- June 25, 2020
चीन की कमज़ोर नब्ज़ पर वार करने की जरूरत —– सज्जाद हैदर— (वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक)
चीन को धूल चटाना यदि इतना आसान नहीं, तो नमुमकिन भी नहीं। भारत चीन को धूल आसानी के साथ चटा सकता है। भारत को चीन के विरुद्ध दूरगामी बुद्धि का प्रयोग करना होगा। क्योंकि, हमें अपने दुश्मन को समाप्त करना है तो योजनाबद्ध रूप से उसे पराजित किया जा सकता है। जिसमें भारत को एक टीम बनानी पड़ेगी जोकि उस टीम का मात्र एक ही कार्य होगा कि वह चीन के सभी पड़ोसी पीड़ित देशों के साथ बाचचीत करके एक नया समीकरण बनाए जिससे कि चीन को एक साथ चारों ओर से घेरा जा सके। क्योंकि, जब-तक योजनाबद्ध रूप से चीन को नहीं घेरा जाएगा तबतक चीन बारी बारी से सभी देशों को इसी तरह से अपना निशाना बनाता रहेगा। ऐसे तमाम देश हैं जोकि चीन का प्रकोप झेल रहे हैं।
मात्र भारत ही एक मात्र देश नहीं जिसपर चीन अपनी आँख गड़ाए हुए बैठा हुआ है। चीन ने अपने किसी भी पड़ोसी देश को कभी भी आगे नहीं बढ़ने दिया। चीन अपने अधिकतर पडोसी देशों का लगातार शोषण कर रहा है। अतः चीन की इस कमजोर नस को हमें पकड़ने की जरूरत है। भारत को चाहिए कि वह उन तमाम देशों के साथ बातचीत करे और अपने साथ उन सभी पीड़ित देशों को जोड़ने की दिशा पर कार्य करे। क्योंकि यह चीन की कमजोर नस है जिसको आसानी के साथ चीन के विरूद्ध खड़ा किया जा सकता है।
क्योंकि, सभी पीड़ित देश बहुत ही छोटे एवं कमजोर हैं जोकि चीन से अपनी लड़ाई अपने स्तर पर लड़ रहे हैं। यदि इस लड़ाई को संगठनात्मक रूप दे दिया जाए तो यह लड़ाई बहुत ही मजबूत हो जाएगी। जिससे चीन को चारों ओर से आसानी के साथ घेरा जा सकता है।
चीन की मानसिकता साफ एवं स्पष्ट हो चुकी है। चीन ने तिब्बत के साथ क्या किया यह जग-जाहिर है। चीन अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा है। चीन यह कदापि नहीं चाहता की कोई भी उसकी योजना में बाधा उत्पन्न करे। इसलिए चीन ने दशकों से भारत को अपना निशाना बनाया हुआ है। एक बात सत्य है कि एशियाई दीप में भारत को छोड़कर कोई भी देश ऐसा नहीं जोकि अपने दम पर चीन के सामने टिक सके। चीन के आसपास के पड़ोसी देशों का दो तरहह का माहौल है यह तो वह चीन के हाथों बिक चुके हैं जोकि चीन के कर्ज में डूब चुके हैं। दूसरे वह देश हैं जोकि चीन का प्रकोप झेल रहे हैं। दो प्रकार के चीन के पड़ोसी देश हैं।
यह बात तो माननी होगी कि लगभग हर पड़ोसी देश के साथ चीन का सीमा विवाद है। क्षेत्रफल के मामले में रूस और कनाडा के बाद चीन का ही नंबर आता है लेकिन दुनिया में सबसे ज्यादा पड़ोसी देश चीन के ही हैं भूमि से सटे 14 देश और समुद्री सीमा के किनारे 6 देशों ने भौगोलिक रूप से चीन को घेर रखा है। दुनिया के अधिकांश देशों की तुलना में चीन का कुछ अलग ही इतिहास रहा है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि अन्य देशों की तुलना में चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ खटपट की स्थिति बनाए रखता है।
इसका मुख्य कारण है चीन अवैध कब्जे की मानसिकता। खास बात यह है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के तख्तापलट ने सरकार के शांतिपूर्ण तरीके से बदलने की संभावना को असंभव बना दिया, परिणाम स्वरूप आवश्यक ऐतिहासिक दस्तावेज गुम हो गए। जोकि अपने आपमें बहुत कुछ कहता है। चीन का मानना है कि विश्व क्रांति की सफलता के बाद सारे राज्य खुद ही गायब हो जाएंगे। क्योंकि तब राज्यों का अस्तित्व रहेगा ही नहीं।
