जैव विविधता, जैविक चक्रण और मृदा जैविक कार्यकलाप संवर्धित होते हैं :- श्री राधा मोहन सिंह

जैव विविधता, जैविक चक्रण और मृदा जैविक कार्यकलाप संवर्धित होते हैं :-  श्री राधा मोहन सिंह

कृषि मंत्रालय (पेसूका) ————- केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि पूर्वोत्तर में कृषि की असीम संभावनाएं है, इसलिए केन्द्र सरकार इस इलाके में कृषि के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है।

उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर में विभिन्न कृषि प्रणालियों के साथ जैविक कृषि की संभावना देखते हुए सरकार इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कृषि कार्यक्रम लागू कर रही है ताकि यहां के गांव के लोग खुशहाल हो सकें। ये योजनाएं हैं- मेरा गांव, मेरा गौरव, राष्ट्रीय फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, कृषि विज्ञान केन्द्रों का सुदृढ़ीकरण और कृषि शिक्षा का विस्तार।

कृषि मंत्री ने ये बात आज केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल में क्षेत्रीय कृषि मेले 2016-17 के उद्घाटन के मौके पर कही। इस मेले का विषय है – ‘’दूसरी हरित क्रांति के दौरान जैविक कृषि और समेकित कृषि प्रणाली का महत्व।’’

इस अवसर पर कुलाधिपति, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल, पदम भूषण डा. आरबी सिंह, कुलपति, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंफाल, डॉ. एम. प्रेमजीत सिंह, कुलपति, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट, डॉ. के. एम. बाजुबरूआ और आईसीएआर सहित कई अन्य संस्थानों के अधिकारी मौजूद थे।

श्री सिंह ने कहा कि जैविक कृषि एक समेकित कृषि है। इसके द्वारा जैव विविधता, जैविक चक्रण और मृदा जैविक कार्यकलाप संवर्धित होते हैं। जैविक कृषि के द्वारा सिंथैटिक उर्वरकों, विकासगत हार्मोनों, वृद्धिकारक एंटीबायोटिक पदार्थों, सिंथैटिक कीटनाशकों के इस्तेमाल के बिना फसलों और पशुओं के लिए पर्यावरण अनुकूल वातावरण उत्पन्न होता है। केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि सरकार पूर्वोत्तर में जैविक खेती को पूरा बढ़ावा दे रही है।

श्री सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में फसलोपरांत एवं अपशिष्ट प्रबंधन का पूरा विकास नहीं हुआ है जिसके कारण फार्म उपज का काफी नुक्सान होता है, विशेष रूप से बागवानी व पशु उपज का। उत्पादन स्थल के नजदीक ही फसलोपरांत प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन व उत्पाद विकास के लिए प्रौद्योगिकी कार्यकलाप आवश्यक है। इससे न केवल फार्म उपज की सुरक्षा होगी बल्कि रोजगार सृजन भी होगा और किसानों की आय में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि खाद्य क्षेत्र को संगठित क्षेत्र बनाने के लिए हमें नीति तैयार करनी होगी।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने इस मौके पर जानकारी दी कि पूर्वोत्तर में पहले जहां 7 कृषि कॉलेज थे, अब इनकी संख्या 13 है। वर्ष 2014-15 में पूर्वोत्तर राज्यों के लिए कृषि शिक्षा का बजट जहां 150 करोड़ रूपये था वहीं वर्ष 2016-17 के बजट में इसमें 20 करोड़ रूपये की बढ़ोतरी करके इसे 170 करोड़ रूपये किया गया है।

मौजूदा स्थितियों को ध्यान में रखते हुए युवाओं में कौशल विकास कर उन्हें कृषि उद्यमी के रूप में विकसित करने पर बल दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 में कृषि अनुसंधान के बजट में लगभग 500 करोड़ (32.8%) की अभूतपूर्व वृद्धि की गई है और अब यह 2020 करोड़ रूपये है। वहीं कृषि विस्तार में भी पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 90 करोड़ रूपये (13.6%) की बढ़ोतरी करके इसे 750 करोड़ रूपये कर दिया गया है।

श्री सिंह ने कहा कि देश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों और आईसीएआर के शिक्षण संस्थानों के लिए एक समेकित सूचना प्रबंधन प्रणाली बनाया जा रहा है। इससे छात्र – छात्राओं को विश्वविद्यालयों के प्रोग्राम, गतिविधियां, छात्रवृत्ति, अपनी पढाई और अपने कोर्स से जुड़ी काम की सभी जानकारी ऑनलाइन मिल जाएगी।

छात्रो का राष्ट्रीय आंकड़ा कोष भी इस पर मौजूद रहेगा। प्रथम चरण में इस प्रणाली का परीक्षण पहले केन्द्रीय कृषि विश्वविद्याल, इम्फाल और राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल में किया जाएगा। बाद में अन्य सभी विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों से संबंधित सूचना प्रणाली भी इससे जोड़ दी जाएगी।

कृषि मंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर में मधुमक्खी पालन की बहुत संभावना है। नेशनल बी बोर्ड और कृषि मंत्रालय ने केन्द्रीय कृषि विश्वविद्याल, इम्फाल, मणिपुर में समेकित मधुमक्खीपालन विकास केन्द्र (आईबीडीसी) स्थापित करने का फैसला किया है। इस केन्द्र के जरिए मणिपुर में मधुमक्खीपालन का विकास किया जाएगा और मधुमक्खीपालक किसानों की हर तरह से मदद की जाएगी।

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