- August 31, 2023
जी20 लीडर्स समिट में भारत के पास वित्तीय सुधारों के मामले में उभरने का मौका
लखनऊ (निशांत सक्सेना) : भारत की अध्यक्षता में जी20 देशों की ऊर्जा, जलवायु एवं पर्यावरण से सम्बन्धित बैठकें पिछले महीने सम्पन्न हुईं। इन बैठकों में एक व्यापक श्रंखला रूपी मसलों का हल निकालने के लिये कड़ी मेहनत की गयी जिनसे यह तय होगा कि देशों का यह समूह क्या ऊर्जा और वित्त रूपी दो प्रमुख पहलुओं के इर्द-गिर्द खड़े दीर्घकालिक मुद्दों को लेकर किसी समाधान तक पहुंच पाता है या नहीं।
एक ऐसे वक्त में जब जलवायु संकट दिन-ब-दिन और भी विकट होता जा रहा है वहीं, इस संकट से निपटने के मकसद से सततता के निर्माण, अनुकूलन सुनिश्चित करने और प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन को कम करने के लिये उठाये जा रहे कदमों की रफ्तार बेइंतहा धीमी है।
वैश्विक रिन्यूबल एनेर्जी क्षमता को तीन गुना करने, जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को धीरे-धीरे बंद करने, ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने और वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन को वर्ष 2025 के बाद शीर्ष पर नहीं पहुंचने देने के लिये एक सहमति बनाने को लेकर जी20 देशों के बीच एक राय नहीं है। परिवर्तन का समर्थन करने के लिए अधिक उपलब्ध और किफायती वित्त की जरूरत ही इस विवाद का एक केंद्रीय बिंदु है।
अगले महीने आयोजित होने जा रही जी20 लीडर्स समिट में भारत के पास वित्तीय सुधारों में आसानी पैदा करने वाला देश बनने का मौका है, बशर्ते वह वित्त के उपयोग को बढ़ाने और उसका प्रावधान कराने से सम्बन्धित किसी समझौते को सामने लाने में निर्णायक भूमिका निभा सके।
क्या भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि जी20 देश जलवायु महत्वाकांक्षा में वृद्धि की दिशा में आगे बढ़ें? क्या जी20 निकट भविष्य में होने वाली सीओपी28 शिखर बैठक में वैश्विक स्टॉकटेक की दिशा में काम करने के लिए अच्छी स्थितियाँ प्रदान करेगा? इस पर चर्चा के लिये जलवायु थिंकटैंक ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ ने सोमवार को एक वेबिनार आयोजित किया। संगठन की निदेशक आरती खोसला ने वेबिनार का संचालन किया।
सीनियर रिसर्चर और एनर्जी इकोनॉमिस्ट अभिनव जिंदल ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से भारत जी20 का नेतृत्वकर्ता है और वह विचार विमर्श को संचालित कर रहा है लेकिन मैं यहां पर चीजों को दो हिस्सों में बताकर देखना चाहता हूं। पहला यह कि जी20 ने अभी तक क्या हासिल किया है और अभी उसे क्या हासिल करना बाकी है। नीति संबंधी उद्देश्यों में भारत के लक्ष्य क्या हैं। जी20 बैठक से क्या हासिल किया गया और कहां पर चूक हो गई।
उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक चीन प्लस वन स्ट्रेटजी का सवाल है तो सभी लोग जानते हैं कि भारत के पास मौका है। संभवत: भारत अब अपनी बात को ज्यादा व्यापक फलक तक पहुंचने में निश्चित रूप से सक्षम हो चुका है। निश्चित रूप से जी20 निकट भविष्य में होने वाली सीओपी28 शिखर बैठक में वैश्विक स्टॉकटेक की दिशा में काम करने के लिए अच्छी स्थितियाँ प्रदान करेगा।’’
कार्बन कॉपी के संपादक श्रीशान वी ने कहा, “यह उत्साह जनक बात है कि जी20 देशों के अध्यक्ष के रूप में भारत अफ्रीकी यूनियन को जी20 में लाने की कोशिश कर रहा है। यह देखने वाली बात होगी कि किस तरह के अंतिम लक्ष्य पर रजामंदी बनती है। भारत जी20 अध्यक्ष के रूप में स्थितियों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है लेकिन इसकी रफ्तार को बनाए रखना ही सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। अभी तक जो भी स्थिति है वह बहुत संतोषजनक है।”
