- March 20, 2015
महिला व बाल विकास कार्यक्रम
महिला व बाल विकास मंत्रालय देश में महिलाओं व बच्चों के विकास के लिए मुख्य रूप से तीन बड़े कार्यक्रम चला रहा है। ये कार्यक्रम हैं : समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) कार्यक्रम, किशोरियों के सशक्तीकरण के लिए राजीव गांधी कार्यक्रम (आरजीएसईएजी)- ‘सबला’ और इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना (आईजीएमएसवाई)।
वित्त वर्ष 2013-14 में आईसीडीएस के तहत 16248 करोड़ रुपए व्यय किया गया जबकि 28 फरवरी, 2015 तक इस कार्यक्रम के तहत 15129 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। उसी तरह 2013-14 में ‘सबला’ के लिए 602 करोड़ रुपए व्यय किया गया जबकि चालू वित्त वर्ष में 28 फरवरी तक इस कार्यक्रम में 618 करोड़ रुपए खर्च किया गया है।
आईजीएमएसवाई के लिए 2013-14 में 232 रुपए व्यय किया गया जबकि 28 फरवरी 2015 तक इस मद में 337 करोड़ रुपए खर्च किया गया है।
केंद्र द्वारा प्रायोजित आईसीडीएस का संचालन महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है और इसे छह वर्ष से कम आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं व स्तनपान कराने वाली माताओं के समग्र विकास के लिए लागू किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत छह सेवाएं प्रदान की जाती है। ये हैं-
I. पूरक पोषण
II. स्कूल-पूर्व अनौपचारिक शिक्षा
III. पोषण व स्वास्थ्य शिक्षा
IV. टीकाकरण
V. स्वास्थ्य जांच और
VI. ग्रामीण स्तर पर आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए रेफरल सेवाएं।
‘सबला’ भी एक केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रम है जिसे पायलट आधार पर 2010-11 में लागू किया गया था। वर्तमान में इसे सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 205 जिलों में लागू किया गया है। ‘सबला’ का उद्देश्य 11 से 18 वर्ष की आयु के किशोरियों को ‘आत्मनिर्भर’ बनाना है। कार्यक्रम को दो बड़े भागों- पोषण व गैर-पोषण में बांटा गया है। जहां पोषण का उद्देश्य किशोरियों के स्वास्थ्य व पोषण की स्थिति को सुधारना है, वहीं गैर-पोषण स्कीमों के तहत उनके विकास की जरूरतों पर जोर दिया जाता है।
आईजीएमएसवाई का संचालन भी महिला व बाल विकास मंत्रालय करता है जो शत-प्रतिशत केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है और इसमें सशर्त नकद हस्तांतरण (सीसीटी) द्वारा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उनके स्वास्थ्य व पोषण स्थिति को सुधारने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। देश भर में यह कार्यक्रम पायलट आधार पर चुने हुए 53 जिलों में चलाया जा रहा है, जिसके तहत कुछेक स्वास्थ्य व पोषण शर्तों को पूरा करने पर नकद लाभ दिया जाता है। तात्कालिक तौर पर इस कार्यक्रम का उद्देश्य आर्थिक मदद पहुंचाना है जबकि दीर्घावधि में इसका उद्देश्य इन महिलाओं की मानसिकता व व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। इस कार्यक्रम के जरिए यह प्रयास भी किया जाता है कि ऐसी महिलाओं को बच्चे के जन्म से पूर्व और उसके बाद होने वाले पारिश्रमिक नुकसान की कुछ हद तक भरपाई हो जाए।