- June 8, 2018
संविधान में आस्था ही असली राष्ट्रवाद है.”–पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
<< विविधतता हमारी सबसे बड़ी ताकत है.---पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी >>
नागपुर ———- पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक के कार्यक्रम में शामिल हुए.
प्रणब मुखर्जी का भाषण राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षवाद, देशभक्ति और उदारवादी लोकतंत्र पर केंद्रबिंदू था .
मुखर्जी ने कहा, “धर्म कभी भारत की पहचान नहीं हो सकता. संविधान में आस्था ही असली राष्ट्रवाद है.”
प्रणब मुखर्जी ने कहा, “मैं यहां पर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझाने आया हूं.”
>>प्रणब मुखर्जी ने कहा, “राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है. देशभक्ति का मतलब देश की प्रगति में आस्था है.”
उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद सार्वभौमिक दर्शन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ से निकला है.
प्रणब मुखर्जी ने दिया संकेत- ‘अतिथि हूं, स्वयंसेवक नहीं’
>>उन्होंने कहा, “भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है. इसमें अलग रंग, अलग भाषा, अलग पहचान है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई की वजह से यह देश बना है.”
>>प्रणब मुखर्जी ने कहा, “भेदभाव और नफरत से भारत की पहचान को खतरा है. नेहरू ने कहा था कि सबका साथ जरूरी है. नफरत से देश को सिर्फ नुकसान पहुंचा है.”
>>पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, “विचारों में समानता के लिए संवाद बेहद जरूरी है. बातचीत से हर समस्या का समाधान मुमकिन है. शांति की ओर आगे बढ़ने से समृद्धि मिलेगी.”
>>उन्होंने कहा, “भारत दुनिया का पहला राज्य है और इसके संविधान में आस्था ही असली देशभक्ति है.” उन्होंने कहा कि विविधतता हमारी सबसे बड़ी ताकत है.
>>मुखर्जी ने कहा, “धर्म, मतभेद और असिहष्णुता से भारत को परिभाषित करने का हर प्रयास देश को कमजोर बनाएगा. असहिष्णुता भारतीय पहचान को कमजोर बनाएगी.”
>>पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, “भारत की आत्मा बहुलवाद में निहित है. धर्मनिरपेक्षता और हमारी समग्र प्रकृति हमें भारत बनाती है. धर्मनिरपेक्षता मेरे लिए विश्वास का विषय है और हमारे लिए होना चाहिए. यह एक समग्र संस्कृति है जो हमारे देश को बनाती है.”
>>उन्होंने कहा, “भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा यूरोप से अलग है. भारत पूरे विश्व में सुख शान्ति चाहता है. प्रणब मुखर्जी ने कहा, भारत पूरे विश्व को परिवार मानता है.”
>>पंडित जवाहर लाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ का जिक्र करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि राष्ट्रवाद सिर्फ हिंदू, मुसलमानों, सिखों और भारत के अन्य समूहों के विचारधारात्मक एकता से बाहर आ सकता है.”
>>उन्होंने कहा कि विजयी होने के बावजूद अशोक शांति का पुजारी था. 1800 साल तक भारत दुनिया के ज्ञान का केंद्र रहा है. भारत के द्वार सभी के लिए खुले हैं.