• February 7, 2016

किस काम की है यह जिन्दगी – डॉ. दीपक आचार्य

किस काम की है  यह जिन्दगी  – डॉ. दीपक आचार्य

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 सुबह होती है, शाम होती है, जिन्दगी यूँ ही तमाम होती है। यह बात दुनिया के हर जीव पर लागू होती है। हर दिन कुछ न कुछ करने के लिए होता है। हर अगले दिन हमें यह अहसास होना चाहिए कि बीता हुआ दिन कुछ न कुछ उपलब्धि देकर गया है और अपनी जिन्दगी के खाते में कम से कम एक अच्छा काम और उपलब्धि जुड़ी है।

हमारा गुजारा हुआ वही दिन सफल है जिस दिन हमें दिल से यह अहसास हो कि हमने कुछ किया है जो हमारी जिन्दगी की उपलब्धियों में जुड़ा है। जो ऎसा कर पाते हैं उन्हीं का जीवन सफल है। और जो इस तरह का नहीं कर पा रहा है वह जीवन में सफल नहीं कहा जा सकता बल्कि इनकी जिन्दगी टाईमपास ही कही जा सकती है।

हम सभी की जिन्दगी आज भागदौड़ से इतनी भरी हुई हो गई है कि हमारे पास न तो रोजाना कुछ नया करने का समय है, न हममें वह माद्दा बचा है कि कुछ नया कर सकें। कुछ करना भी चाहें तो कभी परिस्थितियां हमारा साथ नहीं देती, कभी शरीर। और अधिकतर बार हमारा काम करने का मूड नहीं होता।

यह मूड  आजकल सभी जगह सर्वाधिक प्रचलित कारक है जिसने लोगों का दिमाग खराब कर रखा है।  लगता है कि जैसे मूड नाम का कोई विश्वव्यापी अदृश्य रिमोट कंट्रोल है जो कि आदमी को चलाता है। पिछले दो दशक से यह शब्द इतना अधिक प्रचलन में आ गया है कि कुछ कहा नहीं जा सकता।

जिसे देखो वो मूड की बात करता है। कभी मूड अच्छा होता है तो वह सब कुछ कर लेता है लेकिन अधिकांश बार हरेक इंसान मूड खराब होने की बात कहता हुआ काम को आगे से आगे टालता चला जाता है।

दुनिया में बहुत सारे विचित्र किन्तु सत्य आविष्कार हो गए लेकिन मूड ठीक करने के लिए न तो कोई उपकरण बना है न कोई दवा हम खोज पाए हैं। मूड अपने आप में स्वैच्छिक है। उसका कोई भरोसा नहीं कि वह कब ठीक-ठाक रहे, कब खराब हो जाए।

फिर खराब होने के कारणों का पता लगाने की कोशिश करें तो कभी ढेरों कारण एक साथ आ धमकेंगे, और कभी खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली स्थिति ही सामने आ जाती है।

इस मायने में यह कहा जाए कि अब इंसान का अपने आप पर ही न तो नियंत्रण रहा है, न कोई भरोसा। हम सभी लोग रोजाना सपनों के महल बनाते हैं, दिवा स्वप्न देखते हैं, बड़े अरमानों के साथ जीते हुए हर दिन  कुछ न कुछ करने का संकल्प लेते हैं।

दिन उगने से लेकर देर रात तक सोचते ही रहते हैं फिर भी वह सब नहीं कर पाते हैं जो करना चाहते हैं। रोजाना की यह  स्थिति बचपन से लेकर वार्धक्य पाने तक यों ही बनी रहती है। आज के सोचे गए कामों को आज करने की सोचते हैं फिर आलस्य, प्रमाद और व्यस्तता के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है और बात कल पर टाल देते हैं। कल भी आता है लेकिन वो कल नहीं आता जिसकी कल्पना हम एक दिन पहले कर लिया करते हैं।