द ग्लोबल एनर्जी एलाइंस फॉर पीपल एंड प्लेनेट (जीईएपीपी) के उपाध्यक्ष सौरभ कुमार ने वेबिनार में ब्लेंडेड फाइनेंस का जिक्र करते हुए कहा कि जब हम जलवायु की तरफ देखते हैं तो क्या आप वाकई ऐसा सोचते हैं कि दुनिया में डीकार्बनेशन के लिए जितने धन की जरूरत है उतना उपलब्ध हो पाएगा? इसीलिए ब्लेंडेड फाइनेंस का सवाल खड़ा होता है। दुनिया को डीकार्बनाइजेशन के लिए पूंजी की जरूरत है। इसके लिये ब्लेंडेड कैपिटल, फिलांट्रॉफीज और डीएफआई को साथ लाकर काम करना होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप आप ब्लेंडेड फाइनेंस की तरफ देखें तो मुझे नहीं मालूम कि जी-20 की बैठक में इसे किस हद तक कवर किया जा रहा है लेकिन कम से कम जलवायु वित्त के पहलू पर मुझे उम्मीद है कि बड़ा कदम उठाया जाएगा। भारत के पास दुनिया को एक अलग मॉडल दिखाने का अवसर है।’’
काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) में फेलो वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि जी20 बैठक में जलवायु परिवर्तन से संबंधित घटनाक्रमों के मामले में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है जो पूर्व में सीओपी की बैठकों में नहीं होता आया है। मेरा मानना है कि अपनी दीर्घकालिक रणनीतियों के मामले में कुछ देशों की स्थिति बहुत स्पष्ट है। वैश्विक उत्तर क्षेत्र के सिर्फ पांच सदस्य देशों आस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, जापान और ब्रिटेन ने ही ग्लोबल साउथ के देशों को क्लाइमेट फाइनेंस उपलब्ध कराने को लेकर अपनी संकल्पद्धता का जिक्र किया है। दूसरे देश तो इस बारे में बात तक नहीं करना चाहते।
उन्होंने कहा, ‘‘अभी हमने जॉन केरी (जलवायु सम्बन्धी विशेष अमेरिकी दूत) का एक बयान सुना जिसमें उन्होंने कहा कि उनका देश लॉस एंड डैमेज फंड के नाम पर के नाम पर एक भी पैसा नहीं देगा। उनका यह संदेश बिल्कुल खुला और बुलंद है। इसके अलावा जी20 देश में से सिर्फ 11 सदस्य देश ही दीर्घकाल में क्षमता विकास की बात करते हैं। कई ऐसी दिलचस्प चीजें उभर कर सामने आ रही हैं लेकिन इन नई चीजों को लेकर देश के बीच आम राय अभी बहुत दूर की कौड़ी है।’’
क्लाइमेट पॉलिसी इनीशिएटिव के इंडिया डायरेक्टर ध्रुव पुरकायस्थ ने सतत वित्त पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि जब जी20 की बैठक शुरू हुई तो उसके पास जलवायु वित्त का एजेंडा था। एमडीबी को गारंटी में सुधार करना चाहिए। एमडीबी के लिए एक नए वित्तीय ढांचा तैयार करने की जरूरत है।
एक ऐसे वक्त में जब जलवायु संकट दिन-ब-दिन और भी विकट होता जा रहा है वहीं, इस संकट से निपटने के मकसद से सततता के निर्माण, अनुकूलन सुनिश्चित करने और प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन को कम करने के लिये उठाये जा रहे कदमों की रफ्तार बेइंतहा धीमी है।
वैश्विक रिन्यूबल एनेर्जी क्षमता को तीन गुना करने, जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को धीरे-धीरे बंद करने, ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने और वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन को वर्ष 2025 के बाद शीर्ष पर नहीं पहुंचने देने के लिये एक सहमति बनाने को लेकर जी20 देशों के बीच एक राय नहीं है। परिवर्तन का समर्थन करने के लिए अधिक उपलब्ध और किफायती वित्त की जरूरत ही इस विवाद का एक केंद्रीय बिंदु है।
अगले महीने आयोजित होने जा रही जी20 लीडर्स समिट में भारत के पास वित्तीय सुधारों में आसानी पैदा करने वाला देश बनने का मौका है, बशर्ते वह वित्त के उपयोग को बढ़ाने और उसका प्रावधान कराने से सम्बन्धित किसी समझौते को सामने लाने में निर्णायक भूमिका निभा सके।
क्या भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि जी20 देश जलवायु महत्वाकांक्षा में वृद्धि की दिशा में आगे बढ़ें? क्या जी20 निकट भविष्य में होने वाली सीओपी28 शिखर बैठक में वैश्विक स्टॉकटेक की दिशा में काम करने के लिए अच्छी स्थितियाँ प्रदान करेगा? इस पर चर्चा के लिये जलवायु थिंकटैंक ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ ने सोमवार को एक वेबिनार आयोजित किया। संगठन की निदेशक आरती खोसला ने वेबिनार का संचालन किया।
