• December 20, 2016

शिव तांडव स्तोत्रम संपूर्णम

शिव तांडव स्तोत्रम संपूर्णम

जटाटवी गलज्जलप्रवाह पावित स्थले, गलेव लंब्य लंबितां भुजंग तुंग मालिकाम, डमड डमड डमड डमन्निाद वडड मर्वयं चकार चंड तांडवं तनोतु नुः शिवः शिवम (1)

अर्थः- जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित गंगा जी की धारायें उनके कंठ को प्रक्षालित होती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्यान करें
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जटा कटा हसं भ्रम भ्रमन्निलिंप निर्झरी विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि, धगद धगद धगज्ज्वलल ललाट पटट पावके किशोर चंद्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम (2)

अर्थः–जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरें उनके शिश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अंनुराग प्रतिक्षण बढता रहे।

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बंधु बंधुरस फुरद् दिगंत संतति प्रमोद मान मानसे, कृपा कटाक्ष धोरणी निरूद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनों विनोदमेतु वस्तुनि (3)

अर्थः जो पर्वतराज सुता(पार्वती जी) के विलासमय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनके कृपा दृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहे।

लता भुजंग पिंगलस् फुरत्फणा मणि प्रभा कदंब कुंग कुुम द्रव प्रलिप्त दिग्व धूमुखे,मदांध सिंधुरस फुरत्व गुत्तरीयमे दुरे मनों विनोद मद भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि (4)

अर्थः–मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की आधार एवं रक्षक हैं, जिनके जाटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समुह रूप केसर के कातिं से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गज चर्म से विभूषित हैं।

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस रांघ्रि पीठभूः, भुजंग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः (5)

अर्थः–जिन शिव जी का चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं), जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्र शेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट चत्वर ज्वलद् धनंज्य स्फु लिंगभा निपीत पंच सायकं नमन्नि लिंप नायकम,सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोज टाल मस्तु नः (6)

अर्थः–जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।

कराल भाल पटिटका धगद धगद धगज्ज्वल द्धननजयाहुती कृत प्रचंड पंचसायके,धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम (7)

अर्थः–जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर है ( यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन मेघ मंडली निरूद धदुर धरस्फुरत कुहू निशीथि नीतमः प्रबंध बद्ध कंधर,निलिंप निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिंधुरः कला निधान बंधुरः श्रियं जगद धुरंधर (8)

अर्थः–जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के समान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पनता प्रदान करें।

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंच कालिम प्रभा वलंबि कंठ कंदली रूचि प्रबद्ध कंधरम, स्मरच छिंद पुरच छिदं भवच छिदं मखच छिदं गजच्छि दांध कच छिदं तमंत कच छिदं भजे (9)

अर्थः–जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभूषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो के काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ

अखर्व सर्व मंगला कला कदंब मंजरी रस प्रवाह माधुरी विजंृभणाम ध्रुवतम , स्मरांतकं पुरांतकं भवांतकं मखातकं गजांत कांध कांत कं तमंत कांत कं भजे (10)

अर्थः–जो कल्याणमय, अविनाशी, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञ विध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।

जयत वदभ्र विभ्रम भ्रमद भुजंग मश्वस द्वि निर्गमत क्रम स्फुरत कराल भाल हव्यवाट,धि मिद्धि मिद्धि मिध्वनं मृदंग तुंग मंगल ध्वनिक्रम प्र वर्तित प्रचंड तांडवः शिवः(11)

अर्थः–अत्यंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंड अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।

स्पृषद विचित्र तल्पयोर भुजंग मौक्तिक स्रजोर गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोंः सुहृदय विपक्ष पक्षयोंः तृष्णार विंद चक्षुषोंः प्रजामहीमहेन्द्रयोंः समप्रवृत्तिकः समं प्रवर्तयन्मन कदा सदा शिवं भजे (12)

अर्थः–कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टूकडों, शत्रु एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर समान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।

कदा निलिंप निर्झरी निकुंज कोटरे वसन विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थमंजलि वहन, विमुक्त लोल लोचनों ललाम भाल लग्नकः शिवेति मंत्र मुच्चरन कदा सुखी भवाम्यहम (13)

अर्थः–कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।

इदंम हि नित्य मेव मुक्त मुत्त मोत्तमं स्तवं पठन स्मरण ब्रु वन्नरो विशुद्धि मेति संततम, हरे गरौ सुभक्तिमाशु याति नानयथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम (14)

अर्थः–इस उत्त्मोत्त्म शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणी पवित्र हो, परं गुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।

पूजा वसान समये दश वक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषै, तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरंग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः (15)

अर्थः- प्रात: शिव पूजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।

निलिम्प नाथ नागरी कदम्ब मौल मल्लिका-निगुम्फ निर्भ क्षरन्म धूष्णि का मनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं मह निशं परिश्रय परं पदं तदंग जत्विषां चयः ॥(16)

प्रचण्ड वाड वानल प्रभा शुभ प्रचारणी महाष्ट सिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाह कालिक ध्वनिः शिवेति मन्त्र भूषगो जग ज्जयाय जायताम्‌ (17)

इति श्रीरावण कृतम शिव तांडव स्तोत्रम संपूर्णम

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