• December 21, 2014

घर वापसी , पर विवाद क्यों ? इस्लाम के जड में कौन ?

घर वापसी , पर विवाद क्यों ? इस्लाम के जड में कौन ?
अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और  भारत
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगिट का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था।
SHAI-IMAGEआदित्यों का आवास स्थान-देवलोक भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित हिमालयी क्षेत्रों में रहा था। बेबीलोन की प्राचीन गुफाओं में पुरातात्त्विक खोज में जो भित्ति चित्र मिले है, उनमें भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक करते हुए उत्कीर्ण किया गया है। इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े।
उमर-बिन-ए-हश्शाम  का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईर्ष्यावश  अबुल जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था। ‘भ्वसनस’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्ति्यो के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है, वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
यह मंदिर रामायण काल से भी अधिक प्राचीन है । यह रामायण से सम्बन्धित श्रीलंका का सबसे महत्वपूर्ण एवं भगवान शिव का सबसे प्राचीन व एतिहासिक मंदिर है । मुनेश्वरम् का अर्थ है (मुऩिईश्वरम) । भगवान शिव का प्रथम मंदिर । शिवलिंगम यहाँ पहले से ही (श्रीराम के आने से पूर्व) स्थापित था । इसका अर्थ है कि राजा रावण इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते थे । श्रीराम और रावण के युद्ध एवं रावण की मृत्यु के पश्चात् जब श्रीराम विमान से अयोध्या वापस जा रहे थे तो ब्रह्महस्थि दोष के कारण विमान में कंपन होने लगा और जब विमान मुनेश्वरम् मन्दिर के ऊपर पहुँचा तो कम्पन रुक गया ।
श्रीराम जानते थे कि राजा रावण प्रतिदिन मुनेश्वरम् मन्दिर में शिवजी की पूजा करने के लिए जाते थे । अतः श्रीराम ने अपना विमान मुनेश्वरम् में रोका और भगवान से कोई मार्ग दिखाने की प्रार्थना की तब भगवान शिव ने सुझाव दिया कि ब्रह्महस्थि दोष को दूर करने के लिए चार लिंग मन्दिरों की स्थापना चारों कोनों पर करो तत्पश्चात् श्रीराम ने लंका के चारों कोनों पर एक-एक लिंग की स्थापना की । इनमें से एक लिंग (रामेश्वरम्) भारत में है । लंकापुर में चारों कोनों पर मन्नावरी, तिरुकोनेश्वरम तिरुकेथेश्वरम् एवं रामेश्वरम् (भारत में) स्थापित है ।
कोई यह न समझेे की भगवान शिव केवल भारत में पूजित है । विदेशो में भी कई स्थानों पर शिव मुर्तिया अथवा शिवलिंग प्राप्त हुए है कल्याण के शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्त में तथा अन्य कई प्रान्तों में नदी पर विराजमान शिव की अनेक मुर्तिया है वहाॅ के लोग बेल पत्र और दूध से इनकी पूजा करते है । तुर्किस्थान के बबिलन नगर में 1200 फिट का महा शिवलिंग है । पहले ही कहा गया की शिव सम्प्रदायों से ऊपर है।
मुसलमान भाइयो के तीर्थ मक्का में भी मक्केश्वर नमक शिवलिंग होना शिव का लीला ही है वहाॅ के जमजम नामक कुएं में भी एक शिव लिंग है जिसकी पूजा खजूर की पतियों से होती है इस कारण यह है की इस्लाम में खजूर का बहूत महत्व है । अमेरिका के ब्राजील में न जाने कितने प्राचीन शिवलिंग है । स्काॅटलैंड में एक स्वर्णमंडित शिवलिंग है जिसकी पूजा वहाॅ के निवासी बहुत श्रदा से करते है। इंडोचाईना  में भी शिवालय और शिलालेख उपलब्ध है । शिव निश्चय ही विश्वदेव है ।
भारतीय संस्कृति का यह शिव भाव दरअसल उस तत्व की ओर इशारा करता है, जो स्थायी है, स्वयंभू है, अनिर्मित है, क्योंकि उसे बनाया नहीं गया। स्वयंभू होने के कारण उसे मिटाया भी नहीं जा सकता। उपनिषद् इसे ही आत्म तत्व नाम देते हैं, जो शुभ व सर्वज्ञ हैं और सभी के लिए कल्याणकारी हैं, वही जिसे श्यति पापम-शे वन् कहा गया है। शिव शब्द का अर्थ है- शुभ, मांगलिक, कल्याणकारी आदि। शिव भाव उतना ही पवित्र और निश्छल है, जितना भारतीय दर्शन, कला, साहित्य और लोक परंपरा में सुगंध की तरह घुले शिव, जिनके ईशान, रुद्र, आशुतोष, केशी, पशुपति आदि न जाने कितने नाम हैं।
अगर हमें में देखे समस्त मानवीय साम्राज्य  सिर्फ भगवान शिव द्वारा संचालित है।  इस्लाम तो महज मोहमद पैगम्बर द्वारा अमानवीय रूप से निर्मित धर्म है। जिसके कारण आज इस्लाम नर पिशाचों के हाथो खेल रहा है . हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक, ‘ज्ञान का पिता’ कहे जाने वाले अबुल हाकम को  मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईर्ष्यावश  अबुल जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहने लगा।
हमें यहाँ से घर वापसी का प्रयास करनी चाहिए जिसे इस्लाम धर्म में  मौजूद नर – पिशाचों का अंत हो सके। भारत में तो ये सभी हिन्दू वंशज है , कुछ रीति रिवाजों को छोड़कर अधिकाशं लक्षण हिन्दुओं के संस्कारों से  युग्मित है।
(अंश – स्वंय रचित पुस्तक -प्रवचन सार से )

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