हो कर बहुत बड़ा गैंग बना लेता है।
बिहार शिक्षा डिग्री से मूर्ख माता पिता को भी पता नहीं होता है की मेरे बच्चे किसी लायक नही हैं, कही काम नही मिलेगा।
सिर्फ पास आउट की नीति से दलितों में दहेज़ प्रथा बहुत गंभीर हो गया है , दोनो परिवार दैनिक मजदूरी करता है लेकिन शादी की बात चलने पर अपने बेटे का बिना दहेज़ शादी नहीं करता है। (मेरा बेटा मैट्रिक पास है पसंददीदा बाइक चाहिए साथ ही 3 लाख रूपये फाइनल दो लाख पर होता है) गाँव में महाजन से सूद पर पैसा लेकर शादी करता है , क्योंकि उसका बेटा मैट्रिक पास है।
इसलिए पास आउट की नीतियों में परिवर्तन की जाए क्योंकि कुल छात्रों के लगभग 50-60% लिखने और पढ़ने में अयोग्य है और सिर्फ बेहतर योग्य छात्र छात्राओं को पास आउट किया जाय, जो पढ़ाई का महत्व समझ सके।
बिहार में इंटरमीडिएट या मैट्रिक में उतने ही पास आउट की जाए जितने सम्बंधित विभाग में सीटें खाली हो।
इस नीति से *उपार्जन अपराध * पर दवाब कम होगा।
यह अर्ध मूर्ख युवाओं द्वारा क्षेत्र में बढ़ते अपराध पर शोध समझिए।
क्रेडिट कार्ड के चलन से बैंक से निकाले गए कैश छीना झपटी संबंधित अपराध 98% कम हुआ है।
बीसी सेंटर पर यदा कदा हो जाता है।
अब बाइक स्नैचर काफी सक्रिय है।
अब पॉलिटिकल संरक्षित अपराधी का तो पूरा बिहार ही है।
इसके आंका रोजगार की तलाश में भटकते युवाओं के बीच पैसा और संरक्षण देकर पास आउट युवाओं का उपयोग करते है।
बाहर में भी ऐसे पास आउट युवा पैसा के कारण अपराध में संलग्न हो जाते है ,
वहां बिहार , बिहारी बदनाम होता है।
जन कल्याणकारी सरकार का काम है , युवाओं के प्रति चहुंमुखी विकास पर पहल करना।
अर्थात् शिक्षितों के लिय सरकारी नौकरी बिहार से बाहर या अंदर उसे परिवार पालन हेतु वेतन मिल जाती है , शिक्षित व्यक्ति कहीं न कही पाँव जमाने में सफल हो जाते है ।
लेकिन अर्ध मूर्ख या मूर्खों के लिय भी रोजगार गारंटी योजना पर पहल की जानी चाहिए।
जैसे :
फैक्ट्री : एक फैक्टरी में झाड़ू पोछा लगाने वाले से लेकर चाय बेचने वालों का काम लग जाता है।
जैसे : मैनेजर , प्रशासकीय इकाई ,कंप्यूटर , आईआईटीसियन वेल्डर, हेल्पर और अगल बगल कई उपयोगी दुकानें भी।
फैक्टरी में मूर्ख से भी मूर्ख अनुभव प्रात कर बढ़िया से बढ़िया मिस्त्री बन जाता है।
अत: इसके लिय यह भी संभव है :
विधायक या सांसद फंड को उपयोग किया जा सकता है क्योंकि करोड़ो का फंडिंग है।
अक्सर मार्च लूट के बाद कुछ न कुछ कोष वापस हो जाता है।
पहले था, जस राजा तस प्रजा।
लेकिन अब जस प्रजा तस राजा