नीति निर्माताओं ने राष्ट्रीय विद्युत नीति में किया सौर पर गौर

नीति निर्माताओं ने राष्ट्रीय विद्युत नीति में किया सौर पर गौर

लखनऊ (निशांत कुमार)—- जलवायु परिवर्तन के खिलाफ़ जारी इस वैश्विक जंग में प्रधान मंत्री मोदी ने लगातार एक शीर्ष भूमिका निभाई है। बदलती जलवायु के प्रति उनकी चिंता और इस संवेदनशीलता और सजगता का उदाहरण भारत की राष्ट्रीय विद्युत नीति के ताज़े मसौदे में साफ झलकता है।
इस मसौदे में सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि और वर्ष 2030 तक कोयले से बनने वाली बिजली में कमी आने की बात कही गई है। प्रस्तावित योजना के मुताबिक वर्ष 2030 तक कुल उत्पादित बिजली में कोयले से बनने वाली बिजली का प्रतिशत घटकर 50 रह जाएगा, जो वर्तमान में 70 फीसद है।
राष्ट्रीय विद्युत नीति के मसविदे में वर्ष 2027 और 2030 तक स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होने की बात कही गई है। इसके अलावा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की इष्टतम उत्पादन क्षमता मिश्रण रिपोर्ट की तुलना में 2020 में जारी की गई कोयले की क्षमता में गिरावट देखी गई है।
इसमें दिखाई गई भावी स्थितियां पिछले साल ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 में व्यक्त किए गए संकल्पों के मुकाबले ज्यादा अच्छी तस्वीर पेश करती नजर आती हैं। भारत के नए नेशनली डिटरमाइंड कमिटमेंट्स (एनडीसी) के मुताबिक देश ने वर्ष 2030 तक अपने यहां स्थापित कुल ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा क्षमता की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 50% करने का लक्ष्य तय किया है। हालांकि देश की बिजली योजना के मसविदे के मुताबिक वर्ष 2027 तक भारत की कुल उत्पादित ऊर्जा में गैर जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 57% होगी जो वर्ष 2032 तक 68% हो जाएगी।
वर्ष 2018 में जारी भारत की पिछली बिजली योजना में वर्ष 2027 तक देश में 150 गीगावॉट स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता विकसित करने का लक्ष्य तय किया था जबकि नई बिजली योजना के मसविदे में वर्ष 2027 तक के इस लक्ष्य को बढ़ाकर 186 गीगावॉट कर दिया गया है।
एम्बर के इलेक्ट्रिसिटी डाटा एक्सप्लोरर के मुताबिक वर्ष 2016 से 2021 के बीच भारत में अक्षय ऊर्जा क्षमता में सालाना 19% की दर से वृद्धि हुई है। इस दौरान भारत में अपनी स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में सालाना 45% की औसत दर से इजाफा किया है। जहां सौर ऊर्जा क्षमता में दोहरे अंकों में बढ़ोतरी हो रही है वही इसी अवधि में पवन ऊर्जा की विकास दर 7% ही रही।
हालांकि भारत ने हाल के वर्षों में अक्षय ऊर्जा क्षमता में दोहरे अंकों में वृद्धि की है मगर इसके बावजूद वह वर्ष 2022 तक के लिए निर्धारित 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका है। वर्तमान में भारत की सौर तथा पवन ऊर्जा क्षमता 90 गीगावॉट ही ही है।

