कार्यपालिका और न्यायपालिका की भागीदारी से ही न्यायालयीन अधोसंरचना और आधुनिकीकरण संभव

कार्यपालिका और न्यायपालिका की भागीदारी से ही न्यायालयीन अधोसंरचना और आधुनिकीकरण संभव

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कार्यपालिका और न्यायपालिका की सतत भागीदारी से न्यायालयीन अधोसंरचना तथा न्यायालयों के आधुनिकीकरण के लिए मिलकर कार्य करने की सलाह दी।

श्री चौहान आज नई दिल्ली में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में बोल रह थे। इस अवसर पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री ए.एम. खानविलकर ने भी अपने विचार रखे।

सम्मेलन को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संबोधित किया। इस अवसर पर केन्द्रीय विधि मंत्री श्री सदानन्द गौड़ा सहित सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री एच.एल. दत्तू और मुख्यमंत्री तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश मौजूद थे।

श्री चौहान ने कहा कि राज्य सरकार सस्ता, सुलभ और शीघ्र न्याय देने की प्रक्रिया में न्यायपालिका को हर प्रकार का सहयोग देने के लिए कटिबद्ध है। इस कार्य में किसी भी प्रकार की वित्तीय बाधा नहीं आयेगी।

न्यायपालिका द्वारा राज्य सरकार से अपेक्षित किसी भी प्रकार की सहायता राज्य सरकार अपने संसाधनों से ही देगी। श्री चौहान ने कहा कि वे उच्च न्यायालय को वित्तीय स्वायत्तता और बजट के पुनर्विनियोजन करने का अधिकार देने को तैयार हैं।

श्री चौहान ने न्यायालयों में वर्षों से लम्बित प्रकरणों की संख्या को कम करने के लिए नई नीति तथा विधिक परिवर्तन को आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि चेक बाउंस और राजस्व मामलों से जुड़े छोटे प्रकरणों का प्रारंभिक निराकरण प्रदेश के राजस्व न्यायालय के माध्यम से किया जा सकता है।

इसी प्रकार मोटर व्हीकल एक्ट आदि से जुड़े प्रकरण प्रभावी पेनल्टी और चालान से ही निपटाये जा सकते हैं। श्री चौहान ने कहा कि राज्य सरकार के खिलाफ अधिकतर प्रकरण उसके अपने कर्मचारियों/अधिकारियों द्वारा ही दायर किये जाते हैं। इसके लिए राज्य सरकार को अपनी आंतरिक व्यवस्था में ही कर्मचारियों एवं अधिकारियों के प्रकरण को निर्धारित समय सीमा में समाप्त किया जाना चाहिए। श्री चौहान ने बताया कि इस संबंध में राज्य सरकार ने वर्ष 2009 में पब्लिक सर्विस डिलीवरी गारंटी एक्ट लागू किया, जिससे सारे कार्य निर्धारित समय सीमा में करना वांछनीय है।

श्री चौहान ने बताया कि मध्यप्रदेश में श्रम कानून में मजदूरों और कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखकर विभिन्न अधिनियम में संशोधन किया गया है। महिला तथा बालक-बालिकाओं के विरुद्ध घटित अपराधों में जीरो टालरेंस की नीति अपनायी गयी है।

राज्य सरकार ने न्यायालयों के आधुनिकीकरण के लिए आई.टी. का उपयोग, डिजिटाइजेशन तथा प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध करवाये जा रहे हैं जो न्यायिक प्रक्रिया के सरलीकरण तथा न्यायालयों में लम्बित प्रकरणों को कम करने में सहायक होंगे। राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री अधिवक्ता कल्याण योजना 2012 प्रारंभ की है।

योजना में आकस्मिक मृत्यु होने पर एक लाख रुपये की त्वरित सहायता उपलब्ध करवायी जाती है तथा नये अधिवक्ताओं को शासन द्वारा 15 हजार रुपये का अनुदान लाइब्रेरी तथा ऑफिस स्थापित करने के लिए दिया जाता है। गंभीर बीमारी होने पर आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करवायी जाती है।

राजेश पाण्डेय

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