- February 12, 2017
रियल एस्टेट- राज्यों द्वारा कानून नहीं बनाने पर गंभीर स्थिति उत्पन्न
पेसूका——–जहां खरीदार इस वर्ष पहली मई से रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास), अधिनियम, 2016 के तहत राहत पाने के हकदार हैं, वहीं केन्द्र सरकार ने राज्यों को आगाह किया है कि अगर उससे पहले कानून नहीं बनाए गए, तो इस अधिनियम के तहत जरूरी आवश्यक संस्थागत तंत्रों के अभाव में इस क्षेत्र में खालीपन की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
अभी तक केवल चार राज्यों एवं छह केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अंतिम रियल एस्टेट नियमों एवं कुछ राज्यों द्वारा अधिनियम के कुछ प्रावधानों के उल्लंघन की शिकायतों को अधिसूचित किये जाने के संदर्भ में केन्द्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री श्री एम. वेंकैया नायडू ने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्रियों से सही भावना और तरीके से अधिनियम का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में व्यक्तिगत दिलचस्पी लेने का आग्रह किया।
9 फरवरी, 2017 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे एक पत्र में उन्होंने जोर देकर कहा कि, ‘रियल एस्टेट अधिनियम इस क्षेत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण सुधारों में एक है, जिससे सभी हितधारकों को लाभ पहुंचेगा। इसलिए, यह मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया आप इस मसले पर व्यक्तिगत ध्यान दें, जिससे कि इस अधिनियम का कर्यान्वयन सही समय और सही प्रकार से हो सके, जिसके लिए इसे संसद द्वारा पारित किया गया था।’
श्री नायडू ने मुख्यमंत्रियों को यह कहते हुए आगाह भी किया कि ‘उपयुक्त सरकारों से अधिकतम 30 अप्रैल, 2017 तक रियल एस्टेट नियामकीय प्राधिकरणों एवं अपीली ट्रिब्यूनलों की स्थापना करने की अपेक्षा की जाती है। यह समय सीमा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अधिनियम पहली मई 2017 से पूरी तरह संचालन में आ जाएगा और नियमों एवं नियामकीय प्राधिकरण तथा अपीली ट्रिब्यूनल के अभावमें अधिनियम का कार्यान्वयन आपके राज्य में प्रभावित होगा, जिससे इस क्षेत्र में खालीपन की स्थिति आ जाएगी।’
मंत्री महोदय ने मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने दो पृष्ठों के पत्र में कहा कि रियल एस्टेट अधिनियम, 2016 संसद द्वारा पारित सबसे अधिक उपभोक्ता हितैषी कानूनों में से एक है और इसका समय पर कार्यान्वयन केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों की ही जिम्मेदारी है। इससे न केवल उपभोक्ताओं को आवश्यक सुरक्षा उपलब्ध होगी, बल्कि यह रियल एस्टेट क्षेत्र को भी बढ़ावा देगा, जिससे सभी हितधारकों को लाभ पहुंचेगा।
आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय (एचयूपीए) ने पिछले महीने की 17 तारीख को सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के साथ एक परामर्शदात्री कार्यशाला का आयोजन किया था, जिससे कि उनके द्वारा की गई प्रगति की समीक्षा की जा सके तथा इस अधिनियम के तहत उनकी जिम्मेदारियों के बारे में बताया जा सके।
इस कार्यशाला का उद्देश्य इस वर्ष पहली मई से प्रभावी होने वाले इस अधिनियम से लाभ उठाने में उपभोक्ताओं को सक्षम बनाने के लिए समय सीमा को पूरा करना भी था। साथ ही यह सुनिश्चित करना था कि इनसे संबंधित नियम अधिनियम की मूल भावना से अलग न हों।
अधिनियम के 60 से अधिक खण्डों को आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय द्वारा पिछले वर्ष पहली मई को अधिसूचित किया गया था। इसमें खण्ड 84 भी शामिल था, जिसके तहत राज्यों को पिछले वर्ष 31 अक्टूबर तक रियल एस्टेट नियमों को अधिसूचित करने और इसके द्वारा अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए जमीन तैयार करने की आवश्यकता थी।
जिन राज्यों ने अंतिम नियमों को अधिसूचित किया है, वे हैं – गुजरात, मध्य प्रदेश, केरल एवं उत्तर प्रदेश। मंत्रालय ने इन में से कुछ राज्यों द्वारा अधिनियम के कुछ प्रावधानों के उल्लंघन की कुछ शिकायतें प्राप्त की हैं, जिसकी वजह से अधिनियम की भावना कमजोर पड़ गई है।
मंत्रालय ने इन शिकायतों को राज्यसभा की अधीनस्थ विधान संबंधी समिति को निर्दिष्ट कर दिया है। इस पृष्ठभूमि में, श्री वेंकैया नायडू ने मुख्यमंत्रियों से इस अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया, जैसा कि संसद द्वारा पारित किया गया है।
अधिनियम के प्रावधानों के तहत रियल एस्टेट संपत्ति के खरीदार एवं डेवलपर दोनों ही इस वर्ष मई से रियल एस्टेट नियामक अधिकारियों के पास जाकर अनुबंधात्मक बाध्यताओं एवं अधिनियम के अन्य प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में एक-दूसरे के खिलाफ राहत की मांग कर सकते हैं, तो इसके लिए यह जरूरी है कि सामान्य नियमों और विक्रय नियमों के लिए समझौते हों, रियल एस्टेट प्राधिकरणों और अपीली ट्रिब्यूनलों समेत रियल एस्टेट के सभी नियम उपयुक्त तरीके से लागू हों और अपना कार्य आरंभ करने की स्थिति में हों।