- May 24, 2018
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का राष्ट्र के प्रति क्या देन है ?–शैलेश कुमार
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (जन्म: 25 सितम्बर 1916 –11 फ़रवरी 1968) महान चिन्तक और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी।
उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। केवल एक बैठक में ही उन्होंने चन्द्रगुप्त नाटक लिख डाला था।
दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को जयपुर जिले के धानक्या ग्राम में, नाना चुन्नीलाल के यहाँ हुआ था | इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था ये नगला चंदभान( फरह, मथुरा) के निवासी थे | माता रामप्यारी धार्मिक वृत्ति की थीं। पिता रेल्वे में जलेसर रोड स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर थे |रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था।
कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे। थोड़े समय बाद ही दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया जिसका नाम शिवदयाल रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। उस समय उनके नाना चुन्नीलाल शुक्ल धनकिया में स्टेशन मास्टर थे। मामा का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ खाते खेलते बड़े हुए।
3 वर्ष की मासूम उम्र में दीनदयाल पिता के प्यार से वंचित हो गये। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया। 8 अगस्त 1924 को रामप्यारी जी का देहावसान हो गया। ७ वर्ष की कोमल अवस्था में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये।
उपाध्याय जी ने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। बी०.एससी० बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गये थे। अत: कालेज छोड़ने के तुरन्त बाद वे उक्त संस्था के प्रचारक बन गये और एकनिष्ठ भाव से संघ का संगठन कार्य करने लगे। उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे।
सन 1951 ई० में अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके संगठन मन्त्री बनाये गये। दो वर्ष बाद सन् 1953 ई० में उपाध्यायजी अखिल भारतीय जनसंघ के महामन्त्री निर्वाचित हुए और लगभग१५ वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की।
कालीकट अधिवेशन (दिसम्बर 1967) में वे अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 11 फरवरी 1968 की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय के आसपास उनकी हत्या कर दी गयी।
विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ ५२ साल क उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। अनाकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी दीनदयालजी उच्च-कोटि के दार्शनिक थे किसी प्रकार का भौतिक माया-मोह उन्हें छू तक नहीं सका।
एक दृष्टि में—-
मैट्रिक और इण्टरमीडिएट-दोनों ही परीक्षाओं में गोल्ड मैडल।
कानपुर विश्वविद्यालय से आपने बी० ए० किया।
सिविल सेवा परीक्षा में भी उतीर्ण हुए लेकिन उसे त्याग दिया।
1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये।
1942 से पूरी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिये काम करना शुरू किया।
राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और स्वदेश जैसी पत्र-पत्रिकाएँ प्रारम्भ की।
1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना के समय उत्तर-प्रदेश का महासचिव बनाया गया।
*** कृतियाँ****
जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता दीनदयालजी का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुर्नरचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टी प्रदान करना था . उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी। दीनदयालजी को जनसंघ के आर्थिक नीति के रचनाकार बताया जाता है।
आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य समान्य मानव का सुख है या उनका विचार था। विचार–स्वातंत्रय के इस युग में मानव कल्याण के लिए अनेक विचारधारा को पनपने का अवसर मिला है। इसमें साम्यवाद, पूंजीवाद , अन्त्योदय, सर्वोदय आदि मुख्य हैं। किन्तु चराचर जगत को सन्तुलित , स्वस्थ व सुंदर बनाकर मनुष्य मात्र पूर्णता की ओर ले जा सकने वाला एकमात्र प्रक्रम सनातन धर्म द्वारा प्रतिपादित जीवन – विज्ञान, जीवन –कला व जीवन–दर्शन है।
संस्कृतिनिष्ठा दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला सुत्र है उनके शब्दों में- “ भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं . उनकी जीवन प्रणाली ,कला , साहित्य , दर्शन सब भारतीय संस्कृति है . इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है . इस संस्कृतिमें निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा .”
“वसुधैव कुटुम्बकम” हमारी सभ्यता से प्रचलित है। इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मो को समान अधिकार प्राप्त हैं। संस्कृति से किसी व्यक्ति ,वर्ग , राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन,रुचि, आचार, विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है। दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है।
भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण में यह स्पष्ट वर्णन है कि हिन्दुत्व और हिंदूइज़्म एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है।
उपाध्यायजी पत्रकार तो थे ही चिन्तक और लेखक भी थे। उनकी असामयिक मृत्यु से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि जिस धारा में वह भारतीय राजनीति को ले जाना चाहते थे वह धारा हिन्दुत्व की थी जिसका संकेत उन्होंने अपनी कुछ कृतियों में ही दे दिया था। तभी तो कालीकट अधिवेशन के बाद विश्व भर के मीडिया का ध्यान उनकी ओर गया।
उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों के नाम नीचे दिये गये हैं.
**दो योजनाएँ ** राजनीतिक डायरी *** भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन ** सम्राट चन्द्रगुप्त ** जगद्गुरु शंकराचार्य ** एकात्म मानववाद ** राष्ट्र जीवन की दिशा
** एक प्रेम कथा**
** एकात्म मानववाद ———— मानव जीवन व सम्पूर्ण सृष्टि के एकमात्र सम्बन्ध का दर्शन है। इसका वैज्ञानिक विवेचन पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने किया था। एकात्म मानववाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्गदर्शक दर्शन है। यह दर्शन पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा 22 से 25 अप्रैल, 1965 को मुम्बई में दिये गये चार व्याख्यानों के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
*** भारतीय जनसंघ***
इतिहास में यह ऐतिहासिक घटना 1965 के विजयवाड़ा अधिवेशन में हुई। इस अधिवेशन में उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने करतल ध्वनि से एकात्म मानव दर्शन को स्वीकार किया। इसकी तुलना साम्यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद से नहीं की जा सकती।
एकात्म मानववाद को किसी वाद के रूप में देखना भी नहीं चाहिए। इसे हम एकात्म मानव दर्शन कहें तो ज्यादा उचित होगा, किन्तु आधुनिक पद के चलते यह एकात्म मानववाद के रूप में प्रचलित है।
**** एकात्म मानववाद ****
एक ऐसी धारणा है जो सर्पिलाकार मण्डलाकृति द्वारा स्पष्ट की जा सकती है जिसके केंद्र में व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा हुआ एक घेरा परिवार, परिवार से जुड़ा हुआ एक घेरा -समाज, जाति, फिर राष्ट्र, विश्व और फिर अनंत ब्रम्हांड को अपने में समाविष्ट किये है। इस अखण्डमण्डलाकार आकृति में एक घातक में से दूसरे फिर दूसरे से तीसरे का विकास होता जाता है। सभी एक-दूसरे से जुड़कर अपना अस्तित्व साधते हुए एक दुसरे के पूरक एवं स्वाभाविक सहयोगी है। इनमे कोई संघर्ष नहीं है।
*** भारतीय जनसंघ***
भारत का एक पुराना राजनैतिक दल था जिससे 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी। इस दल का आरम्भ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गयी थी। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। इसने 1952 के संसदीय चुनाव में 2 सीटें प्राप्त की थी जिसमे डाक्टर मुखर्जी स्वयं भी शामिल थे।***
***** टिप्पणी *****
अगर आप को इस लेख पर एतराज है तो हमें राष्ट्र के प्रति उनकी देन का विस्तारपूर्वक लेख के साथ अपना छाया प्रति भेजिये जो आपके नाम से ही वेबकाष्ट होगा—शैलेश कुमार