• January 31, 2016

सफलता चाहे तों नई टीम तलाशें – डाॅ. दीपक आचार्य

सफलता चाहे तों  नई टीम तलाशें – डाॅ. दीपक आचार्य

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जीवन, समाज या देश का कोई सा कर्म क्षेत्र हो, उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस काम का बीड़ा उठाने वालों की साख कैसी है? उस काम को करने वाले लोग किस तरह के हैं।
यदि सभी कर्मकारों की छवि मेहनती और ईमानदार की है। ये लोग स्वामीभक्त या संस्थाभक्त हैं तब तो किसी प्रकार की चिन्ता, शंका या आशंका है ही नहीं।
ऐसे लोग अपने कर्म के प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं और इन पर भरोसा किया जा सकता है लेकिन इस प्रजाति के सामाजिक प्राणी अब लुप्त होते जा रहे हैं।
वे संस्थाएं और परिसर धन्य हैं जिनमें इस प्रजाति के लोग विद्यमान हैं। और सच कहा जाए तो इन्हीं किस्म के निष्ठावान लोगों के कारण से ही धरती टिकी हुई है।
कर्म की गुणवत्ता और आशातीत सफलता कर्ताओं की कर्म के प्रति निष्ठा, कर्म विशेष के बारे में उनकी दक्षता व हुनर और कर्म कराने वालों के प्रति श्रद्धा पर निर्भर है।
जो जितना अधिक दक्ष होगा उतना अच्छे से काम कर दिखाएगा। कर्म जैसे-तैसे हो जाना सामान्य बात है लेकिन सभी प्रकार कर्मों में आशातीत और उल्लेखनीय सफलता तभी पायी जा सकती है कि जब कार्य संपादन करने के लिए उपयोगी माने जाने वाले सभी लोग तमाम प्रकार की जरूरी दक्षताओं के साथ ही उत्साही और सकारात्मक चिन्तन से परिपूर्ण हों।
दक्षता, उत्साह और सकारात्मक सोच तीनों का होना जरूरी है। इनमें से एक की भी कमी होने पर बेहतर परिणामों की उम्मीद नहीं की जा सकती।
दक्षता न हो तो काम ढंग का नहीं हो सकता। उत्साह न हो तो दरिद्रता और आलस्य पसरा हुआ रहेगा। दक्षता और उत्साह दोनों ही हों और सकारात्मक दृष्टिकोण न हो तो कर्ता कर्म करते हुए हर समय नकारात्मक भावों से भरा रहेगा और इसका प्रकटीकरण अपने कर्म के समय भी करता रहेगा और इसके बाद में भी।
इसी प्रकार एक ही संस्थान या परिसर में एक ही प्रकार के काम को बरसों तक करते रहने वाले लोगों का भी कर्म के प्रति मोहभंग हो जाता है और काम के प्रति न उत्साह होता है, न श्रद्धा।
ऐसे लोग हर काम को सामान्य रूप में लेते हैंे और अपने कर्म के प्रति गंभीर नहीं रहते। इन लोगों की अश्रद्धा, उत्साहहीनता और जड़ता संस्थान या परिसरों की उन्नति एवं प्रतिष्ठा के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा हो जाते हैं जिसका खामियाजा संस्था और मुखिया तथा संस्थान से जुड़ी गतिविधियों को भुगतना पड़ता है।
इनके अलावा कार्मिकांे की निष्ठा पर भी आंखें मूंद कर भरोसा नहीं किया जा सकता। आमतौर पर कार्मिकांें की निष्ठा उन लोगों पर अधिक होती है जो उन्हें हर प्रकार के साधन और सुविधाओं को भुगतने और स्वैच्छिक छूट का बर्ताव करने में किसी भी प्रकार की आनाकानी नहीं करें, उनकी स्वच्छन्दता में बाधक न बनें और उनके लिए लाभ पाने के तमाम अवसरों और सारे विकल्पांे को खुला रखें।
यही कारण है कि जब कभी कर्ताओं को मर्यादा पालन, कर्मयोग के प्रति समर्पण और अनुशासन की सीख दी जाती है ये बिदकने लगते हैं और ऐसे में उन्हें वे लोग याद आते हैं जो उनके लिए हर दृष्टि से लाभकारी रहे हैं।
यही वजह है कि पुराने लाभों और सरस अवसरों से उपकृत होने वाले कर्ताओं की निष्ठा पुराने लोगों के प्रति बनी रहती हुई अक्सर श्रद्धा अभिव्यक्त करती रहती है।
ये लोग वर्तमान की बजाय अतीत के प्रति अधिक श्रद्धावान होते हैं और वर्तमान की हमेशा अवहेलना करते रहते हैं, चिढ़ते और कुढ़ते हैं और पुरानों के प्रति अन्यतम निष्ठा का जिक्र करके हुए अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते रहते हैं।
इस प्रकार के निष्ठाहीन कर्ताओं के भरोसे दुनिया का कोई सा काम या अभियान सफल नहीं हो सकता। उत्साहहीनता इन लोगों का पहला लक्षण हो जाता है। वहीं पुरानों के प्रति निष्ठा और श्रद्धा का भाव नीम चढ़ा करेला, और साथ में नीम गिलोय वाली स्थिति पा लेता हैै।
यही कारण है कि कर्म क्षेत्र में आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है। इस स्थिति में यह जरूरी है अपने आस-पास से उन लोगों को दूर करें जो पुराने हो गए हैं और जिनकी निष्ठा में संदेह हो।
नए लोग उर्जावान, उत्साही और निष्ठावान होते हैं और कार्य संपादन में गति, गुणवत्ता, अनुशासन एवं उपयोगिता की दृष्टि से भी बेहतर साबित होते ह

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