• February 6, 2016

दुराग्रहियों की उपज है असहिष्णुता का बवाल – डॉ. दीपक आचार्य

दुराग्रहियों की उपज है  असहिष्णुता का बवाल  – डॉ. दीपक आचार्य

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असहिष्णुता शब्द इन दिनों पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में चर्चित है ही। भारतीय परिवेश और संस्कृति में असहिष्णुता जैसी न कोई परंपरा रही है, न स्वभाव।

असहिष्णुता को सीधे साधे और सरल शब्दों में परिभाषित किया जाए तो यह बर्दाश्तहीनता के करीब लगता है।  इंसान में जब तक इंसानियत रहती है तब तक वह सहिष्णु बना रहता है।

इंसानियत के खात्मे के साथ ही सहिष्णुता समाप्त हो जाती है और ऎसा इंसान कभी भी असहिष्णु हो सकता है। असहिष्णुता का सीधा संबध्ां मानवता से है।

जो लोग मानवता, मूल्य, नैतिकता और सिद्धान्त त्याग दिया करते हैं वे अपने आप असहिष्णु होने लगते हैं और ऎसे लोगों को जमाने भर के लोग असहिष्णु दिखने और अनुभव होने लगते हैं।

असहिष्णुता इस मायने में प्रत्येक जीवात्मा के भीतर का वह कारक है जो उसके स्वभाव, व्यवहार और कर्म को प्रभावित करता है। बर्दाश्तगी की जितनी क्षमता भारतीय जनमानस में है उतनी दुनिया में कहीं किसी कोने में देखने को नहीं मिलेगी।

इसी सहिष्णुता के कारण विदेशियों के हमलों में भारत को लूटा गया, रक्तपात हुआ, जौहर हुआ और राष्ट्रीय एकता-अखण्डता का विघटन होकर अखण्ड भारत का विभाजन तक हो गया।

सहिष्णुता, दया, करुणा और मानवता के हमारे मूल्योें को आक्रान्ताओं ने हमारी कमजोरी समझा और सदियों तक हमें गुलाम बनाए रखा।  बावजूद इसके हम आज तक अपने मूल्यों और मानवता को लिए हुए सहिष्णु बने हुए हैं। इससे बढ़कर हमारी सहिष्णुता के उदाहरण और क्या होंगे।

बावजूद इसके जो लोग चिल्लपोें मचा रहे हैं, असहिष्णुता का राग अलाप रहे हैं, यह बौद्धिक दिवालियेपन, सामूहिक षड़यंत्रों या पूर्वाग्रह-दुराग्रह का ही संकेत माना जा सकता है।

असली भारतीय कभी असहिष्णु नहीं हो सकता। जो सच्चे भारतीय को असहिष्णु कहता है वह अपने आप में अपराधपूर्ण अभिव्यक्ति है और इसका कोई अर्थ नहीं है। यह भारतीयोें का अपमान है।

असहिष्णुता भाव मर्यादाहीनता के कारण भी पनपता है लेकिन यह मर्यादाहीनता वे ही लोग करते हैं जिनमें मानवता नहीं होती।

मानवता के लिए घातक, नरपिशाचों की तरह हिंसा का ताण्डव मचाने वाले, क्रूर, हिंसकोंं एवं साम्राज्यवादियों के लिए ही अहिष्णुता शब्द का प्रयोग किया जा सकता है।

असहिष्णुता कई बार मर्यादा को तिलांजलि देेने वाले ही करते हैं।  ये लोग उन कर्मों  को करने में भी ढिलाई बरतते हैं जिनके लिए इन्हें तैनात किया होता है, जिन्हें इसी की ड्यूटी सौंपी होती है।

ऎसे लोग जब अपने से संबंधित लोगों के काम समय पर नहीं करते,  अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं, कामों को टालते हैं, किसी न किसी आशा में कामों को लटकाए रखते हैं और सामने वालों को नालायज रूप से परेशान करते हैं तब किसी का भी असहिष्णु हो जाना स्वाभाविक है।

लेकिन इसे असहिष्णुता की बजाय सशक्त प्रतिकार कहना ज्यादा समीचीन होगा। सामने वाले गलतियों पर गलतियां करते चले जाएं, हिंसा और क्रूरता का परिचय देते रहें, आतंकवादी गतिविधियां चलाते हुए मानवता पर हमले करते रहें। ऎसे में कोई भी सहिष्णु नहीं बना रह सकता।

इन सबके बावजूद भारतीय जनमानस की परंपरागत सहिष्णुता का कोई जवाब नहीं जो इतने हमले, कारगुजारियों, हिंसा,हमलों और नालायकियों भरी करतूतों के बावजूद चुपचाप सब कुछ देख कर सहन कर रहा है, इससे बड़ी सहिष्णुता इस देश की क्या हो सकती है।

यह देश उनके प्रति भी सहिष्णु है जो भीतर के हैं, उनके प्रति भी जो बाहर वाले हैं। इसलिए असहिष्णुता की बात कहना आज के परिप्रेक्ष्य में बेमानी है और सोची-समझी साजिश है।

असहिष्णुता का बवाल उन लोगों की साजिश है जिनका परंपरागत वजूद और आयातित सुख-चैन-वैभव सब कुछ खत्म होने लगा है, पद-मद और कदों से भरी बैसाखियां छीनने का खतरा पैदा हो गया है और  जिन्हें लगता है कि देश में आज की तरह सब कुछ आगे भी चलता रहा तो उन्हें घास डालने वाला या पानी पिलाने वाला कोई नहीं मिलेगा।

सावधान रहें उन लोगों से जो असहिष्णुता का राग अलाप रहे हैं। उनमें से हरेक की जिन्दगी की वास्तविकताओं को जनता के सामने लाने की जरूरत है जो स्वयं अपने लाभों, स्वार्थों और चाहे-अनचाहे सुखों के लिए क्या कुछ नहीं कर रहे हैं, कैसे-कैसे समझौते कर रहे हैं, किस-किस तरह के समीकरण बिठा रहे हैं और इनके तार किनसे बंधे हुए हैं।

अपने आप असहिष्णुता का ढोल पीटने वालों की कलई खुल जाएगी। दुर्भाग्य यह भी है कि एक ओर असहिष्णुता का नगाड़ा बजाने वाले बेशर्म लोगों की खूब सारी भीड़ जहाँ-तहाँ शोर मचा रही है और दूसरी तरफ वे लोग मुँह ढंक कर सोए हुए हैं जिन्हें आगे आकर इन असहिष्णुता के नारे लगाने वालों को करारा जवाब देना है।

इनमें राष्ट्रवादी भी हैं, छद्म राष्ट्रवादी भी हैं और उदासीन भी। सारे के सारे जानबूझकर तटस्थता ओढ़े हुए हैं। और वह भी इस कारण कि उनकी छवि सर्वस्पशी, सर्वप्रिय, अजातशत्रु और सकारात्मक व्यक्तित्व की बनी रहेगी।

इतिहास में वे लोग भी कलंकित स्थान ही पाएंगे जो कि प्रतिक्रियाहीन होकर चुपचाप बैठे हुए हैं। जो सत्य है उसका उद्घाटन, प्रचार-प्रसार करें और तटस्थता का लबादा छोड़कर धर्म, सत्य एवं न्याय के पक्ष में आगे आएं।

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