राष्ट्रीय बिजली नीति 2022 के मसविदे की प्रमुख बातें

● राष्ट्रीय बिजली नीति (एनईपी) 2018 के मुकाबले एनईपी 2022 में सौर ऊर्जा लक्ष्यों में उल्लेखनीय वृद्धि की बात कही गई है एनईपी 2018 के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2027 तक देश में 150 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित होनी थी। प्रस्तावित एनईपी 2022 में वर्ष 2027 तक स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 24% की वृद्धि करते हुए इसे 186 गीगावाॅट कर दिया गया है।
● एनईपी 2018 के मुताबिक वर्ष 2027 तक 100 गीगावॉट पवन ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया था। प्रस्तावित एनईपी2022 में इस लक्ष्य को 20% कम करके 80 गीगावॉट कर दिया गया है।
● एनईपी2022 के मसविदे में 2031-32 के लिए सौर और पवन ऊर्जा के लक्ष्य क्रमश: 333 गीगावॉट और 133 गीगावॉट होने का अनुमान है। सीईए की इष्टतम उत्पादन क्षमता मिश्रण 2029-2030 (ओजीसी) रिपोर्ट के 2029-2030 अनुमानों की तुलना में यह सौर ऊर्जा के मामले में 18% की वृद्धि और पवन ऊर्जा के मामले में 5% की कमी है।
● एनईपी2022 के मसविदे में ओजीसी रिपोर्ट में अनुमानित 4 घंटे की स्टोरेज वाली 27 किलो वाट बैटरी स्टोरेज में वृद्धि होगी और यह 2031-32 तक 5 घंटे में 51 गीगावॉट स्टोरेज हो जाएगी।
● एनईपी2022 के नए ड्राफ्ट में वर्ष 2020 की ओजीसी रिपोर्ट के मुकाबले कोयला बिजली उत्पादन क्षमता में वर्ष 2030 तक करीब 18 गीगावॉट की गिरावट की बात कही गई है। नए मसविदे में वर्ष 2018 में जारी एनईपी के मुकाबले वर्ष 2027 के अनुमानों में करीब एक गीगावाॅट स्थापित कोयला बिजली क्षमता का सुधार किया गया है।
● एनईपी2022 के नए मसविदे के मुताबिक 25 गीगावॉट की निर्माणाधीन कोयला आधारित बिजली क्षमता के अलावा वर्ष 2031-32 तक 17 से 28 गीगावाॅट के करीब कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता की जरूरत पड़ेगी।
● कुल उत्पादित बिजली मिश्रण में कोयले से बनने वाली बिजली का योगदान आज के 70% से घटकर 2026-2027 तक 59% और 2031-2032 तक 50% होने की उम्मीद है।
● एनईपी2022 के नए मसविदे में वर्ष 2027 के लिए पीक डिमांड को सुधार कर 298.7 गीगावॉट से 270 गीगावॉट कर दिया गया है। यह गिरावट सीईए की पूर्व में आई रिपोर्टों के अनुरूप और सामान्य है। वर्ष 2030 में 2031-32 के लिए अखिल भारतीय स्तर पर सिर्फ मांग के 363 गीगावॉट के करीब पहुंच जाने का अनुमान है। यह ओजीसी रिपोर्ट में अनुमानित मात्रा से करीब 9% ज्यादा है
● एनईपी2022 के नए मसविदे के तहत वर्ष 2022 से 2027 के बीच 4629 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाले बिजली संयंत्रों का इस्तेमाल बंद करने का प्रस्ताव रखा गया है। इसमें एफजीडी इंस्टॉलेशन की योजनाओं के अभाव के कारण कोयला आधारित विद्युत ऊर्जा क्षमता को तिलांजलि दिया जाना भी शामिल है। इसके अलावा वित्तीय वर्ष 2027 से 2032 के बीच किसी भी कोयला या गैस आधारित बिजली घर को बंद करने पर विचार नहीं किया गया है। यह ओजीसी द्वारा प्रस्तावित दर के मुकाबले उल्लेखनीय रूप से कम रिटायरमेंट दर है।ओजीसी ने वर्ष 2022 से 2030 के बीच कुल 25252 मेगा वाट उत्पादन क्षमता वाली कोयला आधारित बिजली इकाइयों से छुटकारा पाने की बात कही थी। वर्ष 2017 से 2022 के बीच कुल 10044.295 मेगावाट कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता को रिटायर किया गया है।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आईआईएसडी के ऊर्जा कार्यक्रम में वरिष्ठ नीति सलाहकार और भारत परियोजना समन्वयक, श्रुति शर्मा,ने कहा, “एनईपी ने यह भी जाहिर किया है कि वर्ष 2017 से 2022 के बीच कोयला बिजली संयंत्रों को उपयोग से बाहर करने का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका। नतीजतन अगले पांच वर्षों के लिए तय की गई महत्वाकांक्षा में कुछ कमी आई है। यह एक महत्वपूर्ण चुनौती है जिससे पार पाना होगा। आर्थिक नुकसान में चल रहे कोयला आधारित बिजली घरों का प्रयोग बंद करने से बड़े वित्तीय लाभ उत्पन्न हो सकते हैं। वही इससे सततता संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।”
“इस साल का एनईपी वर्ष 2032 तक के लिए अनुमानित कोयला ऊर्जा उत्पादन क्षमता में मामूली सी वृद्धि को दर्शाता है। साथ ही साथ यह अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी में बहुत बड़ी वृद्धि को भी जाहिर करता है, ताकि भारत अपने 500 गीगावॉट स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन क्षमता और 50 गीगावॉट बैटरी स्टोरेज के लक्ष्य को वर्ष 2030 तक हासिल कर सके। इससे जाहिर होता है कि भारत अब भी स्वच्छ ऊर्जा के रास्ते पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। इन परिदृश्यों को पूरा करने में मदद के लिए बिजली कंपनियां स्वच्छ ऊर्जा में विविधीकरण की खोज कर सकती हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए।”
आगे, क्लाइमेट रिस्क होराइजन के सीईओ आशीष फर्नांडिस कहते हैं, बिजली क्षेत्र पहले से ही अधिशेष उत्पादन क्षमता की समस्या का सामना कर रहा है। यह कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के संकट से गुजरने और अक्षय ऊर्जा में लक्षित स्तरों से काफी कम वृद्धि से जाहिर है। नये कोयला बिजली संयंत्र को जोड़ने से स्थिति और खराब होगी और भारत के लिए प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करना असंभव हो जाएगा। यह चुनने का समय है – “उपरोक्त सभी” अब आर्थिक रूप से उचित ऊर्जा रणनीति नहीं है। तब जब अक्षय ऊर्जा और बैटरी भंडारण सस्ता, तेज और स्वच्छ हो।
अंत में ई3जी, की मधुरा जोशी कहती हैं, “भारत के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों में महत्वाकांक्षी वृद्धि का प्रस्ताव रखा है। वर्ष 2027 के लिए अनुमानित गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता लगभग 58% होने की उम्मीद है और साल 2032 तक यह लगभग 68% होने की आशा है। यह 2030 के लिए भारत के हाल ही में अपडेट किए गए एनडीसी लक्ष्यों से अधिक है और यहां तक कि ग्लासगो में सीओपी 26 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी घोषणा से भी अधिक है। मसविदा योजना ने वर्ष 2030 तक के लिए पूर्व में निर्धारित कोयला उत्पादित बिजली की आवश्यकता में भी 18 गीगावॉट की कमी कर दी है। हालांकि, यह पहले के विशेषज्ञ समिति के प्रस्ताव से कुछ अलग है, जिसमें सिफारिश की गई थी कि भारत को निर्माणाधीन परियोजनाओं से परे नई कोयला परियोजनाओं की आवश्यकता नहीं हो सकती है। आर्थिक, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, महंगी नई कोयला परियोजनाओं के बजाए नवीकरणीय और भंडारण में निवेश करना अधिक फायदेमंद होगा।”

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