- March 15, 2018
“उप-चुनावों में मोदी लहर फीकी” —— अभिषेक मालवीय
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन ने जीत दर्ज की। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के राज्य विधान परिषद में चुने जाने के बाद गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे।
उत्तर-पूर्व मे परचम लहरा कर भाजपा भले ही राष्ट्रीय स्तर पर जीत हासिल कर भगवाकरण का हरा-भरा मंजर दिखा रही है ,लेकिन पिछले तीन महीनों के छोटे से अंतराल में लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में लगातार हार के बाद कहीं ना कहीं मोदी लहर फीकी पड़ती दिख रही है। इसका ताजा उदाहरण भाजपा के 28 साल पुराने गढ़ गोरखपुर में जिस सीट पर वर्ष 1998 से 2014 तक लगातार 5 बार वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से विजयी होते रहे वो इस उपचुनाव में अपनी ही सीट नहीं बचा पाएं।
राजस्थान की अलवर , अजमेर तथा पश्चिम बंगाल की उलूबिरया सीट के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी ।
फरवरी में मध्यप्रदेश की मुंगावली और कोलारस विधानसभा सीटें भी भाजपा नहीं जीत सकी अब मार्च में उत्तरप्रदेश के फूलपुर और बिहार के अररिया लोकसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी चारों खाने चित हो गए।
यह चुनाव ने साबित कर दिया है कि मोदी के चेहरे के बिना भाजपा जीत हासिल नहीं कर सकती है। इन चुनावों में हार का एक प्रमुख कारण लाखों बेरोजगार और किसानों का गुस्सा भी माना जा सकता है। जिस मोदी सरकार ने रोजगार और किसान की कर्ज माफी का बादा किया था वह भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
इस वर्ष के अंत में मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ , कर्नाटक और राजस्थान में चुनाव होने हैं।
इन चार राज्यों के चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनाव से सीधा जोड़कर देखा जा सकता है और जिन लाखों किसानों और बेरोजगारों ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वोट दिए थे वह 2019 में भी देगें यह कहना मुश्किल है।
एक तरफ तो भाजपा देश को कांग्रेस मुक्त भारत करने का नारा दे रही है और दूसरी तरफ भाजपा अपनी ही सीटों को खोती जा रही है।
अगर भाजपा को राष्ट्र-फतह करना है तो पहले अपने ही किले उन्हें सुरक्षित रखने होंगे और दूसरी विशेष बात यह कि कांग्रेस को भारत से खत्म करना सिर्फ भाजपा के वश की बात नहीं है कांग्रेस उनके खत्म करने से खत्म नहीं होगी, बल्कि तब खत्म होगी, जब सारी विपक्षी पार्टियां मिलकर कांग्रेस को खत्म करने का संकल्प ले लें। लेकिन सभी विपक्षी दलों का भाजपा के साथ हाथ मिलाना दूर-दूर तक नहीं दिख रहा इसीलिए अगर भाजपा अभी भी जनता के मन की बात को नहीं समझ सकी तो आने वाले समय में उसे हार का सामना करता पड़ सकता है।