- February 21, 2016
मनोहारी परंपराओं का आईना है बेणेश्वर – डॉ. दीपक आचार्य
बेणेश्वर…….एक नाम महातीर्थ का, जहाँ उमड़ती है आस्था और विश्वास की जाने कितनी सरिताएं, लोक श्रद्धा की अनगिनत सरणियाँ। इससे भी बड़ी बात यह है कि बेणेश्वर धाम और इसकी मेला संस्कृति में इतनी अधिक मनोहारी और रोचक परंपराएं हैं जो अगाध आस्था और श्रद्धा के साथ ही धर्म-अध्यात्म और स्थानीय संस्कृति के इन्द्रधनुषी वैविध्य का भी प्रकटीकरण करती हैं।
लोक संस्कृति का उन्मुक्त दिग्दर्शन
मावजी महाराज की लीलास्थली बेणेश्वर धाम, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों की सीमा पर सोम, माही एवं जाखम महानदियों के पवित्र जलसंगम तीर्थ के मध्य पुरातन टापू, जहां हर वर्ष माघ पूर्णिमा के उपलक्ष में कई दिन चलने वाले मेले में जुटता है कुंभ वागड़ अंचल के कई लाख लोगों का, और बहती हैं सरिताएं धर्म, सामाजिक समरसता और मनोरंजन की, जाने कितनी सदियों से।
बेणेश्वर और मावजी महाराज से हर कोई वागड़वासी अच्छी तरह परिचित ही नहीं, उनके प्रति अनन्य श्रद्धा भाव से भरा है। संत मावजी महाराज की तरह बेणेश्वर का पवित्र संगम तीर्थ भी कई चमत्कारों से भरा रहा है। इन्हीं चमत्कारों और दैवी कृपा धाराओं की पुरातन परम्पराओं में आज भी मेले के अवसर पर कई अनूठी परम्पराएं हर किसी को श्रद्धा के साथ अभिभूत कर देती हैंं।
पावन स्नान का अनुपम नज़ारा
आबूदर्रा जलसंगम तीर्थ का वह केन्द्रीय हिस्सा है जहां की गहराई की थाह कोई नहीं पा सका है। माघ पूर्णिमा को हजारों-हजार भक्तों के साथ महंत आबूदर्रा में स्नान करते हैं। इस दिव्य स्नान का नज़ारा देखने संगम जल तीर्थ के मुहानों पर हजारों लोग जमा होते हैं। इस बार यह नज़ारा 22फरवरी, सोमवार को देखने मिलेगा। माघ पूर्णिमा और सोमवार का संगम भी इस बार भी खासियत है।
बलि की यज्ञस्थली है यहां
आबूदर्रा बेणेश्वर जल संगम तीर्थ का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। इसके बारे में मान्यता है कि राजा बलि ने यहीं यज्ञ किया था। आबूदर्रा के पास की पहाड़ी पर आज भी विशाल यज्ञस्थली के अवशेष नजर आते हैं, जहां खोदे जाने पर भारी मात्रा में सुगन्धित यज्ञ भस्म निकलती रही है।
पाताल लोक का रास्ता है यहीं से
भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से यहीं पर तीन पग भूमि का दान लिया था और तीसरा पग बलि के सर पर रखा और बलि को यहीं से पाताल लोक भेजा। कहा जाता है कि तभी से आबूदर्रा पाताल लोक का मार्ग बना।
मावजी की वाणियों में बतलाया गया है कि इस आबूदरा के भीतर हीरे-जवाहरात जड़े प्राचीन राजप्रासाद समाहित हैं, जो समय आने पर प्रकट होंगे। इन वाणियों में बेणेश्वर को गुप्त धाम कहा गया है। यह मान्यता है कि दुनिया के तमाम तीर्थ माघ पूर्णिमा के दिन बेणेश्वर में वास करते हैं और जो भी इस पवित्र जलसंगम तीर्थ में स्नान करता है उसे आरोग्यता प्रदान कर पापों का शमन करते हैं।
दिव्य श्रीफल देता है खुशहाली