सीनियर रिसर्चर और एनर्जी इकोनॉमिस्ट अभिनव जिंदल ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से भारत जी20 का नेतृत्वकर्ता है और वह विचार विमर्श को संचालित कर रहा है लेकिन मैं यहां पर चीजों को दो हिस्सों में बताकर देखना चाहता हूं। पहला यह कि जी20 ने अभी तक क्या हासिल किया है और अभी उसे क्या हासिल करना बाकी है। नीति संबंधी उद्देश्यों में भारत के लक्ष्य क्या हैं। जी20 बैठक से क्या हासिल किया गया और कहां पर चूक हो गई।
उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक चीन प्लस वन स्ट्रेटजी का सवाल है तो सभी लोग जानते हैं कि भारत के पास मौका है। संभवत: भारत अब अपनी बात को ज्यादा व्यापक फलक तक पहुंचने में निश्चित रूप से सक्षम हो चुका है। निश्चित रूप से जी20 निकट भविष्य में होने वाली सीओपी28 शिखर बैठक में वैश्विक स्टॉकटेक की दिशा में काम करने के लिए अच्छी स्थितियाँ प्रदान करेगा।’’
कार्बन कॉपी के संपादक श्रीशान वी ने कहा, “यह उत्साह जनक बात है कि जी20 देशों के अध्यक्ष के रूप में भारत अफ्रीकी यूनियन को जी20 में लाने की कोशिश कर रहा है। यह देखने वाली बात होगी कि किस तरह के अंतिम लक्ष्य पर रजामंदी बनती है। भारत जी20 अध्यक्ष के रूप में स्थितियों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है लेकिन इसकी रफ्तार को बनाए रखना ही सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। अभी तक जो भी स्थिति है वह बहुत संतोषजनक है।”
द ग्लोबल एनर्जी एलाइंस फॉर पीपल एंड प्लेनेट (जीईएपीपी) के उपाध्यक्ष सौरभ कुमार ने वेबिनार में ब्लेंडेड फाइनेंस का जिक्र करते हुए कहा कि जब हम जलवायु की तरफ देखते हैं तो क्या आप वाकई ऐसा सोचते हैं कि दुनिया में डीकार्बनेशन के लिए जितने धन की जरूरत है उतना उपलब्ध हो पाएगा? इसीलिए ब्लेंडेड फाइनेंस का सवाल खड़ा होता है। दुनिया को डीकार्बनाइजेशन के लिए पूंजी की जरूरत है। इसके लिये ब्लेंडेड कैपिटल, फिलांट्रॉफीज और डीएफआई को साथ लाकर काम करना होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप आप ब्लेंडेड फाइनेंस की तरफ देखें तो मुझे नहीं मालूम कि जी-20 की बैठक में इसे किस हद तक कवर किया जा रहा है लेकिन कम से कम जलवायु वित्त के पहलू पर मुझे उम्मीद है कि बड़ा कदम उठाया जाएगा। भारत के पास दुनिया को एक अलग मॉडल दिखाने का अवसर है।’’
काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) में फेलो वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि जी20 बैठक में जलवायु परिवर्तन से संबंधित घटनाक्रमों के मामले में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है जो पूर्व में सीओपी की बैठकों में नहीं होता आया है। मेरा मानना है कि अपनी दीर्घकालिक रणनीतियों के मामले में कुछ देशों की स्थिति बहुत स्पष्ट है। वैश्विक उत्तर क्षेत्र के सिर्फ पांच सदस्य देशों आस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, जापान और ब्रिटेन ने ही ग्लोबल साउथ के देशों को क्लाइमेट फाइनेंस उपलब्ध कराने को लेकर अपनी संकल्पद्धता का जिक्र किया है। दूसरे देश तो इस बारे में बात तक नहीं करना चाहते।
उन्होंने कहा, ‘‘अभी हमने जॉन केरी (जलवायु सम्बन्धी विशेष अमेरिकी दूत) का एक बयान सुना जिसमें उन्होंने कहा कि उनका देश लॉस एंड डैमेज फंड के नाम पर के नाम पर एक भी पैसा नहीं देगा। उनका यह संदेश बिल्कुल खुला और बुलंद है। इसके अलावा जी20 देश में से सिर्फ 11 सदस्य देश ही दीर्घकाल में क्षमता विकास की बात करते हैं। कई ऐसी दिलचस्प चीजें उभर कर सामने आ रही हैं लेकिन इन नई चीजों को लेकर देश के बीच आम राय अभी बहुत दूर की कौड़ी है।’’
क्लाइमेट पॉलिसी इनीशिएटिव के इंडिया डायरेक्टर ध्रुव पुरकायस्थ ने सतत वित्त पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि जब जी20 की बैठक शुरू हुई तो उसके पास जलवायु वित्त का एजेंडा था। एमडीबी को गारंटी में सुधार करना चाहिए। एमडीबी के लिए एक नए वित्तीय ढांचा तैयार करने की जरूरत है।
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Climateकहानी