- October 3, 2015
सबका ख्याल रखें – डॉ. दीपक आचार्य
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समाज और देश की सारी समस्याओं का मूल कारण इंसान का इंसानियत छोड़ कर खुदगर्ज हो जाना ही है। एक आम इंसान को जीवन निर्वाह और आरामतलबी के साथ जीवनयापन करने के लिए जितनी आवश्यकता होती है, उतने की प्राप्ति तक किसी को कोई संतोष नहीं हो पा रहा है।
अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति होना कोई मुश्किल काम नहीं है लेकिन हमारी इच्छाएं और तृष्णाएं अनन्त हो गई हैं। फैशनपरस्ती के मौजूदा दौर में हम सभी लोग वह सब कुछ पाने को उतावले हैं जो और लोगों के पास है, भले ही वह हमारी आवश्यकताओं का हिस्सा न भी हो।
सादगी और मितव्ययता के सारे के सारे भाव वर्तमान से पलायन कर चुके हैं। आधुनिक बनने, होने और दिखाने के फेर में हम सभी लोग अपनी आवश्यकताओं से भी कई गुना अधिक को प्राप्त करने की आस में दिन-रात भागदौड़ करने में रमे हुए हैं।
हमें न समय की चिंता है, न शरीर की, और न ही किसी और की। बस एकमेव लक्ष्य यही है कि सब कुछ पा जाएं, हमारे अपने नाम कर जाएं और दूसरों को दिखा दें कि हम भी उनसे कम नहीं हैं।
इसी दिखावे और फैशनी मानसिकता के बोझ में मरे या अधमरे होकर हम लोग इतने अधिक खुदगर्ज हो चुके हैं कि हमें अपने माता-पिता, भाई-बहनों और कुटुम्बियों तक के जीवन के बारे में कोई चिंता नहीं है।
हम सिर्फ और सिर्फ अपने ही बारे में हमेशा सोचते रहते हैं या उन लोगों के बारे में सोचते हैं जिनसे हमें लाभ प्राप्त होते हैं अथवा जिन लोगों से हमारे जायज-नाजायज, पाक-नापाक काम होते रहते हैं।
आजकल तो बात भी उन्हीं से करना पसंद करते हैं, संबंध भी उन्हीं से बनाते हैं जो लोग हमारे स्वार्थ को पूरे करने में मददगार हो सकते हैं।
जिन लोगों के लिए आजीविका निर्वाह का संकट है उन लोगों की तो यह मजबूरी है कि वे लोग अर्थोपार्जन की गतिविधियों में डूबे रहकर संतोषपूर्वक जीवन निर्वाह के सारे प्रयास करें। लेकिन आजकल बहुत से लोग ऎसे हैं जिनके पास आजीविका निर्वाह का पूरा और उपयुक्त प्रबन्ध है, पास में खूब धन-दौलत और जायदाद भी है।
खूब सारे लोग ऎसे हैं जिनके पास अपने किसी न किसी संबंधी की कृपा या छाया की वजह से अपार जमीन-जायदाद भी है। कइयों के पास बिना पुरुषार्थ की, तो बहुतों के पास हराम की कमाई के भण्डार जमा हैं।
इसी प्रकार उन लोगों की भी कोई कमी नहीं है जिनके पास इतना तो है ही सात पुश्तों तक किसी को कमाने की कोई जरूरत नहीं है।
बावजूद इन सबके खूब सारे बड़े, प्रभावशाली और वैभवशाली लोग असंतोषी स्वभाव के होने के कारण भण्डारी बने बैठे हुए जमा ही जमा करने के फेर में हर तरफ कोल्हू के बैल की तरह जुटे हुए हैं। बहुत से ऎसे हैं जो शौकिया तौर पर नौकरी -धंधों में टाईमपास कर रहे हैं और उन लोगों के लिए स्पीड़ ब्रेकर बने बैठे हैं जिन्हें जिन्दा रहने और घर-बार चलाने के लिए रोजगार की नितान्त आवश्यकता है।
हमारे आस-पास अर्थोंपार्जन के लिए बहुत सी विधाएं हैं और यह भी निश्चित ही है कि हमारे इर्द-गिर्द ही ऎसे लोग भी खूब सारे हैं जो इन विधाओं या किसी न किसी हुनर के जानकार भी हैं ही।
इन लोगों के जीवन से आजीविका का संकट दूर करने में हम बेहतर मददगार हो सकते हैं लेकिन हम अपने स्वार्थों में इतने अंधे हो गए हैं कि हमें ये बेकारी में जी रहे, बेरोजगार, निर्धन और जरूरतमन्द लोग दिखते ही नहीं हैं।
हम इन लोगों का उपयोग हमारे अपने लिए भीड़ इकट्ठा करने, जयगान कराने और जाजम बिछवाने जैसे कामों से लेकर हमारी अनुचरी कराने के कामों में किया करते हैं। लेकिन जब लाभ का कोई मौका आता है तब हम सारा लाभ चुपचाप पाने के लिए सारी तरकीबें अपनाते हुए इन लोगों को अंधेरे में रखकर लूट लेने के आदी हो गए हैं।
हमारे आस-पास ऎसे खूब सारे नराधम हैं जिन्हें धन की कोई आवश्यकता नहीं है फिर भी ये लोग जाने कितने सारे धंधों में ऎसे लगे रहते हैं जैसे कि पैसे कमाने की कोई मशीन ही हो।
यों देखा जाए तो ये लोग अपनी मानवता, संवेदना और स्वाभिमान को इतना अधिक खो चुके होते हैं कि इन्हें इंसान की बजाय मशीन ही कहना ज्यादा उपयुक्त होगा।
ऎसे ही कुछ लोगों का समूह हर जगह सायास इकट्ठा हो जाता है जो धनार्जन के सारे स्रोतों को अपने कब्जे में कर लिया करता है और बेचारे जरूरतमन्द लोग अभावग्रस्त जिन्दगी जीने को विवश हो जाते हैं।
लानत है इन खुदगर्ज लोगों को जिन्हें संतोष नहीं है और असंतोषी, उद्विग्न स्वभाव पाले हुए पागल श्वानों, मुँह मारते साण्डों और पंख फैलाये गिद्धों की तरह लपक पड़ने और सब कुछ अपने पेट में हजम कर जाने के आदी हो गए हैं।
हमारा यह सबसे पहला फर्ज है कि हमारे आस-पास कोई भूखा-प्यासा, अभावग्रस्त न रहे। इसके लिए यह जरूरी है कि हम मानवता को अंगीकार कर उन लोगों को किसी न किसी प्रकार कहीं से भी जोड़कर हुनर के मुताबिक आजीविका प्राप्ति के रास्ते दिखाएं और संबल प्रदान करें।