प्रत्यक्ष विदेशी निवेश: नौ महीनों में 40 अरब डॉलर

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:  नौ महीनों में 40 अरब डॉलर

ए०के०भट्टाचार्य ———————  नए सरकारी आंकड़ों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने के मामले में भारत के प्रदर्शन के बारे में अब और अधिक स्पष्टता दिखती है। आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में देश में कुल 44.3 अरब डॉलर का अनुमानित विदेशी निवेश आया।

2013-14 के मुकाबले इसमें 23 प्रतिशत तेजी देखी गई। हालांकि यह उतना नहीं है जितना दावा- यानी 40 प्रतिशत बढ़ोतरी का- किया जा रहा था। लेकिन यह आंकड़ा निश्चित तौर पर बेहतर है और किसी सरकार को खुश करने और उत्साह बढ़ाने वाला है।

यह बात ध्यान रखने वाली है कि मोदी सरकार का यह सत्ता का एक पूर्ण वर्ष था। यह आंकड़ा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 2013-14 में, जो मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल का आखिरी साल था, एफडीआई प्रवाह में महज 5 प्रतिशत बढ़ोतरी देखी गई थी।

मौजूदा वित्त वर्ष में भी एफडीआई प्रवाह जारी है जो सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए सहज होने की अतिरिक्त बात है। वर्ष 2015-16 के पहले नौ महीनों में एफडीआई निवेश 40 अरब डॉलर से अधिक रहने का अनुमान था। इस तरह ïवर्ष  2014-15 की समान अवधि के मुकाबले इसमें 28 प्रतिशत की मजबूत बढ़ोतरी दर्ज हुई। दूसरे शब्दों में कहें तो मौजूदा वित्त वर्ष में भी एफडीआई प्रवाह जारी है और पिछले साल के मुकाबले इसके आंकड़े और बेहतर रह सकते हैं।

हालांकि एफडीआई प्रवाह के संदर्भ में कुछ बातें जेहन में रखने की जरूरत है। आलोचक जो भी कहें लेकिन आंकड़ों से स्पष्टï है कि भारत लगातार विदेशी निवेशकों का पसंदीदा बाजार बना हुआ है। यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत के अलावा ऐसे देश कम ही हैं जिनकी अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत की शानदार दर से बढ़ रही है।

मोदी सरकार के पिछले 22 महीनों के कार्यकाल में बीमा, रक्षा और ई-वाणिज्य जैसे क्षेत्रों में एफडीआई से जुड़े नियमों में ढील दी गई है। इसके अलावा बड़ा घरेलू बाजार, मजबूत वृहद आर्थिक बुनियाद से भारत विदेशी निवेशकों की स्वाभाविक पसंद रहेगा।

ये बातें तो ठीक हैं लेकिन कुछ दिक्कत तलब मसलों पर भी गौर करिए। सरकार वोडाफोन और केयर्न जैसे विदेशी निवेशकों पर पिछली तारीख से लागू होने वाले कराधान मुद्दे को हल करने में सफल नहीं हो पाई है। इन कंपनियों को कर संबंधी नोटिस बराबर मिल रहे हैं और ऐसे में निकट भविष्य में समाधान निकलने की उम्मीद कम ही लग रही है।
हाल में कुछ नियामकीय कदमों से विभिन्न क्षेत्रों खासतौर पर नेस्ले, मॉन्सैंटों और कुछ जानी-मानी दवा कंपनियों को झटका लगा है। इन कदमों से देश में एफडीआई प्रवाह पर निश्चित तौर पर असर पडऩा चाहिए था पर ऐसा नहीं हुआ। इन बातों के बावजूद अगर भारत लगातार विदेशी निवेश आकर्षित कर रहा है तो इससे उसकी आर्थिक मजबूती तो झलकती ही है, विदेशी निवेशकों के लिए विकल्पों की कमी का भी पता चलता है।

