- August 31, 2021
बिहार की राजनीति में नीतीश ‘पीएम मेटेरियल’ शब्द की गूंज, आखिर क्या हैं मायने? – मुरली मनोहर श्रीवास्तव
देश की सियासत में 2024 में होने वाले चुनाव की विसात बिछायी जाने लगी है। यह कहने में कोई परहेज नहीं है। राजनीति में कब क्या हो जाए इसको लेकर दावा किया जाना बेमानी होगी। दोस्त कब दुश्मन और दुश्मन कब दोस्त बन जाए कहा नहीं जा सकता है। केंद्रीय पॉलिटिक्स में तीसरे मोर्चे की फिर से सुगबुगाहट नजर आने लगी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध के खेल में राहुल गांधी के नेतृत्व को ममता बनर्जी ने चुनौती दी है। उससे राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी के विकल्प के तौर पर चेहरा स्थापित करने की कवायद तेज हो गई है। इसी कड़ी में लालू यादव का शरद से मिलना, ममता का सोनिया से मिलना, नीतीश का चौटाला से मिलना कहीं न कहीं अलग संकेत दे रहे हैं। इस मसले पर राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि जदयू भले ही बिहार की पार्टी है मगर उसके स्ट्रेट्जी प्लानर भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार को भी पीएम पद के लिेए योग्य उम्मीदवार लगातार बता रहे हैं।
इसको जदयू तब और प्रमाणित कर देता है जब उसकी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीएम मैटिरियल हैं। नीतीश कुमार में पीएम बनने के तमाम गुण मौजूद हैं, हालांकि एनडीए में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी का ही नाम है लेकिन सवाल पैदा होता है कि आखिर राष्ट्रीय परिषद की बैठक में प्रस्ताव पारित करने का आखिर उद्देश्य क्या है। हलांकि नीतीश कुमार को पीएम मेटेरियल कहे जाने की बात पर सफाई देते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि उनकी कोई ऐसी इच्छा नहीं है।
एक तरफ देश की सत्तारुढ़ एनडीए नमो को पीएम में आगे भी बने रहने का लगातार दाला कर रही है। वहीं विपक्ष भी अपना लंगोट कस कर मैदान में दो-दो हाथ करने को तैयार है। लेकिन उसके समक्ष सबसे बड़ी समस्या पीएम फेस की है। दूसरे सिरे पर देखी जाए तो बिहार के विकास पुरुष कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके ही दल के कदावर नेता लगाता उन्हें पीएम मेटेरियल तो कह रहे हैं लेकिन आगे यह भी कह रहे हैं कि हमारे नेता नमो ही हैं। मगर नीतीश में पीएम के सारे गुण होने का हवाला देकर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं ये तो वो ही जानें।
नीतीश कुमार का नाम विकास पुरुष के रुप में जाना जाता है। नीतीश कुमार अटल जी की सरकार में कृषि मंत्री और रेल मंत्री रह चुके हैं। इन दोनों मंत्रालयों में उन्होंने इतना काम किया कि लोगों के दिलों पर राज करने लगे। खासकर बिहार की जनता के लिए वरदान साबित हुए और जैसे ही बिहार चुनाव हुआ 2005 में जनता ने उनको मुख्यमंत्री के तौर पर चुन लिया। बिहार की कमान संभालने के साथ नीतीश कुमार ने बदहाल बिहार को खुशहाल बना दिया। जिस बिहार में लोग बाहर से आने से कतराते थे। लोग बाहर जाकर दो जून की रोटी कमाने को मजबूर थे, बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं बदहाल थीं उनको सत्ता संभालते ही सुदृढ़ कर साबित कर दिया कि किसी भी काम को करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरुरत होती है।
बिहार के 38 जिलों में मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में आंदोलन ला दिया तो लड़कियों के पढ़ने से लेकर नौकरियों, राजनीति में स्थान देकर देश में नजरी बन गए। वर्ष 2000 में बिहार-झारखंड के अलग दो राज्यों में विभक्त होने के बाद बिहार में हरित आवरण क्षेत्र 9 प्रतिशत था उसको बढ़ाकर नीतीश सरकार ने 15 प्रतिशत से आगे कदम बढ़ा दिया है। हां, ये बात अलग है कि बिहार में अपने कार्यकाल में मात्र 20 माह को छोड़ दिया जाए तो बाकी के समय में भाजपा भी इनके साथ चलती रही, इसलिए इस विकास में भाजपा भी खुद की दावेदारी मानती है। वहीं कोई नीतीश कुमार को अफगानिस्तान का प्रेसिडेंट बनने की सलाह दे रहा है, कोई उनसे अपनी दावेदारी साबित करने के लिए कह रहा है तो नीतीश कुमार के सबसे अच्छे मित्र और सूबे के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलकर विवाद खड़ा नहीं करना चाहते हैं और न ही अपने अच्छे दोस्त को यह कहकर निराश करना चाहते थे कि वह इस पद के योग्य नहीं हैं।
जातीय जनगणना और जनसंख्या कानून को लेकर एनडीए में घमासान मचा हुआ है। सब दल अपनी सुविधानुसार राजनीति कर रहे हैं। पिछड़ों के रहनुमा बनने की चहुंओर होड़ मची है। पिछड़ों के वोट बैंक पर कैसे अपनी पकड़ मजबूत बने, सब दल इसी जुगत में जुटे हुए हैं। इसी का नतीजा था कि आपस में घोर विरोधी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक साथ जातीय जनगणना की मांग को लेकर प्रधानमंत्री से पिछले दिनों दिल्ली में मिले। भाजपा को छोड़कर एनडीए के घटक दल जातीय जनगणना के पक्ष में है। जनसंख्या कानून को लेकर भी भाजपा और जदयू के सुर अलग-अलग हैं। हाल के दिनों में कई मुद्दों पर जदयू और भाजपा के बीच तकरार देखने को मिला, लेकिन इन सब पर अपनी अलग राय रखते हुए जदयू अपने वजूद को भरपूर तरीके से बताने की कोशिश करती आ रही है।
अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आखिर इस पीएम मेटेरियल वाली बातों का एनडीए में रहकर हवा देना जदयू को कितना काम आता है ये तो बाद की बात है लेकिन इस बात में कहीं न कहीं जरुर दम है कि विपक्षी खेमे का चेहरा बनकर उभरने की बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि राजनीति और जंग में सब जायज माना जाता है।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
पटना
मो.9430623520