एक अभ्यारण्य: ताल छापर : 48 डिग्री सेंटीग्रेड : सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट

एक अभ्यारण्य:  ताल छापर : 48 डिग्री सेंटीग्रेड : सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट

जग मोहन  ठाकन  , चुरू , राजस्थान .

मो० – 07665261963

भारत  में सर्वाधिक गर्मी सर्दी वाला मैदानी इलाका है ,राजस्थान का जिला चुरू .गर्मियों में ४८ डिग्री सेंटीग्रेड तक तपते सूरज कि लू हर किसी जीव को छाँव  ढूँढने को विवश कर देती है  तो सर्दियों में हड्डी कंपकपाने वाली शुन्य डिग्री सेंटीग्रेड तक बर्फ जमा देने वाली ठंडी रातों में जीवन जम कर रह जाता है .1

शुष्क एवं बहुत कम वर्षा ( मात्र 300 मिलीमीटर ) वाला क्षेत्र है ताल छापर का इलाका . परन्तु जब वर्षा आती है तो अधिकतर तेज सून्टों में बरसने वाला पानी शरीर पर यों मार करता है जैसे कोई कंकरों से प्रहार कर रहा हो . अगर बारिस ओलों के साथ हो तो जो कोई बिना किसी शेल्टर या पेड़ पौधों का आसरा लिए खुले में रह गया तो उसकी दुर्दशा की कल्पना मात्र ही दिल दहला देती है . ऐसे ओलों में न जाने कितने ही पक्षी व जीव हत –आहत हो अपने प्राण पंखेरू खो देते हैं .

ऐसे ही विकट वातावरण में ७१९ हेक्टेयर में फैले ताल छापर अभ्यारण्य में लगभग अढाई हज़ार काले हिरण (कृष्ण मृग ) वन विभाग की अव्यवस्था  या उदासीनता  या यों कहें कि लापरवाही के कारण परेशानियों का सामना करने को विवश हैं .इस अभ्यारण्य में डार्विन का सिद्धांत अक्षरशः लागु हो रहा है .यहाँ सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट को ही जीवन व अन्य को मृत्यु प्राप्ति का अधिकार है .

चिंता का विषय तो यह है कि एक तरफ तो सरकारें किसी विलुप्त होते जीव व प्रजाति के संरक्षण व संवर्धन हेतु  करोंड़ों रूपए खर्च  कर अभ्यारण्यों का विकास करती हैं , दूसरी तरफ संरक्षित प्रजातियों को केवल और केवल प्रकृति के सहारे छोड़ा जा रहा है . फिर क्या आवश्कता है ऐसे अभयारण्यों की ?

 २०१५ के मई माह में की गयी  विभागीय गणना के अनुसार गत वर्ष की तुलना में काले हिरणों की संख्या में केवल ५७ की वृद्धि हुई है . गत वर्ष भी ये बढ़ोतरी ४२ ही दर्ज की गयी थी . विभाग द्वारी जारी की सूचना के अनुसार काले हिरणों की पिछले पांच  वर्षों की संख्या इस प्रकार रही है .

२०११ में २२०६  , २०१२ में २३११ , २०१३ में २३९३ ,२०१४ में २४३५ तथा २०१५ में २४९२ . वर्तमान गणना के अनुसार ताल छापर अभ्यारण्य में २४९२ काले हिरणों में ८६७ नर ,११९१ मादा व ४३२ काले हिरणों के बच्चे हैं . क्या कभी इस बात की जाँच पड़ताल की गयी कि प्रजनन योग्य ११९१ मादा वाले हिरणों के इस अभ्यारण्य में सालाना केवल  ५७ हिरणों की ही नेट  वृद्धि क्यों होती है ?

जबकि मादा हिरण वर्ष में दो बार तक प्रजनन कर सकती है .क्या प्रजनन दर कम है या किसी बीमारी से इतने हिरन मर जाते हैं कि नेट वृद्धि केवल ५० के आसपास रह जाती है ? दोनों ही अवस्थायों में चिंता झलकती है और आंकड़े किसी स्वंतत्र  एजेंसी से जांच की जरूरत महसूस करते हैं . परन्तु क्या सरकार ऐसा कदम उठायेगी ?

ताल छापर अभ्यारण्य तत्कालीन बीकानेर के महाराजा का शिकार स्थल होता था , जिसमें शाही परिवार के सदस्य  व उनके मेहमान ही आखेट किया करते थे . आज़ादी के बाद १९६२ में इस क्षेत्र को वन्य जीव आरक्षित क्षेत्र घोषित कर शिकार पर पूर्ण पाबन्दी लगा गयी थी .बाद में काले हिरणों की घटती संख्या व संरक्षण को ध्यान में रखते हुए ताल छापर को अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया .

