• June 27, 2016

अभियान :- आबाद हुए जल भण्डार, खेत हुए उपजाऊ

अभियान :- आबाद हुए जल भण्डार, खेत हुए उपजाऊ

जयपुर, 27 जून, 2016      राजस्थान सरकार की ओर से प्रदेश भर में क्रियान्वित मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान यों तो प्रदेश के बहुआयामी सुनहरे विकास की बुनियाद को मजबूती देने वाला अपूर्व एवं ऎतिहासिक अनुष्ठान साबित हुआ ही है लेकिन जल समस्या से अक्सर जूझते रहने वाले मरु प्रदेश के बाशिन्दों के लिए पानी, हरियाली और खेती-बाड़ी की दृष्टि से यह जीवनदायी अभियान के रूप में सामने आया है।अन्य सभी तरह के अभियानों से एकदम अलग किन्तु जन अभियान के रूप में सर्वाधिक चर्चित और उपलब्धिमूलक रहा जलचेतना का यह सामूहिक प्रादेशिक अनुष्ठान आम के आम गुठली के दाम साबित हुआ है।

एक ओर जहां बरसाती पानी के अधिकाधिक संग्रहण के लिए परंपरागत जलाशयों और गांवाई तालाबों से मिट्टी खोद कर निकाली जा रही है जिससे जलाशयों की जल संग्रहण क्षमता कई गुना बढ़ी है वहीं जलाशयों के तल से निकलने वाली मिट्टी (जिसे पाण या गाद कहा जाता है) किसानों के खेतों में पहुंचकर जमीन को उपजाऊ बना रही है। इस मामले में प्रत्यक्ष तौर पर कई तरफा फायदा सामने आ रहा है।

प्रदेश के पहाड़ी, मैदानी और मरुस्थलीय  आदि सभी प्रकार के इलाकों के जलाशयों से निकलने वाली मिट्टी किसानों की पहली पसंद है क्योंकि इसके उपयोग से खेतों की ऊर्वरा शक्ति कई गुना बढ़ जाती है, जैविक या अन्य प्रकार की बाहरी खाद की जरूरत नहीं पड़ती या काफी कम जरूरत होती है और फसलों का उत्पादन कई गुना बढ़ जाता है। उत्पादन के साथ ही फसलों की गुणवत्ता, पौष्टिकता और स्वाद की मौलिकता भी बरकरार रहती है।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बारिश के पानी से बहकर आने वाली मिट्टी अपने साथ पोषक तत्व बहा कर ले आती है और यह जलाशयों के पैंदे में परत के रूप में जमा हो जाते हैं। इसे गाद कहते हैं। तालाब के तल में जमा पणा (मिट्टी) में जल अवशोषण और पानी को अपनी भीतर बांधे रखने की क्षमता अधिक होने के साथ खेत में लम्बे समय तक आर्द्रता बनी रहती जिससे कि फसलों को जरूरत के मुताबिक पर्याप्त नमी मिलती रहती है।

इस मिट्टी में पोषक तत्व अपेक्षाकृत  अधिक होते हैं। यह कीटाणु रहित भी होती है। इस मिट्टी में मृतिका कणों को ऊर्वरा खनिज तत्वों में बदलने की क्षमता अधिक होती है। इस रसायन हीन ऊर्वरा मिट्टी से गुणवत्तायुक्त पैदावार होती है और सभी प्रकार की फसलों में पौष्टिकता का ग्राफ अपेक्षाकृत अधिक होता है। तालाब से लाकर खेतों में डाली गई मिट्टी कम से कम 2-4  साल तक उपजाऊ बनी रहती है।

आम तौर पर किसान हर साल अपने गांव या आस-पास के क्षेत्रों के तालाबों से गाद निकाल कर अपने खेतों में ले जाते रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के कारण इस बार प्रदेश भर में तालाबों से गाद निकालने का काम व्यापक स्तर पर किया गया। इस वजह से इन जलाशयों के किनारे तथा आस-पास के खेतों वाले किसानों के लिए बहुत बड़ी मात्रा में पाण का लाभ प्राप्त हुआ। इन किसानों ने अपने तालाबों को गहरा करने में स्वैच्छिक श्रमदान में भी हिस्सा बंटाया और गाद ले जाकर अपने खेतों में डाली।

प्रदेश के विभिन्न हिस्सों के किसानों के लिए तालाबों से निकली गाद हरित क्रांति का नया इतिहास रचने वाली सिद्ध होगी। इन किसानों का कहना है कि खेतों में गाद के प्रयोग से अनाज, फल, सब्जी आदि का आकार और स्वाद अच्छा होता है, दानों में स्वाभाविक मिठास रहती है।

दो-तीन साल तक गाद का पूरा असर रहता है। हल चलाने में आसानी रहती है, पेड़-पौधे जल्दी बढ़ते हैं। बंजर जमीन पर भी गाद डाल कर इसका उपयोग हो सकता है। पिलायी बहुत कम करनी पड़ती है। इस मायने में तालाबों की मिट्टी खरा सोना है जो खेतों में सोना उगलेगी।

मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान केवल पानी के भण्डारों को ही आबाद करने और समृद्ध बनाने का ही अभियान नहीं है बल्कि खेत-खलिहानों को समृृद्धि देकर किसानों को सम्पन्न बनाने का अभियान भी सिद्ध हो रहा है। इस दृष्टि से यह अभियान जल ही नहीं जन-जन को समृद्ध बनाने के महाभियान की भूमिका रचने वाला सिद्ध हुआ है।

 

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