प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि दुनिया में भाषा के रूप में हिन्दी का महत्व बढ़ रहा है। हिन्दी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए इसे अन्य भारतीय भाषाओं से जोड़ना होगा और डिजिटल दुनिया में उपयोग बढ़ाना होगा। हर पीढ़ी का दायित्व है कि भाषा को समृद्ध बनाये। प्रधानमंत्री श्री मोदी आज यहाँ दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के उदघाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने सम्मेलन के उदघाटन समारोह में सम्मेलन पर केन्द्रित डाक टिकिट का लोकार्पण किया। साथ ही विश्व हिन्दी सम्मेलन की स्मारिका, ‘गगनांचल’ पत्रिका के विशेषांक तथा ‘प्रवासी साहित्य जोहानसबर्ग से आगे’ का विमोचन किया। सम्मेलन में 39 देश के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि हर पीढ़ी का दायित्व है कि उसके पास जो विरासत है उसे सुरक्षित रखें और आने वाली पीढ़ी को सौंपे। भाषा जड़ नहीं होती उसमें जीवन की तरह चेतना होती है। इस चेतना की अनुभूति भाषा के विकास और समृद्धि से होती है। भाषा में ताकत होती है जहाँ से भी गुजरती है वहाँ की परस्थिति से अपने में समाहित करती है।
हिन्दुस्तान की सभी भाषाओं की उत्तम चीजों को हिन्दी भाषा की समृद्धि का हिस्सा बनाना चाहिए। मातृभाषा के रूप में हर राज्य के पास भाषा का खजाना है, इसे जोड़ने में सूत्रधार का काम करें। भाषाविदों का अनुमान है कि 21वीं सदी के अंत तक दुनिया की छह हजार भाषाओं में से 90 प्रतिशत के लुप्त होने की संभावना है। इसे चेतावनी समझकर अपनी भाषा का संरक्षण और संवर्धन करना होगा। हमारी भाषा में ज्ञान और अनुभव का भंडार है। भाषा के प्रति लगाव इसे समृद्ध बनाने के लिए होना चाहिए।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि डिजिटल दुनिया ने हमारे जीवन में गहरे तक प्रवेश कर लिया है। हमें हिन्दी और भारतीय भाषाओं को तकनीकी के लिए परिवर्तित करना होगा। बदले हुए तकनीकी परिदृश्य में भाषा का बड़ा बाजार बनने वाला है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। भाषा हर किसी को जोड़ने वाली होना चाहिए। हर भारतीय भाषा अमूल्य है।
भाषा की ताकत का अंदाजा उसके लुप्त होने के बाद होता है। हिन्दी भाषा का आंदोलन देश में ऐसे महापुरूषों ने चलाया जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं थी, यह प्रेरणा देता है। भाषा और लिपि की ताकत अलग-अलग होती है। देश की सारी भाषाएँ नागरी लिपि में लिखने का आंदोलन यदि प्रभावी हुआ होता तो लिपि राष्ट्रीय एकता की ताकत के रूप में उभर कर आती। आज दुनिया के अलग-अलग देशों में हिन्दी का महत्व बढ़ रहा है। भारतीय फिल्मों ने भी दुनिया में हिन्दी को पहुँचाने का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि विश्व हिन्दी सम्मेलन के माध्यम से हिन्दी को समृद्ध बनाने की पहल होगी और निश्चित परिणाम निकलेंगे।
विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने सम्मेलन को मध्यप्रदेश और भोपाल में आयोजित करने का कारण बताते हुए कहा कि मध्यप्रदेश हिन्दी के लिये समर्पित राज्य है और भोपाल सफल आयोजन करने के लिये विख्यात है। श्रीमती स्वराज ने विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजनों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 32 वर्षों बाद यह भारत में आयोजित हो रहा है।
पहला सम्मेलन 1975 में नागपुर में हुआ था। तब से भोपाल के दसवें सम्मेलन तक आयोजन का स्वरूप बदला है। पहले के सम्मेलन साहित्य केन्द्रित थे लेकिन दसवाँ सम्मेलन भाषा की उन्नति पर केन्द्रित है। उन्होंने कहा कि भाषा की उन्नति के लिये संवर्धन ही नहीं संरक्षण की भी जरूरत पड़ रही है। उन्होंने कहा कि विचार सत्रों में रिपोर्ट तत्काल लिखी जायेगी और भाग लेने वाले विद्वानों से अनुमोदन भी करवाया जायेगा ताकि समापन सत्र में अनुशंसाएँ पढ़ी जायें और उन पर अमल भी प्रारंभ हो जाये। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सम्मेलन परिणाम देने वाला होगा।
श्रीमती स्वराज ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा हिन्दी बोलने को प्रोत्साहित करने से हर नागरिक गौरव अनुभव करता है। इस सम्मेलन से प्रधानमंत्री के प्रयासों को गति मिलेगी और हिन्दी को अपेक्षित स्थान और सम्मान मिलेगा। उन्होंने बताया कि सम्मेलन में हिन्दी के विस्तार और संभावनाओं पर आधारित 12 विषय पर चर्चा होगी।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री और अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री मोदी को सम्मेलन के आयोजन की सहमति देने के लिये धन्यवाद दिया। श्री चौहान ने कहा कि जिस गुजरात से महात्मा गांधी ने हिन्दी का जयघोष किया था उसी गुजरात से आज श्री मोदी जी हिन्दी का मान बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की घोषणा भी गुजरात से हुई थी। श्री मोदी हिन्दी बोलने वाले प्रधानमंत्री हैं और उन्होंने देश-विदेश में हिन्दी का मान बढ़ाया है। यहाँ तक कि संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा में भी हिन्दी को सम्मान दिलाया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश इस सम्मेलन के निष्कर्षों का अक्षरश: पालन करेगा।
विदेश राज्य मंत्री जनरल वी. के. सिंह ने आभार व्यक्त किया।
सम्मेलन का शुभारंभ हिन्दी के स्तुति गान के साथ हुआ। अतिथियों को अंग वस्त्र भेंट कर स्वागत किया गया।
इस अवसर पर राज्यपाल श्री रामनरेश यादव, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केसरी नाथ त्रिपाठी, राज्यपाल गोवा श्रीमती मृदुला सिन्हा, केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद, झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास, विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, गृह राज्य मंत्री डॉ. किरण रिजीजू, मॉरिशस की मानव संसाधन एवं विज्ञान मंत्री श्रीमती लीलादेवी दुक्कन, विदेश सचिव श्री अनिल वाधवा, आयोजन समिति के उपाध्यक्ष सांसद श्री अनिल माधव दवे सहित विभिन्न देश से आये हिंदी विद्वान और राज्य मंत्री मंडल के सदस्य उपस्थित थे।
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