सीमाओं की भूमिका अर्थहीन हो जाएगी। चीन जिस तरह से अपनी सीमा का विस्तार करने के लिए आतुर है वह साफ एवं स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। चीन रेलवे, सड़क और बंदरगाहों के निर्माण में जिस जोर-शोर के साथ जान तोड़ मेहनत कर रहा है। वह जल्दबाजी साफ ही दिखाई दे रही है।
चीन अपनी सरहदों पर अपना मजबूत बेस तैयार करने में दिन रात लगा हुआ है। चीन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे लाओस, कंबोडिया और वियतनाम को भूखा और प्यासा मारने की योजना पर तेजी के साथ काम कर रहा है। एक तरफ चीन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की ओर बहने वाली मेकांग नदी पर बांध बनाकर नदी को सुखाने का काम कर रहा है तो वहीं सी-फूड पर आश्रित इन देशों पर उसने दक्षिण चीन सागर में मछली पकड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
एक तरफ पानी की कमी से जहां दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में फसलें तबाह हो जाएंगी तो वहीं मछली पकड़ने पर चीन के अवैध प्रतिबंध के कारण दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के करोड़ों लोग बेरोजगारी से मर जाएंगे। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों अगर चीन के खिलाफ आवाज उठाने का साहस नहीं जुटा पाए तो इन देशों को बुरी तरह से तबाह होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
बता दें कि लाओस, कंबोडिया और वियतनाम जैसे देशों की आबादी का बड़ा हिस्सा खाने के लिए सी फूड पर आश्रित होता है। इसके अलावा मछली पकड़ने के व्यवसाय से इन देशों की जीडीपी में भी काफी बढ़ोतरी होती है। हालांकि, चीन ने 1 मई के बाद से अवैध कदम उठाते हुए दक्षिण चीन सागर में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी है।
चीन का इसके पीछे तर्क है कि वह प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना चाहता है। जबकि चीन का मकसद यह है कि उसके कुकृत्यों की पोल दुनिया के सामने न खुले इसलिए चीन ने मछुआरों के आने जाने पर बड़े ही खूबसूरती के साथ प्रतिबंध लगा दिया है। वियतनाम और कंबोडिया जैसे देशों ने कहा है कि अपने क्षेत्र में मछली पकड़ने से उनके नागरिकों को कोई नहीं रोक सकता। वास्तव में मछली पकड़ने से रोकना तो एक बहाना है। चीन पूरी तरह से समुद्री मार्गों पर पाबंदी लगाने की जुगत में लगा हुआ है यह उसी का हिस्सा है।
चीन ने जो स्क्रप्टि तैयार ही है वह अपनी उसी स्क्रप्टि पर कार्य कर रहा है। अहम विषय यह है कि मई से लेकर अक्टूबर तक का महीना दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लिए इसलिए भी सबसे ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि इन महीनों में यहां सूखे का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, चीन ने इन देशों में बहने वाली नदी पर अपने इलाके में दर्जनों बांध बना लिए हैं, जिससे इस नदी का बहाव काफी हद तक कम हो गया है।
इस नदी पर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के 5 से 6 करोड़ लोग आश्रित होते हैं। इसके साथ ही इन देशों में होने वाली खेती भी मुख्यतः इसी नदी पर आश्रित होती है। एक तरफ चीन ने मेकांग नदी को सुखाकर इन देशों की खेती को तबाह करने का प्लान तैयार कर लिया है तो वहीं सी फूड पर प्रतिबंध लगाकर भी चीन इन देशों को अब गरीबी की मार से भूखा मारना चाहता है।
