• March 17, 2016

सिद्धावस्था पाने ईश्वरीय प्रवाह से जुड़ें – डॉ. दीपक आचार्य

सिद्धावस्था पाने  ईश्वरीय प्रवाह से जुड़ें  – डॉ. दीपक आचार्य

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जीवन में किस समय क्या जरूरी है, भूतकाल की कौनसी सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं का परिणाम हम प्राप्त कर रहे हैं, कौनसे पितर या देवी-देवता, कुलदेवता, स्थान देवता अथवा वास्तुदेवता हमसे नाराज  या प्रसन्न हैं, किस देवी-देवता की उपासना हमारे लिए फलदायी है, क्या कुछ करें कि हमारे जीवन की दैहिक, दैविक और भौतिक सहित समस्त प्रकार की समस्याएं और अभाव समाप्त हो जाएं और समृद्धि के सूरज उनके अपने घर-आँगन में ही उगते रहें, क्या कुछ करें कि प्रतिष्ठा और यश का ग्राफ निरन्तर तेज होता रहे और ऎशो आराम की जिन्दगी जीते रहें।

ऎसे ही अनगिनत प्रश्न हर सामान्य इंसान के मन में जिन्दगी भर उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। इनका जवाब पाने, तसल्ली का अहसास करने और अपने लिए सभी प्रकार की अनुकूलताओं की तलाश में आम इंसान मांत्रिकों, तांत्रिकों, ज्योतिषियों और भविष्यवक्ताओं के इर्द-गिर्द मण्डराता रहता है, मन्दिरों और मूर्तियों के दर्शन में रमा रहता है, जहां से आशा की कोई किरण दिखाई देती है वहाँ लपकता रहता है।

जिन्दगी भर ग्रह-नक्षत्रों की चालों में  आकर टोनों-टोटकों और पूजा-अनुष्ठानों के सहारे दुनिया भर का वैभव पा जाने को उतावला रहता है। पेण्डुलम की तरह पूरी दुनिया घूम लेता है, ज्योतिषियों और पण्डतों के घरों को नाप लेता है, बीसियों बार अपनी जन्म कुण्डली और हाथ दिखा देता है, और वह सारे प्रयोग करता रहता है जो उसे बताए जाते हैं।

हर भौंपा, तांत्रिक, गरु-गुरु, ज्योतिषी, देवरों और इसी तरह के तमाम स्थलों को नाप चुका होता है फिर भी उसे शांति प्राप्त नहीं होती। इन सभी गलियारों और घुमावदार मोड भरे रास्तों की यात्रा पूरी कर चुकने के बाद भी समझ नहीं पाता कि उसके साथ जो कुछ हो रहा है वह क्यों हो रहा है, इसके निवारण का उपाय क्या है और भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए उसे क्या कुछ करना चाहिए।

हममें से अधिकांश लोगों की जिन्दगी इसी तरह की हो गई है। अधिकतर लोग इस सत्य को स्वीकार लिय करते हैं जबकि काफी सारे लोग स्वीकार भले न करें, इनमें विश्वास जरूर करते हैं और वे भी दूसरों की तरह लपकते रहने के आदी रहते ही हैं।

इतने सारे जतन कर चुकने, अनगिनत रुपए-पैसे उड़ा देने, लॉकेट, ताबीज, धागे, गण्डे, रत्न-रूद्राक्ष और जात-जात की मालाएं पहन लेने और तमाम प्रकार की षड क्रियाओं को अपनाने के बावजूद हमारी जिज्ञासाओं का शमन नहीं हो पाता, हमारी उद्विग्नता बरकरार रहती है और  समस्याएं भी।

हम कुछ दिन के लिए सब कुछ छोड़-छाड़ के ईश्वरीय प्रवाह को समझने की कोशिश करें, चेतना के दिव्य धरातल तक पहुंचने का अभ्यास करें और सारे बिचौलियों, दलालों और एजेण्टों से कुछ दिन दूर रहकर आत्म चिन्तन करें कि जीवन का ध्येय क्या है, और इसके लिए क्या करना चाहिए।

हमारी आत्मा से सही-सही जवाब अपने आप निकल आएगा ही। सारे गोरखधंधों और पूछपरख, शंकाओं-आशंकाओं और भविष्य जानने की उधेड़बुन को छोड़ दें और सीधे ईश्वर से संबंध स्थापित करने की शुरूआत कर देने मात्र से ही हमारी जिज्ञासाओं का शमन होने लगता है, समस्याओं, अभावों और अनिष्ट के साथ भविष्य की घटनाओं का स्पष्ट संकेत मिलना भी आरंभ हो जाता है।

इसके लिए जो देवी या देवता अपना प्रिय है उसका कोई सा छोटा मंत्र लेकर गोपनीय रूप से एकान्त पाकर उसके यथाशक्ति एवं यथा समय अधिक से अधिक जप करने आरंभ कर दें, ज्यों-ज्यों इनकी संख्या और ईश्वर से संबंध स्थापित करने की तीव्रता बढ़ेगी, त्यों-त्यों अपने मन-मस्तिष्क और देह की पवित्रता बढ़ेगी, आभामण्डल का दायरा निरन्तर आकार बढ़ाने लगेगा।

धीरे-धीरे एक स्थिति वह आएगी कि हमारा आभामण्डल हमारे भूत, वर्तमान और भविष्य की सभी स्थितियों के सूक्ष्म संकेतों से रूबरू कराता रहेगा। इसी से हमें यह ज्ञात हो जाएगा कि हमें अपने जीवन की उन्नति के लिए क्या-क्या करना चाहिए, भगवान हमसे क्या-क्या करवाना चाहता है और हमारा भविष्य सुनहरा स्वरूप कैसे प्राप्त कर सकता है, इसके लिए कौन-कौन से धार्मिक, आध्यात्मिक, शारीरिक, औषधीय, दिव्य और अन्य प्रकार के प्रयोग जरूरी हैं।

लेकिन इस स्थिति को पाने के लिए शुचिता और एकाग्रता के साथ ईश्वरीय चिन्तन जरूरी है। जो इसमें सफल हो जाता है वह अपने आपमें सिद्ध और त्रिकालज्ञ हो सकता है। उसे फिर कहीं भटकने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती।  पर इन सभी के लिए आवश्यक यह है कि हम निरन्तर दिव्यताओं से उच्चतर सोपानों को प्राप्त करते जाएं।

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