नारी शक्ति : चांदनी परिहार :: एक बार फिर दिवाली आई — मंजू धपोला

नारी शक्ति  : चांदनी परिहार  :: एक बार फिर दिवाली आई  — मंजू धपोला

नारी शक्ति — चांदनी परिहार

जखेड़ा, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड

मैं कोई पूर्ण विराम नहीं।
सृष्टि सृजन करती लड़की हूं।।

पिंजरे में बंद पक्षी नहीं।
प्रजा की सोई अभिलाषा को।

आशा रूपी दीपक से जगा सकती हूं।
सत्ताधारियों के लिए दया, धर्म का संदेश हूं।।

मुझे साबित करने की जरूरत नहीं।
मैं निर्भर खुद में सम्पूर्ण हूँ।

अबला से सबला हुई है, आज अनेकों नारियां।
शीतल छाया की आशा हूं।

मनोहर प्रेम की परिभाषा हूं।।
नारियों की धैर्य सीमा और शुद्ध आत्मा से उठी पुकार हूं।

कभी ऊंची आवाज तो कभी, छोटे लिबास हूं।।
मैं कोई कठपुतली नहीं, सृष्टि की आवाज हूँ।
मैं जागृत चेतना हूँ, मैं नारी शक्ति हूं।।
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एक बार फिर दिवाली आई — मंजू धपोला
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड

एक बार फिर दिवाली आई और मैंने नई कुर्ती सिलाई।
ये दीवाली भी हर बार की तरह खूबसूरत थी, खुशियों से भरी थी।।

पर ना जाने क्यों इस दिवाली में, वो बात नही थी।
सोच रही थी क्या कमी रह गई, याद आया ये तो वो भीड़ ही नहीं थी।

जिस भीड़ में हम पटाखे फोड़ कर बेवजह खुश हो जाया करते थे।
जिस भीड़ में हम लड़ते लड़ते अपना घर सजाया करते थे।

हां, थोडी अजीब हुआ करती थी वो सबके साथ वाली दीवाली।
पर मैं खुश हो जाती थी ये सोच कर कि।

सब घर आयेंगे और मजे करेंगे इस दिवाली।।
सब साथ बैठ कर लड़ झगड़ कर कुछ सुकून के पल बिताते थे।

जो हर उदास लम्हों को खूबसूरत बनाते थे।
इस बार कुछ यादें तो बनी, मगर यह समझा गई कि अब सब बिखर गया है।

वापस नहीं आयेगी वो भीड़ भरी खुशियों वाली दीवाली।
अब भीड़ से ज्यादा सबको अकेले रहना पसंद है।

सबके साथ से ज्यादा फोन पसंद है।
पटाखे फोड़ते, गप्पे लड़ाते लड़ाते बारह बज जाया करते थे जिस दीवाली।

छः बजे सो गई क्योंकि अकेली थी मैं इस दिवाली।
ना जाने क्यों लगा कि काश!
मेरी भी मां होती मेरे साथ इस दिवाली।।

चरखा फीचर

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