बेणेश्वर तीर्थ पर माघ पूर्णिमा के दिन जिस समय महंत तथा भगवान निष्कलंक की अमृत स्नान विधि होती है, उस समय महंत द्वारा ‘आबूदरा’ में उछाले गए श्रीफल विशेष महत्व के होते हैं।
बेणेश्वर में महंत के संगम स्नान के वक्त प्राचीनकाल से एक विचित्र परंपरा विद्यमान है, जो लोगों की तकदीर तक बदल देती है। जब महंत स्नान करते हैं तब भगवान निष्कलंक तथा मावजी का स्मरण कर वैदिक ऋचाओं से अभिमंत्रित पंच तत्वों के प्रतीक रूप में पांच श्रीफल आबूदर्रा के राधा कुण्ड क्षेत्र में अथाह जलराशि में उछालते हैं। छपाक की आवाज से जैसे ही ये नारियल पानी में गिरते हैं उसे निकाल लाने के लिए साद भक्तों एवं माव सम्प्रदाय के भक्तों के समूह पानी में कूद पड़ते हैं।
यह वह क्षण होता है जब जलसंगम तीर्थ में नारियल पाने के लिए जबर्दस्त होड़ मच जाती है। हर कोई चाहता है कि श्रीफल उसके ही हाथ में आए। जिसके हाथ में नारियल आता है वह अपने आपको धन्य समझता है। लोक मान्यता है कि आबूदर्रा से निकाला गया श्रीफल निश्चय ही हर मनोकामना पूरी करता है। पानी में उछाले गए नारियल को अपने हाथ से पकड़ने की भक्तों की उल्लासमयी परंपरा श्रद्धा के अतिरेक का दिग्दर्शन कराती है।
दिव्यताओं भरा है आबूदरा
मुख्य मेले के दिन माघ पूर्णिमा के स्नान के समय हजारों भक्त महंत के स्नान की इस मनोहारी परंपरा के दर्शन करने उमड़ते हैं और खुद भी पवित्र स्नान करते हैं। इस समय सारा परिक्षेत्र ‘जै मावजी महाराज नी’, ‘जै बेणेश्वर धाम’ और ‘हर-हर गंगे’ के उद्घोष से गूंज उठता है।
लोक मान्यता यह भी है कि आबूदर्रा में डुबकी लगाते समय महंत को जल के भीतर दिव्य राजप्रासाद एवं विभूतियों के दर्शन भी होते हैं। लोक आस्था की परंपरा में पवित्र स्नान एवं श्रीफल पाने की प्रतिस्पर्धा जन-जन के मन में बेणेश्वर धाम एवं संत मावजी के प्रति अनन्य श्रद्धा को अभिव्यक्त करती है।
पालकी का अधिकार
बेणेश्वर पीठाधीश्वर एवं भगवान निष्कलंक की पालकियां माघ पूर्णिमा को बेणेश्वर पहुंचती हैं। इनके लिए कहार परंपरा भी सदियों से निश्चित की हुई है। इसके मुताबिक संत शिरोमणि मावजी के उत्तराधिकारी की पालकी ले जाने-लाने का अधिकार सिर्फ आदिवासी भक्तों को ही है जबकि भगवान निष्कलंक की पालकी ले जाने-लाने का अधिकार नवलश्याम एवं सेरिया के श्रीगौड़ समाज के भक्तों को ही है।
बेणेश्वर की लौ देती भविष्य का संकेत
बेणेश्वर धाम के शिवालय पर मेरिया देखकर भविष्य का अनुमान किया जाता है। दीवाली पर अमावस की रात सात बजे यहाँ शिव मन्दिर में पूजा-अर्चना के बाद मेरिया( गन्ने पर कपड़ी बत्तियों, मिट्टी से बनी परंपरागत मशाल) प्रज्वलित किया जाता है। मान्यता है लौ सीधी रहे तो वर्ष भर खुशहाली रहती है जबकि जिस तरफ झुकी दिखे उस तरफ के इलाके में अनिष्ट की आशंका व्यक्त की जाती है।
इस तरह की कई मनोहारी परंपराएं निभा रहा बेणेश्वर धाम लोक आस्था के साथ-साथ लोकानुरंजन का भी तीर्थ है जहाँ आने वाला हर कोई आत्म आनंद और तृप्ति का अनुभव करता हुआ जीवन भर बेणेश्वर को भुला नहीं पाता।
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