  ७१९ हेक्टेयर में फैले इस विशाल घास के मैदान में हिरणों के चारे के लिए प्रचुर मात्रा में घास उपलब्ध है .हालाँकि हिरणों के पीने के लिए अलग अलग स्थानों पर अभ्यारण्य में पानी के स्पॉट  बनाये गए हैं , परन्तु ग्रीष्म ऋतु में पर्याप्त पानी के अभाव में हिरण गदले एवं नाम मात्र को उपलब्ध पानी ही पीने को मजबूर हैं .पानी में मच्छर तथा अन्य छोटे छोटे कीड़े भी स्पष्ट दिखाई देते हैं .

वन अधिकारियों का कहना है कि पानी के लिए वर्षा जल तथा ट्यूबवेल का प्रबंध है , परन्तु मौके पर वाटर स्पॉट कुछ और ही कहानी सुनाते  हैं . वन विभाग के इस अभ्यारण्य में छायादार पौधों का अभाव स्पष्ट झलकता है . पर्यटकों के लिए बनाई गयी पगडण्डी पर कुछ कीकर के झीने झीने वृक्ष अवश्य  हैं . एक तालाब पर भी कैर व कीकर के वृक्षों का झुरमुट हिरणों को जरूर छाया देता है ,पर अन्य जगहों पर छायादार वृक्षों का दूर दूर तक नामों निशान नहीं है .

प्राकृतिक आपदाओं यथा गर्मी , सर्दी , वर्षा व ओलों से बचाव के लिए हिरणों को इन्हीं गिने चुने वृक्षों का सहारा लेना पड़ता है . अभ्यारण्य में शेल्टर के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है . इस क्षेत्र में खेजड़ी तथा रोहिडे के वृक्ष बहुत ही सरलता से पनप सकते हैं .इससे जहाँ हिरणों को शेल्टर मिलेगा , वहीँ खेजड़ी के पत्तों ( लूँग ) तथा रोहिडे के पत्तों व फूलों से एक पौष्टिक चारा भी बिना किसी अतिरिक्त खर्च के हिरणों को वर्ष भर मिलता रहेगा . रोहिडा , जिसे राजस्थान का गुलाब कहा जाता है , यदि पगडंडियों के साथ या झुरमुट में लगा दिया जाये तो इस पर खिलने वाले सुर्ख लाल फूल सैलानियों को आकृष्ट करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं .

सैलानियों की कमी इस क्षेत्र के विकास में बाधक है . सरकार को इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप  में उभारना चाहिए . हालाँकि प्रदेश कि मुख्यमंत्री  ने हाल में ही घोषणा की  है कि प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार शीघ्र ही नयी पर्यटन पालिसी ला रही है . राज्य की अर्थव्यवस्था में पर्यटन उद्योग की १३ प्रतिशत की भागीदारी है . मुख्यमंत्री के अनुसार पिछले वर्ष तीन करोड़ देशी तथा पंद्रह लाख विदेशी पर्यटक राज्य में आए . २०१८ तक राजस्थान में वार्षिक  घरेलु पर्यटकों की संख्या पांच करोड़  तथा विदेशी  सैलानियों की संख्या पच्चीस लाख तक होने की उम्मीद है .

परन्तु मुख्यमंत्री के लम्बे चौड़े दावों के विपरीत काले हिरणों का अभ्यारण्य होने के बावजूद ताल छापर में बहुत  ही कम सैलानी आते हैं .  उप वन संरक्षक जी के वर्मा के अनुसार वर्ष भर में विदेशी पर्यटकों का आंकड़ा एक सौ से नीचे ही रहता है .वो भी अभ्यारण्य में विचरण करने वाले पक्षियों को देखने के लिए आते हैं .देशी विदेशी नस्ल के लगभग दो सौ प्रजातियों के पक्षी यहाँ अलग अलग समय में आते रहते हैं .कुरजां पक्षी यहाँ का मुख्य आकर्षण है .कुरजां मुख्यतः सूखे घास के मैदानों का पक्षी है . सितम्बर –अक्टूबर में आने वाला यह पक्षी फरवरी – मार्च में वापिस अपने मूल स्थान को चला जाता है .

 ताल छापर पहुँचने के लिए २१५ किलोमीटर दूर जयपुर से जयपुर –सुजानगढ़ –नोखा स्टेट हाईवे का रास्ता अपनाया जा सकता है . छापर में रेलवे स्टेशन भी है .चुरू जिला मुख्यालय से वाया रतनगढ़ यह स्थल लगभग ८५ किलोमीटर दूर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है .

परन्तु अपर्याप्त एवं धुंधले संकेतकों के कारण बार बार गाड़ी रोक कर छापर का रास्ता पूछना पड़ता है .सरकारी अधिकारियों कि उदासीनता अभ्यारण्य का मार्ग दर्शाते धुंधले पड़ चुके इन  संकेतकों  से  भी साफ़ झलकती है .क्या ऐसे अधिकारियों कि टीम पर्यटकों को खींचने का मुख्यमंत्री का दावा पूरा कर पायेगी ?देखें  धरातल पर क्या परिवर्तन हो पाता है मुख्यमंत्री की हुंकार से ?

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