- January 10, 2016
जड़ता त्यागें चैतन्य बनें – डॉ. दीपक आचार्य
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सबका अपना-अपना मोह होता है, अपनी-अपनी आसक्ति। जो मन-बुद्धि और परंपरा में बना रहता है उसी प्रकार का स्वभाव इंसान पाल लिया करता है। इस स्वभाव के कई स्वरूप हैं।
कई बार हम अपने गलत और अनौचित्यपूर्ण स्वभाव को भी सही ठहराते हुए जिन्दगी भर के लिए अपना लिया करते हैं और कई बार सही-सही और शाश्वत विचारों, चिन्तन और कर्म को भी हेय दृष्टि से देखते हुए इनकी उपेक्षा करना आरंभ कर देते हैं।
इस मामले में आज के आदमी के दिमाग का कभी कोई ठिकाना नहीं रहा । पहले आदमी अंदर-बाहर एक जैसा हुआ करता था। उसके हर कर्म में शुचिता थी और पारदर्शिता भी हर कदम पर दिखती और अनुभव होती थी।
अब इंसान का न कोई भरोसा रहा है, न चरित्र। इस मामले में स्व चरित्र से लेकर राष्ट्रीय चरित्र तक की सारी बातें बेमानी हैं और इनका वजूद सैद्धांतिक और वाचिक से ज्यादा कुछ नहीं है।
दुनिया भर में सभी प्रकार के लोग हैं लेकिन इन्हें दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। एक जड़त्व के प्रति मोहांध हैं और दूसरे चेतन तत्व के प्रति समर्पित।
जड़त्व वाले लोग जड़ संरचनाओं, जड़त्व प्राप्त मिश्रण और जड़ तत्वों के प्रति विशेष लगाव रखते हैं। इन लोगों के लिए जड़ ही सब कुछ होता है और जिन्दगी भर जड़ता के प्रति मोहान्ध होते हुए जड़ कर्मों, जड़ तत्वों और जड़ता भरे विचारों से भरे-पूरे रहा करते हैं।
इन लोगों की पूरी जिन्दगी जड़ता और इसका प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों, तत्वों और योजकों के इर्द-गिर्द घिरी रहा करती है। जड़ता से जुड़े हुए सारे कर्मों में ये दिन-रात जुटे रहते हैं।
इन लोगोें को लगता है कि परमात्मा ने इन्हें जड़त्व से संबंधित कायोर्ं के लिए ही बनाया हुआ है। जैसी इनकी जड़ता के प्रति दिलचस्पी होती है वैसी ही इनकी बुद्धि भी जड़ हुआ करती है।
इन जड़त्व प्राप्त लोगों की गतिविधियां स्थूल रूप में भले ही चित्ताकर्षक ढाँचे खड़े कर लें, र्ईंट-पत्थरों और आरसीसी के महान आलीशान महल खड़े कर लें, कमाई के स्थायी साधनों के रूप में दुकानों के बाजार लगा दें, धर्म से लेकर हर कर्म तक के लिए ढांचों में अरबों रुपए पानी की तरह बहा दें, बावजूद इसके संसार में इनका कर्म स्थूलता और स्थान विशेष से ऊपर नहीं उठ पाता है और जिन्दगी भर ढांचों और संरचनाओं, स्थान विशेष के मोह और जड़त्व की कैद से बाहर नहीं निकल पाते हैं।
जड़तापसंद इन्हीं लोगों के कारण से समाज का बहुत सारा पैसा, श्रम और समय ऎसे कामोें में जाया होता है जिसका जगत के लिए कोई उपयोग नहीं हो पाता सिवाय चन्द धंधेबाज और जड़ लोगों की महत्वाकांक्षाआेंं की पूर्ति के।
आज सभी स्थानों पर जड़ता भरे कर्म सराहे जा रहे हैं, लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन रहे हैं। चकाचौंध और फैशन को जीवन का निर्णायक मानने वाले लोगों की बहुत बड़ी जमात इन्हीं कामों की ओर चक्कर काट रही है, इसी तरह के कामों में लगी हुई है।
सामाजिक जड़ता और राष्ट्रीय प्रवाह के थमते रहने का यह भी एक बहुत बड़ा कारण है जिसकी वजह से हम सभी को निराशा होती रहती है।
आज जड़ता से ऊपर उठने की आवश्यकता है। ऎसे काम करने की जरूरत है जो जीवन और जगत के लिए काम आ सकें। हमारी आने वाली पीढ़ियों को चैतन्य रखते हुए उनकी जड़ता को हमेशा के लिए समाप्त करने की आवश्यकता है।
आज ऎसे कामों की जरूरत है जहां इंसान केवल इंसान न बना रहे बल्कि ऎसा आभामण्डल विकसित हो कि प्रेरणा और शक्ति पुंज के रूप में इंसान विकसित हो सके। खुद के लिए उपयोगी बन सके और दूसरों के लिए भी उपयोगिता का आदर्श रच सके।
मानवीय संसाधन के वजूद को स्वीकारने तथा इसका भरपूर उपयोग समाज और देश हित में करने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है यदि हम जड़ता के मोह को त्यागें और चेतन तत्व को आत्मसात करें।
आज जड़ और चेतन कर्मों के बीच भेद को समझने, अपने आपको जागृत करने की आवश्यकता है। इंसान को इंसान बनाते हुए उसे सर्वगुण एवं सभी प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न करते हुए उसे विकास के अवसर देने, समाज और देश के लिए उपयोगी बनाने की जरूरत है।
इसके लिए हमें जड़ता के अंधकार से बाहर निकलना होगा और चैतन्य प्रकाश की रोशनी का आवाहन करने का सामथ्र्य विकसित करना होगा। जड़ता को तिलांजलि देने का वक्त आ गया है।
रोशनी के जाने कितने सूरज हमेें तलाशते हुए हमारे करीब आना चाहते हैं और हम हैं कि संकीर्ण स्वार्थों में डूबे हुए चिमगादड़ों और उल्लूओं की तरह अंधकार को अपना संगी साथी मानकर उजालों से सायास दूरी बनाए रखना चाहते हैं। तैयारी कर लें उत्तरायण का आगाज अब बस होने ही वाला है।