- August 7, 2017
सर खपाने से बेहतर है कुछ अच्छे सोचें–शैलेश कुमार
शुभ प्रभात :
व्यक्ति कोई भी हो, अगर उससे किसी भी तरह कि उर्जा नही मिलती हो तो उसके बारे मे सोचें ही नही,व्यर्थवाद से सदा दूर रहें।
आज कल यू-ट्यूब पर जातिविशेष को अभद्र बातें कहते हुए सूना जा सकता है। ठीक है। अभद्र लोगों के साथ सही भी है। लेकिन क्या ये काम आप नहीं करते हैं ?
मैं कालेज में छुट्टी के बाद मंदिर गया। मंदिर इसलिए गया क्योंकि मेरे साथ जो थे वे भी नियमित जाते थे। मैंने पूछा इस पत्थर की मूर्ति के सामने हाथ जोड़ कर क्यों खड़े हो ? ऐसे खड़े हो, जैसे कोई अपराधी हो।
साथियों ने जो कहा उस पर मुझे विश्वास नहीं हुआ। अगले दिन फिर उनलोगों के साथ मंदिर गया। मैं भी उनलोगों की तरह खड़ा हुआ। आते वक्त पूछा –तुमने क्या मांगा ! मैंने कहा –हे ! दुर्गा मां, अगर मुझे आईएएस बना दो तो 10001 ब्राह्मणों को इसी मंदिर में खिलाऊंगा।
सभी हंसने लगे। कहा बुद्धू हो। मैंने कहा क्यों? कल तुमलोगो ने कहा था -माँ सर्वशक्तिमान है , आज हंस रहे हो।
सर्वशक्तिमान से असंभव वस्तु मांगना चाहिए। अगर देने में वह सफल है तभी पूजनीय हैं अन्यथा समय ख़राब मत करो। परीक्षा आने वाली है। मंदिर आने से कोई फायदा नहीं है।
सर्वशक्तिमान पूजनीय है अगर मरे हुए बेटा की वापसी हो ,मरे हुए पति की लाश ज़िंदा हो। खाली कोख किलकारियों से गूँज उठे। गंभीर बिमारी से त्रस्त परिवार स्वस्थ्य हो जाए।
लेकिन क्या कभी ऐसा हुआ है !
अगर पुजारी या पतरा -पोथी वाले भाग्य बदलने की दाबा करते है तो सबसे पहले वे अपना भाग्य क्यों नहीं बदलते हैं। वे लोग भी मंदिर के पत्थर पर अपने परिवार की दयनीयता से उबरने के लिए सर पटकते रहते हैं।
थोड़ा विस्तार से सोंचे !
ब्रह्मा के पुत्र होते तो इनलोगो को मोक्ष मिल गई होती ! ईश्वरीय पुत्र -सात्विक ,राजसिक और तामसिक तत्व से ऊपर होते हैं। लेकिन जिस समस्या से आप गुजर रहे हैं उस समस्या से ब्राह्मण भी गुजर रहा है।
इसलिए हमें सबसे पहले ईश्वरीय मामलों में पूर्णत: विद्वान् होना पड़ेगा ,एक -एक तत्व को सरलता से व्याख्या करना होगा और लोगों तक इसे गौतम बुद्ध बन कर पहूंचाना होगा। उपदेश देने से पहले खुद को ईश्वरीय तत्व में लीन होना होगा।
क्या मंदिर के पुजारी सेक्स नहीं करते , क्या उनलोगो को पारिवारिक जीवन का ज्ञान नहीं होता ! इसके लिये महिलायें जो भी हों, दोषी नही है ! शत-प्रतिशत है। मंदिर मे ऐसे सज -धज कर जाती है जैसे वे नव-दुल्हन हो। नव-दुल्हन के साथ क्या होता है। सब जानते हैं। फिर सिर्फ पुजारियों को ही गालियां क्यों!
भगवान् ,भूत, चुड़ैल ,प्रेत ,भाग्य भरोसे। इस सभी शब्दों का प्रयोग महिलायें ही करती हैं तो परिणाम भी उसे ही भुगतना होगा न !
अदृश्य अपवाहों का स्वीकार्य स्थल सिर्फ महिलायें ही है। ऐसे घटनाओं को जंगल में आग की तरह यही फैलाती है। स्वभाविक है कि आग फैलाने वाले ही इस आग के शिकार होते हैं।
मिथ्यावादी तो हर हालत में चाहेगें की उनकी रोटी सेंकती रहे। वे अफवाहों के जड़ होते है –गणेश जी दूध पीते है ,सोमवार को दूध महादेव पर डालों, मानसरोवर और कैलाश पर महादेव रहते है।
अरे मूर्ख ! अगर ईश्वर है या महादेव हैं तो मानसरोबर और कैलाश पर क्या करते हैं। उनको देखना जरुरी है। अमरनाथ में पूजा करने जाते हैं और सुरक्षा बल उनके पीछे होते हैं ,ऐसे श्रद्धालु बनने से क्या फायदा जो अपने स्वार्थ के लिए सैनिको का जीवन खतरे में डालने के लिये उत्सुक हैं। अपनी मौज और दूसरे का प्राण जाय भाड में।
चैनल ,यू-ट्यूब या फेसबुक पर गाली देने से बेहतर है की ज्ञान की प्रकाश फैलाये और लोगो को दिमागी परदे से मुक्त करें। यह मुक्ति तभी दिला सकते है जब आप खुद पूर्ण हो,इस पूर्णता के लिए कथानक ,धार्मिक पुस्तकें या सत्संग किसी का काम का नहीं है । इससे और अज्ञानता फैलती है।
अगर इस काम के लिए हमारी जरुरत है तो हम साथ देंगे बशर्ते आपको अपसंस्कृति से बाहर आना होना।