स्पेनीश नाटक का रुपांतर ‘अघट प्रेम पिंजर बसे’—मुरली मनोहर श्रीवास्तव

स्पेनीश नाटक का रुपांतर ‘अघट प्रेम पिंजर बसे’—मुरली मनोहर श्रीवास्तव

पटना——- अविश्वास पारिवारिक जीवन को कड़वा बना देता है। किसी की कही हुई बातों और लोगों के ताने से अपनी पत्नी को गलत ठहराना जायज नहीं हो सकता है। एक ऐसे ही नाटक का पटना के प्रेमचंद रंगशाला में थियेटर युनिट पटना की ओर से कमल किशोर निर्देशित नाटक ‘अघट प्रेम पिंजर बसे’ का मंचन किया गया।

‘अघट प्रेम पिंजर बसे’ फेदरीको गार्सिया लोर्का ने स्पानी नाटक “ला जापतेरा प्रौदिजिओसा” पर आधारित है। लोर्का एक महान स्पानी कवि, नाटककार और क्रांतिकारी थे , जिन्हें स्पैनिश सिविल वॉर के दौरान मार दिया गया था। लोर्का ने यह नाटक वर्ष 1926 में लिखा था पर इसका मंचन 1930 में हुआ था। ‘अघट प्रेम पिंजर बसे’ हर व्यक्ति के आंतरिक संसार और बाह्य संसार-कल्पना और यथार्थ के समानांतर रुप से चलने और उस कारण होने वाले द्वंद् की कहानी हा जिसका अनिवार्य रुप से अंत यथार्थ की धरातल पर होता है।

अपने जीवन के 50 वर्षों में सीताराम ने ढेर सारी हिंदी फिल्मों के देखकर अपने लिए यह निष्कर्ष निकाल लिया कि उसे जीवन की सच्चाई का पता चल चुका है पर स्त्री हर पुरुष को पसंद नहीं कर सकती। इसीलिए वह आजीवन अविवाहित रहना तय कर लेता है। लेकिन उसकी बहन किसी तरह मनाकर उसकी शादी 18 वर्षी एक अबोध लड़की से शादी करा कर स्वर्ग सिधार जाती है। सीताराम शांत स्वभाव का था लेकिन उसकी पत्नी बहुत चंचल और गुस्से वाली थी। वो इतनी खुबसूरत है कि आस पास की औरतें उसकी सुंदरता से तो जलती ही हैं उन महिलाओं के पति उसके दीवाने थे। जानबुझकर सीताराम के घर आते हैं और सीताराम की पत्नी को अपने प्रेमजाल में फांसना चाहते रहते हैं। इन सभी से दूर वो भले ही अपने पति से लड़ती है मगर अपने पति के आने का इंतजार करते रहती थी। सीताराम मोची का काम कर अपने परिवार को चलाता है। एक दिन सीताराम को अपनी पति की चंचलता को कुछ और ही समझ बैठा और घर छोड़कर चला जाता है।

एक साल बाद सीताराम वेष बदलकर आता है और अपनी पत्नी की पवित्रता की जांच करता है फिर पाता है कि उसने अपनी पत्नी के चरित्र को उसके आचरण मात्र पर जज करने की गलती कर दी थी। उसकी नियत और उसके यथार्थ को नहीं देखा था। पर वह अपनी पत्नी को समाज और समय के यथार्थ और मर्यादा को नहीं समधने और महत्व नहीं देने की गलती के विषय में बोलता, जिससे उसकी पत्नी सहमत होती है। दोनों का दैविक सिद्ध होता है और उस प्रेम की प्रतिष्ठा प्राप्त करता है जिसे कबीर प्रेम कहते हैं, अघट प्रेम कहते हैं।

इस नाटक में सीताराम मोची और उसकी पत्नी की भूमिका में प्रेमराज वर्मा और पिंकी सिंह ने जीवंत कर दिया। कई बार तो ऐसा हुआ कि दर्शकों की आंखों से आसू छलक आए। जबकि मासूम बच्चे की भूमिका में इंडियाज बेस्ट ड्रामेबाज का सेकेंड रनरअप हर्ष राज लक्की ने अपनी भूमिका से सबको दीवाना बना दिया। जबकि कागभूसुंडी की भूमिका ओम तुलसी ने तो अपनी भूमिका को इस कदर प्रस्तुत किया जैसे लगा कि वो सच में उस पूरे करेक्टर को रीयल में जी रहा हो। वैसे किसी भी कलाकार की भूमिका पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

स्पेनीश नाटक के इस रुपांतर कमल किशोर निर्देशित नाटक ‘अघट प्रेम पिंजर बसे’ का थियेटर यूनिट ने अपने 29 वें स्थापना दिवस के मौके पर प्रस्तुत कर सभी दर्शकों को आखिरी तक बांधे रहा। इस नाटक का उद्घाटन प्रो.सुहेली मेहता ने किया जबकि सेट डिजायन उमेश शर्मा, प्रकाश रौशन प्रकाश, संगीत निर्देशन प्रिय दर्शन पाठक (मुंबई) के साथ ही इसकी पूरी प्रस्तुति को सफल बनाने में संस्था के रामकुमार मोनार्क की भूमिका सर्वोपरि रही। जबकि मंच का संचालन निर्देशक, रंगकर्मी राजीव रंजन श्रीवास्तव ने किया।

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