भारत में एफडीआई में तेजी की एक बड़ी वजह सिंगापुर है जो इसके लिए इक्विटी निवेश के लिए एक बड़ा स्रोत बन गया है। ऐसा अचानक नहीं हुआ है। पांच साल पहले 2010-11 में सिंगापुर से करीब 1.71 अरब डॉलर का विदेशी इक्विटी निवेश आया था। पिछले साल यह निवेश 6.7 अरब डॉलर रहा और 2015-16 के पहले नौ महीनों में बढ़कर 10.98 अरब डॉलर हो गया। यह लगभग तय है कि इस साल सिंगापुर भारत के लिए इक्विटी निवेश का अकेला सबसे बड़ा स्रोत होगा और 2013-14 में अव्वल निवेशक का अपना प्रदर्शन दोहराएगा।

सिंगापुर भारत के इक्विटी निवेश के सबसे बड़े स्रोत के तौर पर मॉरिशस की जगह ले लेगा। पांच साल पहले 2010-11 में भारत में मॉरिशस से 7 अरब डॉलर का इक्विटी निवेश आया था। बाद में के वर्षों में भी यह बढ़ता रहा और 2014-15 में यह इक्विटी निवेश करीब 9 अरब डॉलर पहुंच गया। लेकिन मौजूदा वर्ष में मॉरिशस इस मामले में सिंगापुर से कहीं पीछे है। इसमें शक नहीं कि आकर्षक कर रियायत देने वाले देश के तौर पर मॉरिशस के दर्जे पर विवाद के कारण वहां से भारत में इक्विटी प्रवाह कम हुआ है।

भारत में होने वाले एफडीआई के हिस्सों पर भी नीति निर्धारकों को ध्यान देने की जरूरत है। भारत जैसे देश के लिए, जो विनिर्माण और अधोसंरचना क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने के लिए जी जान से लगा है, इन दोनों क्षेत्रों में एफडीआई का कमजोर प्रवाह परेशान करने वाला और चिंता का विषय है।

विदेशी इक्विटी निवेश का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय कंपनियों, बीमा प्रदाताओं, आउटसोर्सिंग एजेंसियों और कुरियर कंपनियों सहित सेवा क्षेत्र में आ रहा है। इसके बाद कारोबारी कंपनियों में विदेशी इक्विटी निवेश अधिक हो रहा है। कुल एफडीआई प्रवाह का मामूली हिस्सा निर्माण या वाहन उद्योग में जाता है। यानी एफडीआई की मौजूदा दिशा से नीति निर्धारकों को अवश्य चिंतित होना चाहिए। ऊंची विकास दर का लक्ष्य हासिल करने के लिए विदेश से आने वाले निवेश सहित अधिक से अधिक रकम अधोसंरचना और विनिर्माण क्षेत्र में आना जरूरी है।

भारत में एफडीआई प्रवाह पिछले एक दशक के दौरान बढ़ा है जबकि विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश से जुड़ी नीतियां बहुत पहले उदार बनाई गईं थीं। 2005-06 तक एफडीआई प्रवाह 10 अरब डॉलर से नीचे रहा। इसके बाद के साल में इसमें बड़ी तेजी आई और यह बढ़कर 23 अरब डॉलर हो गया। तब से एफडीआई में लगातार तेजी बनी रही है और यह हर साल 34 अरब डॉलर से अधिक रहा है। हालांकि तीन विभिन्न वर्षों में इसमें गिरावट जरूर देखी गई।

एफडीआई प्रवाह पर भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता बढ़ती जा रही है। यहां तक कि शेयर और मुद्रा बाजार में विदेशी संस्थागत निवेश कम भी हो जाता है तब भी इसकी भरपाई एफडीआई से ही होती है। मौजूदा वर्ष में देश से विदेशी संस्थागत निवेश का उलट प्रवाह 10 अरब डॉलर से अधिक रहेगा।

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