• July 30, 2018

उदय को थर्ड डिग्री देने वाले दोनों सिपाहियों को “मृत्युदंड” – सीबीआई जज

उदय को थर्ड डिग्री देने वाले दोनों सिपाहियों को “मृत्युदंड”  – सीबीआई जज

सुबूतों से छेड़छाड़ करने के आरोप में 3 हाई रैंक अफसरों 【टी के हरिदास / के सूबु /अजित कुमार 】 को 3 साल कारावास की सज़ा।
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तस्वीर में 67 वर्षीय प्रभावती अम्मा हाथ उठा कर प्रभु का शुक्रिया अदा कर रही हैं ।
आखों से बहते आंसू उस 13 वर्ष लंबे संघर्ष की गवाही दे रहे हैं जो प्रभावती ने अपने इकलौते बेटे को न्याय दिलवाने में किया है।

प्रभावती के पति के देहांत के बाद उनपर अपने बेटे उदयकुमार के पालन पोषण की ज़िम्मेवारी आन पड़ी। हालात मुश्किल थे पर प्रभावती ने हिम्मत दिखाई और घर घर साफ सफाई का काम करते करते उदय का पालन पोषण करती रही। उदय जवान हुआ तो उसने भी छोटा मोटा काम शुरू कर दिया।

परंतु 27 सितंबर 2005 की रात प्रभावती के जीवन में भूचाल ले आयी।

ओणम का त्योहार था और उदय अपनी माँ के लिये नए कपड़े लेने घर से निकला था। इतने में ही तिरुवनंतपुरम पुलिस के 2 कॉन्स्टेबल्स ने उदय को रोक लिया और उसकी तलाशी ली । उदय की जेब मे 4000 रुपये थे। कॉन्स्टेबल के पूछने पर उदय ने बताया के यह पैसा उसकी कमाई का है।

एक सिपाही ने 4000 में से 3000 रुपया अपनी जेब मे डाला और बाकी पैसा उदय की ओर उछाल कर उसे वहां से जाने को कहा। सरासर हो रही इस गुंडागर्दी को उदय बर्दाश्त नही कर पाया और उसने सिपाही से उसके पैसे लौटने को कहा।

सिपाही ने धमकाते हुए कहा कि अगर वह वहां से नही गया तो झूठे केस में फंसा कर जेल भेज देगा । परन्तु उदय नहीं माना । वह कहने लगा कि अपनी पैसा लेकर ही जायेगा।

नशे में धुत्त दूसरे सिपाही ने उदय को पकड़ा और पुलिस वैन में डाल कर थाने ले गया। उदय पर चोरी और छीना-झपटी की धाराएं लगाईं तथा रिमांड घर में ले गया ।

निर्दोष उदय कुमार को टेबल पर निर्वस्त्र लेटा दिया और इतनी लाठीयां बरसाई की उदय का अस्त हो गया। उसे हस्पताल ले जाया गया जहां पर डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।

एक बूढ़ी मां के आगे उसके जवान बेटे की लाश पड़ी थी। आंखों के आगे अंधेरा था । हर ओर वेदनाऐं थी।

पुलिस की ओर से जब केस को निपटाने के लिये प्रलोभन आने शुरू हुए तो प्रभावती जान गई के उदय निर्दोष है।

प्रभावती ने उदय को इंसाफ दिलवाने की मुहिम छेड दी।

केस लड़ने के पैसे नहीं थे पर सच के साथ खड़े होने वाले लोगों की कमी भी नहीं थी। स्वंय वकील प्रभावती का केस मुफ्त लड़ने का आश्वासन दिया ।

सुबूत जुटाये गये और तारीख़ लगनी प्रारम्भ हुई। एक के बाद एक तारीख़ लगती गयी और प्रभावती पर समझौते का दबाव बढता गया।

एक माँ के लिये यह आर-पार की लड़ाई थी। वह डटी रही। इस तरह 13 साल बीत गये ।

25. 07.2018 (बुधवार) सीबीआई जज ने फैसला सुनाते हुए इस केस को “Rarest of the rare ” करार दिया ।

जज ने उदय को थर्ड डिग्री देने वाले दोनों सिपाहियों 【 जिठा कुमार और श्रीकुमार 】 को “मृत्युदंड” की सज़ा दी है ।

केस के सुबूतों से छेड़छाड़ करने के आरोप में 3 हाई रैंक अफसरों 【टी के हरिदास / के सूबु /अजित कुमार 】 को भी 3 साल कारावास की सज़ा हुई है।

अपने आप में यह पहला मौका है जब पुलिस कस्टडी में हुई मौत की वजह से पुलिस कर्मी को मृत्युदंड दिया गया है।

*** यह है हमारा सिस्टम। एक हर**** पुलिसवाला बिना किसी जुर्म के किसी निर्दोष को पीट-पीट कर मार देता है ।

*** यह है हमारा सिस्टम जहां एक मां अपने मृत बेटे की तस्वीर लिये 13 साल न्याय की आस में लड़ती रहती है।

*** यह है हमारा सिस्टम जहां एक वृद्ध महिला पर केस निपटाने के लिये दबाव बनाया जाता है।

*** यह है हमारा सिस्टम जहां सरेआम सुबूतों साथ छेड़छाड़ होती है। जहां चश्मदीद गवाह खरीदे जाते हैं।

*** यह है हमारा सिस्टम।

परंतु इस नकारात्मकता के पश्चात भी ईश्वर की ओर उठे प्रभावती अम्मा के हाथ यह इशारा कर रही है की एक अदालत ऊपर भी लगती है और उस अदालत में जुर्म कर के कोई बच नहीं सकता।।

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