ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के बीच विवाद: महानदी के पानी की न्यायपूर्ण हिस्सेदारी के लिए वचनबद्ध

ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के बीच विवाद: महानदी के पानी की न्यायपूर्ण हिस्सेदारी के लिए वचनबद्ध

छत्तीसगढ़ ———-  मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में महानदी के पानी की न्यायपूर्ण हिस्सेदारी के लिए वचनबद्ध है। उन्होंने ओड़िशा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक द्वारा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को भेजे गए पत्र के संदर्भ में यह बात कही।

ज्ञातव्य है कि श्री पटनायक ने अपने पत्र में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा महानदी पर निर्मित सात पिकअप वियर सहित उसकी कुछ सहायक नदियों में स्वीकृत और प्रस्तावित सिंचाई परियोजनाओं को लेकर कुछ चिंता प्रकट की है। डॉ. रमन सिंह ने उनकी चिंताओं का समाधान करते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ अंतर्राज्यीय नदियों के पानी के उपयोग के लिए निर्धारित समस्त प्रावधानों का सम्मान करता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ओड़िशा के हितों को प्रभावित किए बिना महानदी के पानी का सीमित उपयोग कर रही है।

डॉ. सिंह ने कहा – ओड़िशा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक ने इस बारे में छत्तीसगढ़ के समक्ष कभी कोई मुद्दा नहीं उठाया। यदि वे अपनी चिंताओं से मुझे अवगत कराते तो मैं उनके समक्ष वस्तु स्थिति को स्पष्ट कर देता।  डॉ. रमन सिंह ने वस्तु स्थिति का विवरण देते हुए बताया कि छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र  के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जाता है।

महानदी भारत के धान के कटोरे के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा है। यह नदी और इसकी सहायक नदियों के कुल ड्रेनेज एरिया का 53.90 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में, 45.73 प्रतिशत ओड़िशा में और 0.35 प्रतिशत अन्य राज्यों में है। हीराकुद बांध तक महानदी का जलग्रहण क्षेत्र 82 हजार 432 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 71 हजार 424 वर्ग किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है, जो कि इसके सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत है।

हीराकुंद बांध में महानदी का औसत बहाव 40 हजार 773 एम.सी.एम. है। इसमें से 35 हजार 308 एम.सी.एम. का योगदान छत्तीसगढ़ देता है, जबकि छत्तीसगढ़ द्वारा वर्तमान में मात्र लगभग 9000 एम.सी.एम. पानी का उपयोग किया जा रहा है, जो कि महानदी के हीराकुद तक उपलब्ध पानी का सिर्फ 25 प्रतिशत है।

डॉ. रमन सिंह ने कहा कि महानदी में निर्माणाधीन बैराज मूलरूप से पानी की औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए हैं। श्री पटनायक द्वारा बताए गए समस्त बैराज परियोजनाओं को मिलाने पर भी मात्र 3100 हेक्टेयर में सिंचाई किया जाना प्रस्तावित है। ये सभी परियोजनाएं लघु सिंचाई परियोजना (डपदवत प्ततपहंजपवद च्तवरमबजे) की श्रेणी में आती हैं, जिसके के लिए केन्द्रीय जल आयोग की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

अम्बागुड़ा, सलका, लक्षणपुर और खोंगसरा व्यपवर्तन परियोजनाएं  भी लघुु सिंचाई परियोजनाओं की श्रेणी में हैं और इनमें से प्रत्येक की सिंचाई क्षमता 2000 हेक्टेयर से कम की है और ये सभी लघु सिंचाई परियोजनाओं (डपदवत प्ततपहंजपवद च्तवरमबजे) की श्रेणी में आती हैं। केलो परियोजना इकलौती वृहद सिंचाई परियोजना है, जिसके लिए केन्द्रीय जल आयोग द्वारा पहले से ही अनुमति दी जा चुकी है।

डॉ. सिंह ने तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह और ओड़िशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जे.बी. पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को हुए समझौते की ओर भी  ध्यान दिलाया है। उन्होंने बताया कि इस समझौते के अनुसार दोनों राज्यों से जुड़े ऐसे मुद्दों के समाधान के लिए सर्वे, अनुसंधान और क्रियान्वयन के उद्देश्य से एक संयुक्त नियंत्रण मंडल के गठन का प्रस्ताव था, लेकिन इस बोर्ड का गठन अब तक नहीं हुआ है। यदि ओड़िशा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक को इस विषय में कोई समस्या महसूस हो रही हो, तो उन्हें बोर्ड के गठन का प्रस्ताव भेजना चाहिए था।

डॉ. सिंह ने कहा कि उपरोक्त तथ्यों से यह बहुत स्पष्ट है कि महानदी के पानी में हीराकुद बांध तक छत्तीसगढ़ राज्य की 86 प्रतिशत भागीदारी होने के बावजूद हम केवल 25 प्रतिशत पानी का ही उपयोग कर रहे हैं। इससे यह भी स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ राज्य ओड़िशा की हिस्सेदारी को प्रभावित किए बिना महानदी कछार के पानी के लिए अपनी न्यायिक हिस्सेदारी से भी कम पानी का इस्तेमाल कर रहा है।

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