• April 11, 2016

बहुवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता का नमूना :- राष्ट्रपति

बहुवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता का नमूना :-   राष्ट्रपति
पेसूका ——————— भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि बहुवाद और सहिष्णुता हमारी सभ्यता का नमूना है। भारत की ताकत उसकी विविधता में निहित है। वह आज (9 अप्रैल, 2016) नई दिल्ली में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन सिंह की याद में अर्जुन सिंह सद्भावना फाउंडेशन और मध्य प्रदेश फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक स्मारक व्याख्यान दे रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि बहुवाद लोकतंत्र में यह अहम है कि नागरिकों विशेषकर युवाओं के मन में सहिष्णुता के मूल्य, विरोधी मतों का सम्मान और धैर्य मौजूद हों। बहुवात और सहिष्णुता एक मुख्य दर्शन है, जिसके प्रति व्याकुलता बनी रहनी चाहिए। भारत एक तमाम विचारधाराओं वाले 1.3 अरब लोगों, 122 भाषाओं, 1,600 बोलियों और 7 धर्मों का देश है। इसे कुछ लोगों की सनक और पागलपन के चलते कल्पनाओं में बदला नहीं जा सकता है।

हमारे समाज की लोकप्रियता सदियों पुराने विचारों का आत्मसात किए जाने से मिली है। संस्कृति, धर्म और भाषा में बहुलता ही भारत को खास बनाती है। हम सहिष्णुता से मिली ताकत से ही आगे बढ़ते हैं। यह हमारी सदियों पुरानी सामूहिक चेतना का हिस्सा रही है।

यह हमारे लिए कारगर रही है और यही एक मात्र मार्ग है जो हमारे लिए काम करेगा। सार्वजनिक तौर पर कई तरह के मतभेद हो सकते हैं। हम तर्क दे सकते हैं। हम सहमत नहीं हो सकते हैं। लेकिन हम कई तरह के मतों के अस्तित्व को नकार नहीं सकते हैं। अन्यथा हमारी सोचने की प्रक्रिया का एक बुनियादी चरित्र ही खत्म हो जाएगा।

राष्ट्रपति ने गांधीजी के कथन का उल्लेख किया और कहा, ‘धर्म एकता की ताकत है; हम इसे विवाद की वजह नहीं बना सकते।’ भारत में आस्थाओं की समरसता दुनिया के लिए एक अनूठा उदाहरण है, जहां सांप्रदायिक विवादों से इतर कई धर्मों के लोग एक साथ रह रहे हैं।

हमें एक उदाहरण बने रहना चाहिए। हमें विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्द्र को बरकरार रखते हुए काम करना चाहिए। अक्सर कुछ निहित स्वार्थों के कारण सांप्रदायिक सौहार्द्र पर असर पड़ता है। इसलिए हमें साम्प्रदायिक तनाव के प्रति सचेत रहना चाहिए। कानून को ऐसे चुनौतीपूर्ण हालात के लिए तैयार रहना चाहिए। यह हमारे लोकतंत्र का आधार है, जो हमेशा बरकरार रहना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र का मतलब सिर्फ आंकड़े नहीं होते हैं, बल्कि आम सहमति बनाना भी होता है। हाल के दौर में देखने को मिल रहा है कि राष्ट्र से जुड़े मामलों में आम आदमी भी जुड़ जाता है। अराजकता के लिए कहीं कोई जगह नहीं होनी चाहिए, वहीं कुशल लोकतांत्रिक मशीनरी का महत्व होना चाहिए और अच्छी नीतियों के निर्माण के लिए आम जनता की राय ली जानी चाहिए।

श्री अर्जुन सिंह को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि श्री अर्जुन सिंह जी एक ऐसे नेता थे, जो दिल और दिमाग से जमीन से जुड़े हुए थे। उन्होंने सत्ता मिलने पर कभी अपनी सरलता को नहीं छोड़ा, न ही आम आदमी के प्रति अपनी चिंता को छोड़ा। उन्होंने ऐसे मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए खुद को समर्पित कर दिया, जो धर्म निरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल्यों पर आधारित हो।

शिक्षा के क्षेत्र में श्री अर्जुन सिंह के योगदान का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि लगभग आठ साल के दौरान अर्जुन सिंह जी का मानव संसाधन विकास मंत्री के तौर पर कार्यकाल मौलाना अबुल कलाम आजाद के बाद सबसे ज्यादा रहा। भारत के शिक्षा परिदृश्य पर अर्जुन सिंह द्वारा बनाई गई नीतियों का खासा असर दिखाई देता है।

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