तंग करने वाले मुकदमे लगाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए पहली बार पहल

तंग करने वाले मुकदमे लगाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए पहली बार पहल

मध्यप्रदेश विधानसभा के विगत जुलाई में पारित तंग करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक-2015 का प्रकाशन राजपत्र (असाधारण) में कर दिया गया है। विधेयक को 22 जुलाई को पारित होने तथा राज्यपाल से अनुमति प्राप्त होने के बाद 26 अगस्त को राजपत्र में प्रकाशित हुआ है। राजपत्र में यह अधिनियम क्रमांक 18 के रूप में प्रकाशित किया गया है।

यह विधेयक लोगों को कष्ट पहुँचाने, परेशान करने या चिढ़ाने के आशय से बिना किसी युक्तियुक्त आधार के तंग करने वाले मुकदमे लगाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए पहली बार लाया गया। विधेयक में प्रावधान है कि यदि महाधिवक्ता द्वारा किए गए किसी आवेदन पर उच्च न्यायालय को समाधान हो जाता है कि किसी व्यक्ति ने आदतन तथा बिना किसी युक्तियुक्त आधार पर किसी न्यायालय या न्यायालयों में एक ही व्यक्ति अथवा विभिन्न व्यक्तियों के विरुद्ध तंग करने वाली सिविल या आपराधिक कार्यवाहियाँ संस्थित की हैं तो उच्च न्यायालय उस व्यक्ति को सुने जाने के बाद आदेश दे सकेगा कि उसके द्वारा किसी भी न्यायालय में, सिविल या आपराधिक कोई भी कार्यवाही संस्थित नहीं की जाए। आदेश के पहले उसके द्वारा किसी भी न्यायालय में संस्थित की गई विधिक कार्यवाही जारी नहीं रखी जाएगी।

किसी व्यक्ति को कार्यवाहियाँ संस्थित करने या उन्हें जारी रखने के पहले अनुमति प्राप्त करने के निर्देश देने वाले प्रत्येक आदेश को राजपत्र में प्रकाशित किया जायेगा। ऐसी अन्य रीति में भी प्रकाशित किया जा सकेगा जैसा कि उच्च न्यायालय उचित समझे।

विधेयक में यह भी प्रावधान है कि जिस व्यक्ति को तंग करने तथा मुकदमे लगाने वाला घोषित किया गया है उसके द्वारा न्यायालय की अनुमति प्राप्त किए बिना किसी न्यायालय में संस्थित की गई या जारी रखी गई कार्यवाहियाँ न्यायालय द्वारा खारिज कर दी जाएँगी।

न्यायालय द्वारा अनुमति न देने के आदेश के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकेगी, परन्तु किसी ऐसी अपील को, जो उच्चतम न्यायालय के समक्ष की जाना है, लागू नहीं होगी।

विधेयक में उच्च न्यायालय को इस अधिनियम के प्रयोजन को क्रियान्वित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति भी दी गई है।

प्रलय श्रीवास्तव

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