पानी की भयंकर कमी तो इन देशों में पहले से ही है जिस कारण यहाँ लोग मछली पालन और किसानी से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। अतः चीन ने उसी नस को पकड़ा और जोरदार वार कर दिया जिससे कि इन देशों में तबाही होना पूरी तरह से तय है। एक रिपोर्ट के अनुसार इन सभी देशों में बहने वाली मेकोंग नदी में जल स्तर 50 सालों के निम्न स्तर पर आ चुका है जिसके कारण इन देशों में किसानों को बड़ी तबाही का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ तक कि कुछ जगहों पर तो यह नदी सूखने की कगार पर पहुँच चुकी है।
इसका एक ही कारण है चीन द्वारा इस नदी पर बनाए जा रहे एक के बाद एक बांध ही मुख्य समस्या हैं। जानकारी के अनुसार चीन ने मेकोंग नदी पर चोरी छुपके अब तक एक दो नही बल्कि पूरे ग्यारह बांध बना लिए हैं जिसमें चीन 47 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी स्टोर करके रखता है। लाओस, वियतनाम और कंबोडिया दक्षिण चीन सागर में अपने-अपने अधिकारों को लेकर चीन के बीच तनाव लगातार बना रहता है।
क्योंकि, चीन पूरी तरह से इन देशों को मजबूर करने के प्रयास में लगा हुआ है। जबकि लाओस और वियतनाम जैसे देश चीन का विरोध करते हैं। परन्तु वह छोटे और कमजोर देश हैं। खास बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी अपनी आँख मूंदे हुए है।
जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इन देशों के साथ मिलकर चीन का कड़ा विरोध करना चाहिए। और इन देशों की समस्यओं को सुनना चाहिए। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब चीन के कारण इन सब देशों में तबाही आ जाएगी।
ताइवान से भी चीन का गहरा विवाद है जोकि जगजाहिर है चीन लगातार ताईवान के साथ जिस तरह का व्यवहार कर रहा है वह जगजाहिर है। सूत्रों के अनुसार चीन के 10 फाइटर जेट ताईवान के ओर निकल पड़े थे जिसमें ताइवान की सेना का कहना है कि पिछले करीब डेढ़ हफ्ते में चीन की एयरफोर्स ने ताइवान के पास 6 बार चक्कर काटे हैं।
चीन ने सार्वजनिक तौर पर इस बारे में कुछ नहीं बताया है कि आखिर टापू के पास उसने अपनी गतिविधियां क्यों तेज की हैं। लेकिन ताइवानी लड़ाकू विमानों ने चीनी जंगी जहाजों को खदेड़ दिया। ताइवानी रक्षा मंत्रालय के अनुसार पिछले हफ्ते भी चीनी वायुसेना के एसयू-30 लड़ाकू विमानों ने ताइवानी हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया था। जिसके बाद उन्हें चेतावनी देकर भगा दिया गया। हाल के दिनों में चीनी लड़ाकू विमानों के ताइवानी हवाई क्षेत्र में घुसने की वारदातों में तेजी देखने को मिली है। ताइवान ने बताया कि चीन के उस जहाज की पहचान रूसी जहाज की डिजाइन पर आधारित वाई-8 के रूप में की गई है।
चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है। चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी इसके लिए सेना के इस्तेमाल पर भी जोर देती आई है। ताइवान के पास अपनी खुद की सेना भी है। जिसे अमेरिका का समर्थन भी प्राप्त है। हालांकि ताइवान में जबसे डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सत्ता में आई है तबसे चीन के साथ संबंध खराब हुए हैं।
ताइवान की अच्छी तरह से ट्रेन सेना अमेरिकी F-16 फाइटर जेट्स का आधुनिकीकरण कर रही है और समय-समय पर ताइवान की खाड़ी को पट्रोल करती रहती है जो टापू को उससे अलग करता है। चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है।
चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी इसके लिए सेना के इस्तेमाल पर भी जोर देती आई है। इन सभी विषयों पर भारत को मजबूती के साथ रणनीति तैयार करनी होगी जिससे कि गोलबंदीकर चीन को चारों ओर से मजबूत पटखनी आसानी के साथ दी जा सके।