इस तरह आज-कल के फेर में हम लोग बचपन से जवानी, जवानी से प्रौढ़ावस्था और इसके आगे बुढ़ापा तक पा लिया करते हैं लेकिन  कुछ हो नहीं पाता। न आज का काम आज पूरा हो पाता है, न कल का काम कल हो पाता है।

आज-कल और परसों की सुविधा हमेशा यों ही बनी रहकर हमारे आलस्य को परिपुष्ट करती रहती है और हम लोग एक-एक दिन करके दिन-महीने और सालों साल गुजार लिया करते हैं फिर भी कोई उपलब्घि हमारे हाथ नहीं लग पाती।

एक तरफ उपलब्धि के मामले में शून्यता भरी स्थिति हमें कोसती रहती है, सैकड़ों अरमान और कामों का अम्बार लग जाता है और इस वजह से तनाव हमें घेर लिया करते हैं क्योंकि हमारे चेतन-अवचेतन में हर क्षण इस बात का मलाल रहता है कि काम नहीं हो पाए।

 फिर हमारे पास प्राथमिकताएं तय करने का कोई पैमाना नहीं होता। और कृपणता इतनी कूट-कूट कर भरी हुई रहती है कि कोई सा विचार, काम या स्वप्न हम त्यागना नहीं चाहते। इस हिसाब से दिमाग किसी ट्यूमर या कैंसर की गाँठ की तरह हो जाता है जिसमें जाने कितने बरसों से विचार, अधूरे काम और पूरे नहीं हो सके संकल्पों का जखीरा भरा रहता है जो हमें आत्महीनता और आत्मशैथिल्य का बोध कराता हुआ हर क्षण हमारे आत्मबल को कमजोर करता रहता है।

इस वजह से हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य निर्बल होता चला जाता है और हम बिना किसी उपलब्धि के अपनी पूर्ण आयु प्राप्त होने के काफी समय पहले ही आकस्मिक रूप से मौत के आगोश में आकर मिट्टी में मिल जाते हैं।

उस जिन्दगी का क्या वजूद और क्या प्रतिष्ठा, जो नाकारा होकर गुजरे और कुछ उपलब्धियां न गिना सके।  हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि नौकरी और काम-धंधों के जरिये प्राप्त अकूत धन सम्पदा, बड़े-बड़े और प्रभावशाली कहे जाने वाले पाँच साला और साठ साला पद, भोग-विलास के मनचाहे संसाधन और हड़पी गई लोकप्रियता को उपलब्धियों में शुमार नहीं किया जा सकता। यह तो हर सामान्य इंसान भी कर सकता है।

उपलब्धियां वे ही हैं जो हम नौकरी और काम-धंधों में रमते हुए नवाचारों के साथ करें, समाज और देश की भलाई के लिए कुछ कर दिखाएं या निष्काम समाजसेवा के माध्यम से निस्पृह, सादगी पूर्ण और शालीन समाजसेवी की अनूठी पहचान बनाएं।

अपने व्यक्तिगत या पारिवारिक भरणपोषण के अलावा हम जो भी अच्छे और निष्काम काम करते हैं उन्हें ही उपलब्धियों में गिना जा सकता है। और ये उपलब्धियां भी रचनात्मक कर्मयोग को प्रोत्साहित करने वाली हों, समाज और देश के कल्याण में सम्बल देने वाली हों तथा इनके लिए समाज से किसी भी प्रकार की आशा या अपेक्षा नहीं हो।

रोजमर्रा की दिनचर्या में दूसरों से कुछ अलग कुछ बेहतर और अन्यतम करने का माद्दा होने पर ही उपलब्धियां पायी जा सकती हैं। प्रयास यह करें कि रोजाना हम कोई न कोई उपलब्धि हासिल करें और अपने व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाएं। यह कर सकें तभी हमारा जीना सफल है अन्यथा सदियों से लोग पैदा होते रहे हैं और बिना कुछ किए वापस जा रहे हैं पर इनका न कहीं कोई जिक्र करता है न इनका कोई काम बोलता है।

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