पर्यावरण, मद्य निषेध, बेटी बचाओ और जल-संरक्षण

पर्यावरण, मद्य निषेध, बेटी बचाओ और जल-संरक्षण

भोपाल (अशोक मनवानी)————“नमामि देवी नर्मदे”-सेवा यात्रा की मूल भावना को ग्रामवासी न सिर्फ समझ रहे हैं, बल्कि उसके अनुरूप अपनी भूमिका का निर्धारण भी कर रहे हैं। नरसिंहपुर जिले के ग्राम हीरापुर में आज कुछ ग्रामवासियों से बातचीत के दौरान यह जानने को मिला कि “नर्मदा सेवा यात्रा” एक कल्याणकारी सोच का परिणाम है।

रायसेन जिले से नरसिंहपुर जिले में यात्रा के पहुँचने के पहले दोपहर से शाम तक अनेक ग्राम के लोग हीरापुर पंचायत की ओर से लगाए गए पंडाल में पहुँचने लगे। एक छोटी नदी सिंदूरी के किनारे हीरापुर से तीन किलोमीटर दूर बना स्वागत-स्थल एक मेले के रूप में परिवर्तित हो गया था।

नरसिंहपुर जिले के ग्राम तेन्दूखेड़ा के एक मजदूर खेमचंद से चर्चा करने पर पता चला कि वह इस यात्रा के उद्देश्य नदी स्वच्छता की भावना को खूब समझता है। खेमचंद के ही शब्दों में – “जा नदी साफ रऐगी तो हमीईरे काम आएगी।” नरसिंहपुर जिले के ही ग्राम टपरिया टर्रा के कृषक रामप्रसाद ने कहा कि “नर्मदा सेवा यात्रा” बहुत सारे पेड़ लगवाने के लिए हो रही है। बातचीत में रामप्रसाद सुझाव भी देते हैं कि फलदार पेड़ ज्यादा लगाए जाएं।

कक्षा दसवीं के विद्याथी देवेन्द्र पटेल और आकाश खोजा टपरिया के निवासी है। यह दोनों मित्र जिज्ञासा-वश हीरापुर पहुँचे थे। उन्होंने बताया कि इस यात्रा में प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान का संदेश भी दिया जा रहा है। ग्राम हीरापुर में खेती-किसानी का कार्य करने वाले ओमकार ने बताया कि पढ़ाई-लिखाई के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए यह यात्रा हमारे गाँव आ रही है। “नर्मदा मैया को ठीक-ठाक रखने के लिए गाँव-गाँव जाकर समझाईश दी जा रही है।”

ग्राम धामा के कृषक रमेश केवट ने सलाह दी कि यात्रा में जो सरकारी अफसर आ रहे हैं, वो गाँव के स्कूल और सोसायटी का काम-काज देखने भी जाए, जिससे इनका काम ज्यादा अच्छी तरह से हो सके।

हीरापुर पंचायत के अलावा ग्राम पंचायत बंधी की ओर से भी यात्रा के स्वागत के लिए व्यवस्थाओं में सहयोग दिया गया। ग्रामवासियों ने पानी के टैंकर पर बोरों का आवरण बिछाकर पेयजल को तप्ती दुपहरी में गर्म होने से रोकने में सहयोग दिया। गाँव के बच्चों ने रांगोली और दीवार लेखन से साज-सज्जा कर नर्मदा यात्रा के स्वागत के लिए अपनी भावना व्यक्त की।

पर्यावरण, मद्य निषेध, बेटी बचाओ और जल संरक्षण का अर्थ जानने लगे हैं। ग्रामवासियों से बातचीत में यह बात उभरकर सामने आई ।

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